Saturday 22 September 2018

किशोर-किशोरियों के लिए जेंडर इंक्लूसिव और सुरक्षित क्लारुम कैसे बनाएं ?


विद्याभवन के बी.एड छात्र-छात्राओं के साथ आखिरी और सबसे जरुरी सत्र में हमने बात की किस तरह से कक्षाओं में एक ऐसा वातावरण तैयार किया जाए जहां किशोर-किशोरियां खुलकर सवाल पूछ पाएं, अपनी समस्याएं बांट पाएं और साथ ही उनको हर जरुरी जानकारी मिले ताकि किशोरावस्था का समय कन्फूज़न, सवालों, परेशानी या फिर डर में न गुजरे। 

सत्र की शुरुआत क्लास ऑफ राउडिस दिखाकर की जहां एक टीचर ने पढ़ाई का ढंग बदलकर सबसे शराराती क्लास को सही रास्ता दिखाया। किसी ने बहुत सही लिखा है कि कोई छात्र बुरा नहीं होता, पर अध्यापक जरुर गलत हो सकते हैं। अगर सही अध्यापक हो तो वो छात्र के जीवन की दिशा ही बदल सकता है- यही शिक्षा का सही मायना भी है। 



वीडियो के बाद अपने विषय की जानकारी को लेकर किशोरावस्था के मुद्दों पर कैसे समझ बनाएंगे पर माइंड मैपिंग की गई- सेल डिवीजन के जरिए प्रजनन कैसे होता है बताया जा सकता है, इन मुद्दों पर जनरल नोलेशन के सवाल रखे जा सकते हैं, निबंध के लिए इन मुद्दों को दिया जा सकता है, इतिहास विषय में महिलाओं के आज़ादी में योगदान पर बातचीत, हिंदी में कहानियों के जरिए, वाक्य बनाने के जरिए, अंग्रेजी में हम ही या शी का इस्तेमाल करते हैं उसे लेकर जेंडर पर चर्चा की जा सकती है, गणित में प्रोबलम सवाल होते हैं उसमें जेंडर आधारित कामों का हेर-फेर करके जेंडर पर समझ बनाई जा सकती है मसलन हमेशा होता है कि राम ने कार इस स्पीड पर चलाई , उसकी जगह हम सीता ने कार को इस स्पीड पर चलाया लिख सकते हैं, साथ ही नम्बरों के जरिए सेक्स रेश्यो की बात भी कर सकते हैं। 



बच्चों को पढ़ाने या समझाने के लिए लेक्चर मोड के अलावा कौन-कौन से तरीको का इस्तेमाल किया जा सकता है पर माइंड मैपिंग की गई-  क्वीज़, वाद-विवाद, प्रेजेंटेशन, फिल्म या वीडियो, डाइग्राम, माइंड मैंपिंग, नियमों पर सहमति, शेयरिंग सर्कल जहां बच्चे अपनी निजी बातें बिना झिझक के बांट पाएं, और एक ऐसा क्लासरुम कल्चर बनाए जहां सवाल पूछने पर आज़ादी हो। 

सत्र के अगले हिस्से में प्रतिभागियों को किशोरावस्था से जुड़ा एक मुद्दा चुनकर उसपर 10-15 मिनट का एक सत्र तैयार करने का निर्देश दिया गया। ये बहुत मज़ेदार रहा क्योंकि प्रतिभागियों का उत्साह देखते बन रहा था, पेपर, पैन, चार्टपेपर लेकर सभी ने एक-एक कोना पकड़ लिया। तकरीबन 10 छात्रों ने किशोरावस्था पर सत्र बनाया, तो पीयर प्रेशर और महावारी पर 1-1 छात्र ने, 4 प्रतिभागियों ने जेंडर पर सत्र तैयार किया, 7 लोगों ने जेंडर आधारित हिंसा , 4 लोगों ने बाल यौन शोषण और 2 ने बॉडी इमेज पर सत्र तैयार किया। सीमित समय के चलते हमने हर मुद्दे पर एक-एक प्रतिभागी को अपने द्वारा बनाए हुए सत्र को प्रस्तुत करने को कहा।



