Saturday 22 September 2018

किशोर-किशोरियों के लिए जेंडर इंक्लूसिव और सुरक्षित क्लारुम कैसे बनाएं ?


विद्याभवन के बी.एड छात्र-छात्राओं के साथ आखिरी और सबसे जरुरी सत्र में हमने बात की किस तरह से कक्षाओं में एक ऐसा वातावरण तैयार किया जाए जहां किशोर-किशोरियां खुलकर सवाल पूछ पाएं, अपनी समस्याएं बांट पाएं और साथ ही उनको हर जरुरी जानकारी मिले ताकि किशोरावस्था का समय कन्फूज़न, सवालों, परेशानी या फिर डर में न गुजरे। 

सत्र की शुरुआत क्लास ऑफ राउडिस दिखाकर की जहां एक टीचर ने पढ़ाई का ढंग बदलकर सबसे शराराती क्लास को सही रास्ता दिखाया। किसी ने बहुत सही लिखा है कि कोई छात्र बुरा नहीं होता, पर अध्यापक जरुर गलत हो सकते हैं। अगर सही अध्यापक हो तो वो छात्र के जीवन की दिशा ही बदल सकता है- यही शिक्षा का सही मायना भी है। 



वीडियो के बाद अपने विषय की जानकारी को लेकर किशोरावस्था के मुद्दों पर कैसे समझ बनाएंगे पर माइंड मैपिंग की गई- सेल डिवीजन के जरिए प्रजनन कैसे होता है बताया जा सकता है, इन मुद्दों पर जनरल नोलेशन के सवाल रखे जा सकते हैं, निबंध के लिए इन मुद्दों को दिया जा सकता है, इतिहास विषय में महिलाओं के आज़ादी में योगदान पर बातचीत, हिंदी में कहानियों के जरिए, वाक्य बनाने के जरिए, अंग्रेजी में हम ही या शी का इस्तेमाल करते हैं उसे लेकर जेंडर पर चर्चा की जा सकती है, गणित में प्रोबलम सवाल होते हैं उसमें जेंडर आधारित कामों का हेर-फेर करके जेंडर पर समझ बनाई जा सकती है मसलन हमेशा होता है कि राम ने कार इस स्पीड पर चलाई , उसकी जगह हम सीता ने कार को इस स्पीड पर चलाया लिख सकते हैं, साथ ही नम्बरों के जरिए सेक्स रेश्यो की बात भी कर सकते हैं। 



बच्चों को पढ़ाने या समझाने के लिए लेक्चर मोड के अलावा कौन-कौन से तरीको का इस्तेमाल किया जा सकता है पर माइंड मैपिंग की गई-  क्वीज़, वाद-विवाद, प्रेजेंटेशन, फिल्म या वीडियो, डाइग्राम, माइंड मैंपिंग, नियमों पर सहमति, शेयरिंग सर्कल जहां बच्चे अपनी निजी बातें बिना झिझक के बांट पाएं, और एक ऐसा क्लासरुम कल्चर बनाए जहां सवाल पूछने पर आज़ादी हो। 

सत्र के अगले हिस्से में प्रतिभागियों को किशोरावस्था से जुड़ा एक मुद्दा चुनकर उसपर 10-15 मिनट का एक सत्र तैयार करने का निर्देश दिया गया। ये बहुत मज़ेदार रहा क्योंकि प्रतिभागियों का उत्साह देखते बन रहा था, पेपर, पैन, चार्टपेपर लेकर सभी ने एक-एक कोना पकड़ लिया। तकरीबन 10 छात्रों ने किशोरावस्था पर सत्र बनाया, तो पीयर प्रेशर और महावारी पर 1-1 छात्र ने, 4 प्रतिभागियों ने जेंडर पर सत्र तैयार किया, 7 लोगों ने जेंडर आधारित हिंसा , 4 लोगों ने बाल यौन शोषण और 2 ने बॉडी इमेज पर सत्र तैयार किया। सीमित समय के चलते हमने हर मुद्दे पर एक-एक प्रतिभागी को अपने द्वारा बनाए हुए सत्र को प्रस्तुत करने को कहा।



किशोरावस्था क्या है, इस दौरान क्या-क्या शारीरिक बदलाव होते हैं, शारीरिक तौर पर बड़े होने के क्या फायदे और नुकसान है इस पर रोशनी डाली गई। पहले प्रतिभागी ने जो बाते छोड़ी उन्हें दूसरे और तीसरे प्रतिभागी ने पूरा कर दिया। हालांकि सभी 10 प्रतिभागी अपने सत्र प्रस्तुत नहीं कर पाएं, पर जिस तरह से उन्होंने अपने सत्र के बारे में लिखा उससे पता चलता है कि उन्हें दो दिन की कार्यशाला में बताई गई बातों को बखूबी आत्मसात किया है। कई लोगों ने सवाल- जवाब का इस्तेमाल करते हुए, तो कुछ ने किशोरावस्था में ध्यान रखने वाली बातों पर जोर दिया। 



महावारी पर आधारित सत्र काफी रोचक रहा- क्योंकि जिस प्रतिभागी ने इसे प्रस्तुत किया वो काफी खुले दिमाग की लगी, उन्होंने हर सवाल का बिना झिझके जवाब दिया, कहीं ऐसा नहीं लग रहा था कि वो परेशान हो रही है, जो सवाल का जवाब नहीं आया उसके लिए उन्होंने समय भी मांगा जो मुझे बहुत अच्छा लगा।



