अक्सर मैं धर्म और आस्था पर कुछ भी लिखने से खुद को रोकती हूं। कई बार खुद को समझाती और तर्क देती भी हूं कि लोगों को आस्था, भगवान का नाम एक उम्मीद देता है, तसली देता है। पर आज जो मैंने देखा और महसूस किया मुझे समझ नहीं आ रहा कि उसे पाखंड कहूं, बेवकूफी कहूं या फिर बेहरुपियापन जिसका चोला पहनकर लोग खुद या फिर दूसरों को असलियत से कोसो दूर कर रहे हैं।
किसी काम की वजह से आज अलीगढ़ जाना
हुआ। ऑटो लेते हुए ही देखा कि कई लोग – महिला, पुरुष, किशोरियां और बच्चे भी कावंड में जल लेते हुए
रामघाट से अलीगढ़ की ओर जा रहे हैं – दिमाग में पहला ख्याल
आया शिवरात्री या मौनी अमावस्या तो दो या तीन दिन में फिर क्या है। खैर तकरीबन हर
300-400 मीटर के अंतराल में बहुत बड़े बड़े पंडाल लगे हुए हैं जहां खाने पीने की
व्यवस्था, आराम करने की व्यवस्था है और साथ ही में डीजे लगा
हुआ है – जहां एक आध बार शिव भजन लग रहे थे बाकी समय जोर जोर
से अश्लील गाने चल रहे थे। हैरानी की बात है कि महिला और पुरुष दोनों ही ठुमके
लगाते हुए दिखे। और ये सिलसिला पूरे अलीगढ़ तक चला। मैं जैसे ही ऑटो से उतरी,
दो आदमी जो ऐसा ही कावड लेकर जा रहे थे, मेरे
बहुत करीब आते हुए चिल्ला कर बोले ‘बम बम भोले’ ‘जय जय महादेव’ और बताने की शायद ही जरूरत हो
उनकी नजरे मेरी छाती पर थी।
मैं साल 2020 से अलीगढ़ जिले के
गांवों में लड़कियों और महिलाओं के साथ जेंडर के मुद्दे पर काम कर रही हूं – जहां लड़कियों की 13-14 साल की उम्र में शादी करा
दी जाती है, स्कूल नहीं भेजा जाता है और तो और पति द्वारा
मारपीट रोजमर्रा का हिस्सा है। वहीं पिछले साल ससुरालवालों ने तथाकथित तौर पर गांव
की एक लड़की को मार डाला और उसके पिता ने पैसे लेकर केस खत्म कर दिया। ऐसी जगह पर
लड़कियां और महिलाओं का शिव भक्ति के नाम पर अश्लील नाचना धर्म है, संस्कार है? जहां खेती से घर नहीं चल पा रहा,
नौकरी नहीं है वहां सड़कों पर युवा लड़के और पुरुष सज धज कर पांवों
में घुंघरू बांधकर ब्रेंड के जूते पहनकर गंगाजल चढ़ाने के लिए सैकड़ों किलोमीटर चल
रहे हैं। पेट भरे होने पर आधा खाना फेंक रहे हैं जहां पास में गाय, बैल और कुत्ते कूडे में खाना और नाली में पानी खोज रहे हैं। मुंह में
भगवान का नाम और आंखे लड़कियों और महिलाओं के शरीर पर।
हैरान करने वाली बात ये है कि हम
बैटरी रिक्शा में जा रहे थे, बीच में एक इंसान
ने मदद मांगी की इन बुजुर्ग को सांस नहीं आ रही है इन्हें अस्पताल जाना है पर पीछे
खड़ी गाड़ी होर्न मारे जा रही है। गंगा में नहाने से, मंदिर
जाने से, पैदल चलने से पाप नहीं मिटेंगे – कर्म प्रधान देश जहां लोगों ने इतनी मेहनत से आज़ादी हासिल की वहां देश की
ऐसी दुर्गति देखकर गुस्सा नहीं निराशा होती है, अफसोस होता
है। जहां अधिकार मांगना चाहिए, जहां नौकरी के लिए लड़ना
चाहिए, जहां गैरबराबरी को चुनौती देनी चाहिए वहां का युवा
धर्म का चोला पहनकर खुद को बेवकूफ बना रहा है।
कितने ही आदमी और लड़के नशे में
धुत्त, मुंह में महादेव का जाप लिए आज कई
महिलाओं और लड़कियों को घूरते छेड़ते नजर आए – वाह रही
दुनिया। ये धर्म है, ये आस्था है, ये
संस्कृति है – मेरे नजर में तो इसे अपराध और बेवकूफी कहेंगे।
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