किशोरावस्था क्या है, इस दौरान क्या-क्या शारीरिक बदलाव होते हैं, शारीरिक तौर पर बड़े होने के क्या फायदे और नुकसान है इस पर रोशनी डाली गई। पहले प्रतिभागी ने जो बाते छोड़ी उन्हें दूसरे और तीसरे प्रतिभागी ने पूरा कर दिया। हालांकि सभी 10 प्रतिभागी अपने सत्र प्रस्तुत नहीं कर पाएं, पर जिस तरह से उन्होंने अपने सत्र के बारे में लिखा उससे पता चलता है कि उन्हें दो दिन की कार्यशाला में बताई गई बातों को बखूबी आत्मसात किया है। कई लोगों ने सवाल- जवाब का इस्तेमाल करते हुए, तो कुछ ने किशोरावस्था में ध्यान रखने वाली बातों पर जोर दिया। 



महावारी पर आधारित सत्र काफी रोचक रहा- क्योंकि जिस प्रतिभागी ने इसे प्रस्तुत किया वो काफी खुले दिमाग की लगी, उन्होंने हर सवाल का बिना झिझके जवाब दिया, कहीं ऐसा नहीं लग रहा था कि वो परेशान हो रही है, जो सवाल का जवाब नहीं आया उसके लिए उन्होंने समय भी मांगा जो मुझे बहुत अच्छा लगा।



एक प्रतिभागी ने पीयर प्रेशर को उदाहरण देते हुए समझाया जैसे लड़कों में सिगरेट पीने को लेकर, वहीं लड़कियों में कपड़े या मेकअप लेकर। 



जेंडर पर बने सत्र काफी रंग-बिरंगे, सवाल-जवाब और उदाहरणों से भरपूर रहे- जैसे क्लासरुम के अंदर आने के लिए लड़का बोलता है – क्या मैं अंदर आ सकता हूं, वहीं लड़की पूछती है- क्या मैं अंदर आ सकती हूं? भाषा के इसी पहलू को लेकर जेंडर पर बातचीत की शुरुआत हो सकती है। 
 
अलग-अलग सत्रों का वर्णन
जेंडर आधारित हिंसा को लेकर बने सत्र एक दूसरे से काफी अलग और काफी रोचक दिखे- एक प्रतिभागी ने जेंडर आधारित हिंसा को दो भागों में तोड़कर उसका मतलब समझाया, उसके अलग-अलग प्रकार बताते हुए समझाया कि कैसे ये समाज को खोखला कर रही है। दूसरे प्रतिभागी ने जेंडर आधारित हिंसा को समझाने के लिए घर और बाहर किए जाने वाले रोजमर्रा के कामों का सहारा लिया और बताया कि कोई भी ये काम कर सकता है, पर एक ही जेंडर पर उसका बोझ डालना हिंसा में आता है। तीसरे प्रतिभागी ने हिंसा को समझाते हुए हम किस तरह जेंडर आधारित हिंसा को चुनौती दे सकते हैं, उसका सामना कर सकते हैं और सबसे अहम अगर किसी के साथ ऐसा हो रहा है तब हम क्या करें पर बहुत ही सुलझे और उदाहरणों के साथ सत्र बनाया। एक प्रतिभागी ने चित्रों और सवालों के जरिए जेंडर आधारित गैरबराबरी बात की – जहां उन्होंने रोजमर्रा के काम, प्रोफेशन, हमारी दिनचर्या के बारे में विस्तार से बातचीत की।



बाल यौन शोषण पर जिस प्रतिभागी ने प्रस्तुति दी- उसने एक कहानी को फिर कुछ सवालों के साथ मुद्दे पर जानकारी सांझा की, दूसरे प्रतिभागी ने गुड टच और बैड टच के जरिए समझाया।
दो प्रतिभागियों ने उदाहरण, सवाल-जवाब और हमारे समाज में शरीर को किस तरह से देखा और स्वीकार किया जाता है को लेकर बॉडी इमेज का सत्र बनाया।


