दिल्ली अब कम ही
रहना होता है ऐसे में वहां की दौड़ धूप में लगता है कि जितने भी काम हो तुरंत
निपटा लिए जाए। एक ऐसे ही मसरूफियत के दिन में मैंने एक महिला को घर में किचन के
सामने बैठे देखा। हल्के लाल रंग की साड़ी पहने, सिर झुकाए हुए अपनी एक हाथ की
हथेलियों को दूसरे से दबाते हुए मानो मन ही मन कोई बड़ा फैसला लेने की तैयारी कर
रही थी। राधिका (महिला का बदला हुआ नाम) के पहले शब्द थे, ‘मेरे पति कहीं चले गए हैं। मैं क्या करुं?’ वो और
कुछ कह पाती उससे पहले ही वो रोने लगी और मैं असमंजस में पड़ गई। दरअसल राधिका 25
साल की महिला है और 4 साल की बेटी की मां। उसकी शादी महज 19 साल की उम्र में उसके
माता पिता ने दिल्ली में करा दी। पति शराब पीता था और शादी के 3-4 साल बाद ही लिवर
फेल होने की वजह से उसकी मौत हो गई।
अकेली राधिका एक
छोटी बच्ची के साथ दिल्ली में कैसे रहेगी, कैसे अपना जीवन व्यतीत करेगी
सोचकर उसे परिवारवालों ने उसकी दूसरी शादी करवा दी। समाज के मुताबिक लड़का काफी
समझदार, कामकाजी और उसमें कोई बुरी आदत नहीं थी। मन न होते
हुए भी कम उम्र की राधिका ने अपनी बच्ची के खातिर शादी कर ली। शादी के कुछ महीने
बाद ही उसके पति ने उसके साथ बुरा व्यवहार करना, गाली गलौज
करना शुरू कर दिया। राधिका अपने घर का काम करने के बाद दूसरों के घर में साफ सफाई
और खाना बनाने का काम करती। एक दिन शाम को किसी बात से नाराज होकर उसके पति ने उसपर
हाथ उठा दिया – डर और हैरानी की वजह से वो सकते में आ गई। वो
कुछ बोल नहीं पाई। उसका पति ने काम छोड़ दिया और साफ तौर पर कहा कि वो दूसरे की
बच्ची को नहीं पाल पाएगा। उसके बाद उसके पति ने अत्याचार शुरु कर दिया और जब भी वो
किसी से मदद मांगती तो लोग पति को समझाते पर वो अपनी हरकतों से बाज न आता। इस बार
उसने सारी हदें पार कर दी और राधिका को इतना मारा कि उसके हाथ-पैर सूज गए और उन पर
नील पड़ गया और पेट और सिर पर गहरी चोट आई। उसको अस्पताल ले जाने की जगह वो घर से
फरार हो गया। राधिका ने किसी तरह से अपना इलाज कराया इसी बीच मकान मालिक ने रोजाना
के झगड़े और मारपीट को देखते हुए मकान खाली करने को कहा।
अभी भी परिवार
वाले, रिश्तेदार उसी को समझा रहे थे। ऐसे में वो हमारे पास (साहस फाउंडेशन) आई
और बताया कि मारपीट करने के बाद तीन दिन हो चुके है वो घर वापस नहीं आया है,
वो है अपने माता पिता के पास पर वो लोग बता नहीं रहे है। अपनी
आपबीती कहते हुए राधिका न जाने कितने देर तक रोती रही। सोचिए 24 साल की लड़की जो
ठीक ठाक पढ़ी लिखी है, कमाती भी है वो पिछले 2 साल से मारपीट
झेल रही है – कारण कि उसका पति पहले पति की बेटी को पालना
नहीं चाहता. हैरानी की बात ये है कि वो कमाता भी नहीं है। मैंने काफी देर तक उसके
साथ बात की, पूछा कि वो क्या चाहती है और बाद में एक वकील और
काउंसलर से भी बात कराई। उसके पास पैसे और ऐसा स्पोर्ट सिस्टम नहीं था कि वो कोर्ट
और वकील के चक्कर लगा पाए उसके लिए भी हमने सहयोग किया। राधिका ने एक बात मुझे
दृढ़ता से और बड़े आत्मविश्वास से कही, ‘दीदी, मेरी कोई गलती नहीं है, मेरे
साथ ऐसे व्यवहार नहीं होना चाहिए। और अब मैं ऐसे इंसान के साथ नहीं रहना चाहती।
मेरी बेटी पर क्या असर होगा?’
राधिका अब अपने
पति से अलग हो चुकी है,
उसके पति के खिलाफ कार्रवाई भी हुई। उसकी बेटी स्कूल जाने लगी है।
राधिका अब आत्मविश्वास और सम्मान के साथ कमाती है, अपनी बेटी
के साथ हंसती मुस्कुराती और बिना डर के रहती है।
ये
कहानी उस महिला की है जिसने बहुत हिम्मत करके, अपने लिए, अपनी बेटी के लिए ऐसे जीवन का चुनाव किया जहां वो खुलकर मुस्कुरा सकेगी,
खुद के लिए जी पाएगी।
जहां
आज जेंडर और महिला सश्कितकरण के नाम पर लोगों का पहला जवाब होता है कि जी आजकल तो
महिलाएं बहुत आगे निकल गई है, पता नहीं कौन कौन से पद पर बैठ गई है लेकिन अपने
घरों के अंदर, दफ्तर में, स्कूलों में
और रोड पर सामने होती हुई हिंसा को नजरदांज कर देते हैं। ऐसे में मुझे फ़ख्र है हर
उस लड़की, महिला और उन लोगों पर जो जेंडर की बेड़ियों को तोड़कर
समाज की झूठी रुढ़िवादी मंसूबों में सेंध लगाकर अपने जीवन को अपनी खुशियां को
चुनते हैं।
जीवन
की कीमत खुद की खुशियां और आत्मसम्मान नहीं हो सकता।
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