अक्सर समाज सेवी संस्थाओं पर बहुत बोझ होता है कि आपने जो काम किया है उसका क्या इम्पेक्ट रहा है, बतौर साहस हमने इस बात पर कभी गौर ही नहीं किया। हालांकि अगर इस 2 दिवसीय कार्यशाला में देखे तो ये 30 सत्र किसी इम्पेक्ट से कम नहीं है- मात्र दो दिन में बी.एड के छात्र-छात्राओं ने न केवल समाज में सबसे ज्वलनशील और गुपचुप बात करने वाले मुद्दे जैसे जेंडर, सेक्स, किशोरावस्था, माहावारी और जेंडर आधारित हिंसा पर समझ बनाई बल्कि वो इस समझ को अपने जीवन और प्रोफेशनल लाइफ में इस्तेमाल करेंगे उसका प्रतिबिंब भी दर्शाया।


वर्कशॉप के अंतिम छोर पर हमने प्रतिभागियों को अपने जीवन में जेंडर संबंधित बदलाव लाने या जेंडर संबंधित कोई ढांचा तोड़ने को लेकर एक वादा करने के लिए आमंत्रित किया, अगर वो ऐसा करना चाहे तो। 

मैं अपने आप से ये वादा करता हूं कि मैं लैंगिक भेदभाव पर रोकथाम हेतु आजीवन प्रयास करुंगा, और बाकी लोगों को भी इस संबंध में जागरुक करुंगा


मैं अपनी पत्नी को बाजार से सामान लाने और बाकी काम करने के लिए स्कूटी लाकर दूंगा, उसे ही हिसाब किताब करने की जिम्मेदारी लेनी होगी


मैं शिक्षक बनने पर देश-विदेश की नारियों की उपलब्धि के बारे में अपनी छात्राओं के साथ बात करुंगा ताकि वो भी आगे चलकर सफल हो पाएं


मैं अपने जीवन में एक बड़ा बदलाव लाना चाहती हूं। मैं अपने आपको लड़कों से कम नहीं समझूंगी, मैं अपने आप को हर काम करने के लिए भी तैयार करुंगी


अगर मैं कभी भी यौन शोषण होते हुए देखूंगी तो उसके खिलाफ आवाज़ उठाऊंगी


मैं वादा करती हूं कि किसी की यौनिक पहचान को लेकर उनके बारे में राय नहीं बनाऊंगी


बतौर अध्यापक मैं लड़के-लड़कियों को हर काम में आजादी दूंगा


जितना भी मैंने दो दिन में सीखा है उसके आधार पर मैं कभी ऐसा नहीं सोचूंगा कि ये काम लड़कियां नहीं कर सकती। अगर ऐसा कहीं सुनता हूं तो मैं वहां जेंडर आधारित भेदभाव पर बात भी करुंगा

टीचर बनने पर मैं अपने छात्र-छात्राओं के साथ सेक्स एडूकेशन पर जरुर बातचीत करुंगा

इस कार्यशाला में मैंने बहुत कुछ सीखा, सेक्स एडुकेशन को लेकर मेरी पूरी विचारधारा ही बदल गई है   

बीएड छात्र-छात्राओं के स्कूल में जेंडर, सेक्स एडुकेशन की जरुरत क्यों हैं? पर मंथन


सब कहते शिक्षा है बेहद जरुरी
जानकारी होना, जागरुक होना है अहम
पर मैं पूछूं क्या सिर्फ जानकारी होना है काफी
शिक्षा अपने तक सीमित रखने का है क्या फायदा
जानकारी को वायरल करना है जरुरी
धरा पर ज्ञान को बांटना है शिक्षा का सही मकसद

विद्याभवन के बी.एड छात्र-छात्राओं के साथ दूसरे दिन के जेंडर प्रशिक्षण की शुरुआत सिक्के के खेल से हुई। इस खेल में शारीरिक शक्ति, टीम वर्क और सूझबूझ में मजेदार समागम है जिसे प्रतिभागियों ने बखूबी खेला। नए दिन में एक नई ऊर्जा के साथ मौजूद प्रतिभागियों के साथ पिछले दिन की कार्यशाला में जेंडर, जेंडर आधारित हिंसा, पित्तृसत्ता और बाल यौन शोषण के मुद्दों पर हुई चर्चा को संक्षेप में दोबारा दोहाराया गया। 





स्कूलों में कॉम्प्रेहेंसिव सेक्सुयेलिटी एडुकेशन को लागू करने और नहीं किए जाने को लेकर हमारे देश में काफी विवाद, चर्चा और तरह तरह के सवाल उठाए जाते रहे हैं। क्योंकि ये सभी भावी अध्यापक है तो इस सत्र में हमने सोचा कि क्यों न उन कारणों पर गहन तौर पर विचार-विर्मश किया जाए जिनका सहारा लेकर कॉम्प्रेहेंसिव सेक्सुयेलिटी एडुकेशन को नहीं लागू करने पर जोर दिया जाता है। प्रतिभागियों को 6 समूहों में बांटकर एक –एक कारण दिया गया इसपर उन्हें अपने समूह में चर्चा करके अहम बिंदूओं को बड़े ग्रुप के साथ सांझा करने को कहा गया।



जेंडर और सेक्स एडुकेशन हमारी संस्कृति के खिलाफ़ है-

इन बातों को हमारे समाज में आज भी गोपनीय रखा जाता है, इसके बारे में बातचीत करना गलत समझा जाता है। इसके साथ ही प्राचीन काल से ऐसी सोच बनी हुई है कि जब पुराने समय में ऐसी शिक्षा की जरुरत नहीं थी तो अब क्यों है
वर्तमान समय में ऐसी शिक्षा का बहुत महत्व है क्योंकि इस व्यवस्था से सभी में जागरुकता उत्पन्न हैगी, जिससे शारीरिक हिंसा, दुष्कर्म जैसे अपराधों पर रोक लगेगी
ऐसी शिक्षा से रुढ़िवादी मानसिकता का खंडन होगा और समाज को एक नई दिशा मिलेगी



जेंडर और सेक्स एडुकेशन के बारे में जानकारी देने का मतलब है कि किशोर-किशोरियों को एक्सप्रेरिमेंट के लिए हरी झंडी दिखाना-
ये सही नहीं है क्योंकि बच्चों को किशोरावस्था के दौरान हो रहे मानसिक और शारीरिक परिवर्तन के बारे में बताने से वो जागरुक होंगे और इन बदलावों को लेकर सजग और सहज हो जाएंगे
इस तरह की शिक्षा से किशोरों में सही मानसिकता का विकास होगा, वो इन बदलावों को लेकर सही सोच बनाएंगे। इस तरह की शिक्षा से वो सही फैसले ले पाएंगे- मसलन कई बार लड़के दोस्तों के चक्कर में आकर शराब या नशा करने लगते हैं वो नहीं करेंगे, इससे यौन शोषण के मामलों के प्रति भी जागरुकता बढ़ेगी



इस तरह की बातें मेरे स्कूल में नहीं होती-

ऐसा नहीं है, पर इन बातों पर कभी चर्चा नहीं होती, अगर सामने कोई बात आ जाए तो उसे टीचर अनसुना कर देते है
बच्चों को विद्यालय या घर में जब जानकारी नहीं दी जाती है तो वो नेट पर इन बातों को सर्च करते हैं जहां हर तरह की जानकारी उपलब्ध रहती है- सही और गलत, जाहिर है बच्चे गुमराह हो जाते है, कई बार गलत वेबसाइट पर भी चले जाते है
जब किशोरावस्था में शरीर का विकास होता है तो वे घबरा जाते है, मन में तरह तरह की बातें आती है, कि मेरे साथ ये क्यों हो रहा है, क्या मैं बीमार हूं, क्या ऐसा सभी के साथ होता होगा। इस डर को, कन्फूज़न का समाधान नहीं होने पर बच्चे हीनभावनाग्रस्त भी हो सकते हैं


अगर जेंडर, सेक्स एडुकेशन के बारे में मैं अपने छात्रों के साथ बातचीत करता हूं/करती हूं तो उनके माता-पिता क्या कहेंगे?

कुछ छात्र जो जागरुक है और इस बारे में जानकारी चाहते है तो वो अपने परिवार में अपने माता-पिता या किसी बड़े से इस बारे में पूछेंगे। अगर वो लोग ठीक से शिक्षित है तो वो अपना अनुभव अपने बच्चों के साथ जरुर बाटेंगे
ऐसी घटनाएं जो उनके साथ घटित हुई है वो उनके बच्चों के साथ भविष्य में न हो, इसी को ध्यान में रखते हुए अपने बच्चों के साथ खुलकर बातचीत करेंगे और समाज को सुरक्षित बनाने में योगदान देंगे
वर्तमान में अभी भी ऐसे इलाके है जहां बिलकुल जागरुकता नहीं है तो वहां इस बारे में बातचीत करने पर सवाल खड़े किए जाएंगे और इसे गलत समझा जाएगा
ये भी हो सकता है कि अगर माता-पिता के साथ कोई घटना घटित हुई तो वो अपने बच्चों के साथ उस बारे में बात न कर पाएं।

अध्यापकों के पास पहले ही इतना सारा काम होता है, इन मुद्दों पर बातचीत करना मतलब एक और विषय बढ़ा देना-

हमें नहीं लगता कि इन मुद्दों पर बात करने का मतलब एक और विषय बढ़ा देना होगा क्य़ोंकि स्कूलों में ऐसी शिक्षा देना सामाजिक विकास के लिए बेहद जरुरी है
जेंडर और सेक्स एडुकेशन तो करिकुलम का हिस्सा होना चाहिए
ये अहम जानकारी है जो किशोर-किशोरियों के जीवन को बदल सकती है, तो कोर्स में हो या नहीं पर इस जानकारी को उपलब्ध कराना चाहिए
इस जानकारी के अभाव में बाल यौन शोषण के मामले बढ़ेंगे

हम सेक्स शब्द का इस्तेमाल क्यों करें- इसकी जगह कोई और शब्द का इस्तेमाल क्यों नहीं हो सकता-

समाज के मुताबकि सेक्स शब्द को गलत माना जाता है, लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। क्योंकि सेक्स एक तरह से प्यार जताने का तरीका है। हमारे समाज में सेक्स के बारे में सोचना और बात करना ही आपके चरित्र पर सवाल खड़े कर देता है। लोग कहते हैं कि ये कैसा बच्चा है इसमें संस्कार नहीं है


किशोरावस्था में इन मुद्दों पर क्यों बात की जाए, इसपर समझ बनाने का सबसे सरल रास्ता है कि हम अपने निजी जीवन में जब जब किशोरावस्था में थे उस दौरान हुए अनुभव पर चिंतन करें। इसी बात को ध्यान में रखते हुए अगले सत्र में हमने प्रतिभागियों को 5 अलग-अलग समूहों में बांटा और उन्हें किशोरावस्था, सेक्स, महावारी आदि मुद्दों पर आधारित कुछ सवाल दिए और उन्हें अपने निजी जीवन में छांकने के लिए आमंत्रित किया।

ग्रुप 1- किशोरावस्था

शारीरिक तौर पर बड़े होने पर हमें लगने लगता है कि अब बड़े हो गए हर बात में हमें छूट मिल जाएगी, हमारी आवाज़ में परिवर्तन होने लगता है, लड़कों के दाढ़ी-मूंछे आने पर उन्हें लगता है कि वो भी पापा की तरह बड़े हो गए हैं।
बड़े होने की बुरी बातें ये कि लड़कियों को बताया जाता है कि अब उन्हें सूट-सलवार पहनना चाहिए, लड़कों के साथ मत घूमों, अनजान लोगों पर विश्वास मत करो, देर शाम से पहले घर आ जाना
किशोरावस्था के दौरान होने वाले बदलावों के बारे में तो किसी ने नहीं बताया था पर विज्ञान के टीचर ने हमें यौनांगों के बारे में जरुर बताया। हमारे समूह में एक या दो लोगों को ही ये जानकारी दी गई थी।
अक्सर टीचर प्रजनन स्वास्थ्य से संबंधित चैप्टर को तो पढ़ाते ही नहीं है, हमें स्वंय ही पढ़ना होता है, पर अपने आप ज्यादा कुछ समझ नहीं आया।


ग्रुप 2- सेक्स

क्लास 8वीं में विज्ञान में सेक्स शब्द सबसे पहली बार सुना था, तब उम्र 11-13 साल रही होगी। चैप्टर संबंधित सवाल तो पूछे उसके अलावा मन में उठ रहे सवाल नहीं पूछ पाए क्योंकि झिझक होती थी
ये शब्द की चर्चा ज्यादातर दोस्त, सीनीयर भइया, एडल्ट मूवी/पोर्न, कुछ लोग जिनकी शादी हो जाती है वो अपने अनुभव शेयर करते हैं- उनसे जरुर सेक्स संबंधित सवालों के जवाब मिले


ग्रुप 3- जेंडर
ज्यादातर लड़कियों पर दवाब होता है परिवार के मुताबकि होम साइन्स लेने का, लड़कों को ऐसे सब्जेक्ट्स लेने के लिए कहा जाता है जिससे वो कहीं अच्छी नौकरी प्राप्त कर पाएं
जब हम पढ़ाई करते थे तो हां लड़के बाहर के खेल जैसे क्रिकेट वगैरह खेलते थे और लड़कियों को ऐसे खेल नहीं खेलने दिए जाते
जिस समाज में जब रहते हैं वो लड़कियों के उठने-बैठते, खान-पान और पहनावे पर रोक-टोक लगाई जाती है

प्रतिभागियों के दो समूह काफी मज़ेदार रहे- ग्रुप 4 जिन्हें बॉडी इमेज और पीयर प्रेशर के बारे में चर्चा करने के लिए कहा गया था। इस ग्रुप की खास बात ये थी कि प्रतिभागी इन शब्दों से ये वाकिफ नहीं थे पर शब्दों का अर्थ बताने के बाद इन्हें बेहद मज़ेदार तरीके से अपनी चर्चा को पूरे समूह के सामने रखा-


किशोरावस्था में पीयर प्रेशर क्या होता है, उस वक्त हमें इस बारे में पता नहीं था। तब नए नए लोगों से मिलने, दोस्त बनाने की इच्छा रहती थी, हम उनकी स्टाइल, ड्रेसिंग के तरीके, बातचीत से प्रभावित होते थे। कई बार हम उन्हीं की तरह चीजें करने लगते थे, चाहे नए कपड़े पहनना हो या कोई नई आदत में पड़ जाना।
इसके सकारात्मक परिणाम है- नए लोगों से दोस्ती करने पर हमे नई चीजों के बारे में जानकारी मिलती है- जैसे बात कैसे करते हैं, लाइफस्टाइल। अच्छे दोस्त हो तो हम अच्छी आदते सीखते हैं- दूसरों का सम्मान करते हैं, नई चीजों में भाग लेते हैं और आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित भी होते हैं।
वहीं पीयर प्रेशर के नकारात्मक परिणाम भी है- हम बुरी आदतें सीखते है- धूम्रपान, शराब पीना, नशा करना। परिवारवालों की इज्जत न करना, अपनी मनमर्जी से फैसले लेना
एक इंसान के शरीर को लेकर जो उसी धारणा होती है उसे बॉडी इमेज कहते हैं। किशोरावास्था में अभिनेता, अभिनेत्री को देखकर बॉडी बनाना, जिम जाना, मेकअप करना, हेयर स्टाइल बनाना काफी बढ़ता जा रहा है
बॉडी इमेज के नगेटिव परिणाम-अपने शरीर को देखते हुए सही धारणा नहीं बनाने की वजह से आत्मविश्वास में कमी आती है, हम अपने आप को सही तरीके से अभिव्यक्त नहीं कर पाते, पब्लिक या लोगों के बीच घबराहट होना, खुद को कम आंकना, अपने शरीर को सुंदर बनाने के लिए दवाइयों और सर्जरी का सहारा लेना, परिवारवालों और शुभचिंतकों को नजरांदाज करना, स्वंय की पहचान पर सवाल खड़े करना



ग्रुप 5- महावारी: इस समूह में 2 लड़कियां और 3 लड़के थे।
जब पहली बार महावारी हुई थी तो हमें कुछ नहीं पता था, समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है। इससे काफी घबराहट हुई, डर लगा पर बाद में भी किसी ने कुछ समझाया नहीं।
महावारी के दौरान किचन, मंदिर पर जाने के लिए मना किया जाता है। पीने के पानी और खाने के बर्तनों को छूने पर मनाही होती है
कई जगहों पर तो बिस्तर अलग होते हैं, कई लड़कियों को तो चटाई पर सोने को कहा जाता है
अगर पीरियड्स में हम किसी को छू ले तो वो वो शख्स नहाने चला जाता था। बार बार एहसास दिलाया जाता है कि महावारी के दौरान हम अपवित्र हैं।
लड़कों को साइंस टीचर के द्वारा महावारी के बारे में पता चला, क्योंकि ये लड़कियों को होती है तो लड़कों ने इसे जानने में कोई रुचि नहीं दिखाई।


इस ग्रुप की चर्चा से पता चला कि लड़कों को महावारी क्या है, उसके बारे में ज्यादा कुछ जानकारी नहीं है, तो हमने पूछा कि यहां कितने लड़कों को पता है कि महावारी होती क्या है- जवाब में सिर्फ 3 लड़कों ने हाथ उठाया। जब महावारी को विस्तार से बताने के लिए कहा गया तो 3 हाथ से 1 हाथ हो गया-
हमें महावारी के बारे में जानकारी इसलिए होनी चाहिए क्योंकि हम अध्यापक बनने वाले है तो कोई हमसे पूछेगा तो हम उसे जवाब दे पाएंगे
मुझे ये बताया गया था कि जब लड़कियों को महावारी होती है तब सेक्स नहीं करना चाहिए
हम लोगों की शादी होगी, अगर मुझे ये ही नहीं पता है कि महावारी क्या है, तो हो सकता है वो मुझे छोड़ दे क्योंकि इतनी आसान चीज भी नहीं पता
ये पूछने पर कि इस वक्त अगर महावारी के बारे में हम जानकारी देते हैं तो उसका उन्हें क्या फायदा होगा तब एक पुरुष प्रतिभागी ने बेहतरीन जवाब दिया-
हमारी छोटी बहन है, उसे महावारी होगी तो उसे सही जानकारी देंगे ताकि वो घबराए नहीं। उनकी मदद कर सकते हैं, सैनेटरी पैड लाके दे सकते हैं।

इन दो एक्टिविटी के जरिए मुझे समझ में आया कि अगर सही सवाल, सही तरीके से पूछा जाए तो किसी भी मुद्दे पर चाहे वो कितना भी सामाजिक धब्बे की तरह देखा जाता हो, उसपर बातचीत की जा सकती है, उसपर समझ बनाई जा सकती है।


साहस जब किशोर-किशोरियों के साथ काम करता है, तो हम अलग अलग मुद्दों पर वीडियो या शार्ट फिल्म दिखाते हैं, हमें लगता है कि फिल्म के जरिए बातचीत और आसान हो जाती है। इसी के मद्देनजर हमने प्रतिभागियों को सेक्स, कंडोम, महावारी, बाल यौन शोषण जैसे अहम मुद्दों पर फिल्म दिखाई – ये एक तरह का टूल है जिसका इस्तेमाल वो अपने स्कूल में कर सकते हैं इन मुद्दों पर बातचीत करने के लिए। प्रतिभागियों ने फिल्म को बड़े चाव से देखा, महावारी पर आधारित फिल्म देखकर लड़कों की जानकारी में बढ़ावा हुआ और उन्हें ये भी समझ आया कि इस मुद्दे पर उन्हें जागरुक होना कितना जरुरी है। कोमल देखने के दौरान प्रतिभागी काफी गंभीर नजर आए, मानो वो खुद के जीवन में छांक कर देख रहे हो- ऐसे में वीडियो के आखिर में एक प्रतिभागी ने पूछा, अगर किसी के साथ बाल यौन शोषण हो चुका हो तो वो क्या करें? कैसे उससे निपटे। ये सवाल बेहद गंभीर और जरुरी रहा- इसलिए हमने मुद्दे की संवेदनशीलता, कैसे मदद मिले पर विस्तार से चर्चा की, सबसे अच्छी बात ये है कि विद्याभवन में वेलनैस सेंटर है जहां हर उम्र के स्टूडेंट को स्पोर्ट किया जाता है, उसे बात करने और उन्हें किस तरह मदद मिले का पूरा इंतेजाम हैं।
यानि हमारे सत्र में मिली जानकारी को बनाए रखने और प्रतिभागियों को हर संभव मदद मिलने की तैयारी भी है। प्रतिभागी काफी खुलकर अपनी बाते रखते हुए, अलग-अलग सवाल पूछते नजर आए तो अपने आप में काफी अच्छा रहा।