एक प्रतिभागी ने पीयर प्रेशर को उदाहरण देते हुए समझाया जैसे लड़कों में सिगरेट पीने को लेकर, वहीं लड़कियों में कपड़े या मेकअप लेकर। 



जेंडर पर बने सत्र काफी रंग-बिरंगे, सवाल-जवाब और उदाहरणों से भरपूर रहे- जैसे क्लासरुम के अंदर आने के लिए लड़का बोलता है – क्या मैं अंदर आ सकता हूं, वहीं लड़की पूछती है- क्या मैं अंदर आ सकती हूं? भाषा के इसी पहलू को लेकर जेंडर पर बातचीत की शुरुआत हो सकती है। 
 
अलग-अलग सत्रों का वर्णन
जेंडर आधारित हिंसा को लेकर बने सत्र एक दूसरे से काफी अलग और काफी रोचक दिखे- एक प्रतिभागी ने जेंडर आधारित हिंसा को दो भागों में तोड़कर उसका मतलब समझाया, उसके अलग-अलग प्रकार बताते हुए समझाया कि कैसे ये समाज को खोखला कर रही है। दूसरे प्रतिभागी ने जेंडर आधारित हिंसा को समझाने के लिए घर और बाहर किए जाने वाले रोजमर्रा के कामों का सहारा लिया और बताया कि कोई भी ये काम कर सकता है, पर एक ही जेंडर पर उसका बोझ डालना हिंसा में आता है। तीसरे प्रतिभागी ने हिंसा को समझाते हुए हम किस तरह जेंडर आधारित हिंसा को चुनौती दे सकते हैं, उसका सामना कर सकते हैं और सबसे अहम अगर किसी के साथ ऐसा हो रहा है तब हम क्या करें पर बहुत ही सुलझे और उदाहरणों के साथ सत्र बनाया। एक प्रतिभागी ने चित्रों और सवालों के जरिए जेंडर आधारित गैरबराबरी बात की – जहां उन्होंने रोजमर्रा के काम, प्रोफेशन, हमारी दिनचर्या के बारे में विस्तार से बातचीत की।



बाल यौन शोषण पर जिस प्रतिभागी ने प्रस्तुति दी- उसने एक कहानी को फिर कुछ सवालों के साथ मुद्दे पर जानकारी सांझा की, दूसरे प्रतिभागी ने गुड टच और बैड टच के जरिए समझाया।
दो प्रतिभागियों ने उदाहरण, सवाल-जवाब और हमारे समाज में शरीर को किस तरह से देखा और स्वीकार किया जाता है को लेकर बॉडी इमेज का सत्र बनाया।


अक्सर समाज सेवी संस्थाओं पर बहुत बोझ होता है कि आपने जो काम किया है उसका क्या इम्पेक्ट रहा है, बतौर साहस हमने इस बात पर कभी गौर ही नहीं किया। हालांकि अगर इस 2 दिवसीय कार्यशाला में देखे तो ये 30 सत्र किसी इम्पेक्ट से कम नहीं है- मात्र दो दिन में बी.एड के छात्र-छात्राओं ने न केवल समाज में सबसे ज्वलनशील और गुपचुप बात करने वाले मुद्दे जैसे जेंडर, सेक्स, किशोरावस्था, माहावारी और जेंडर आधारित हिंसा पर समझ बनाई बल्कि वो इस समझ को अपने जीवन और प्रोफेशनल लाइफ में इस्तेमाल करेंगे उसका प्रतिबिंब भी दर्शाया।


वर्कशॉप के अंतिम छोर पर हमने प्रतिभागियों को अपने जीवन में जेंडर संबंधित बदलाव लाने या जेंडर संबंधित कोई ढांचा तोड़ने को लेकर एक वादा करने के लिए आमंत्रित किया, अगर वो ऐसा करना चाहे तो। 

मैं अपने आप से ये वादा करता हूं कि मैं लैंगिक भेदभाव पर रोकथाम हेतु आजीवन प्रयास करुंगा, और बाकी लोगों को भी इस संबंध में जागरुक करुंगा


मैं अपनी पत्नी को बाजार से सामान लाने और बाकी काम करने के लिए स्कूटी लाकर दूंगा, उसे ही हिसाब किताब करने की जिम्मेदारी लेनी होगी


मैं शिक्षक बनने पर देश-विदेश की नारियों की उपलब्धि के बारे में अपनी छात्राओं के साथ बात करुंगा ताकि वो भी आगे चलकर सफल हो पाएं


मैं अपने जीवन में एक बड़ा बदलाव लाना चाहती हूं। मैं अपने आपको लड़कों से कम नहीं समझूंगी, मैं अपने आप को हर काम करने के लिए भी तैयार करुंगी


अगर मैं कभी भी यौन शोषण होते हुए देखूंगी तो उसके खिलाफ आवाज़ उठाऊंगी


मैं वादा करती हूं कि किसी की यौनिक पहचान को लेकर उनके बारे में राय नहीं बनाऊंगी


बतौर अध्यापक मैं लड़के-लड़कियों को हर काम में आजादी दूंगा


जितना भी मैंने दो दिन में सीखा है उसके आधार पर मैं कभी ऐसा नहीं सोचूंगा कि ये काम लड़कियां नहीं कर सकती। अगर ऐसा कहीं सुनता हूं तो मैं वहां जेंडर आधारित भेदभाव पर बात भी करुंगा

टीचर बनने पर मैं अपने छात्र-छात्राओं के साथ सेक्स एडूकेशन पर जरुर बातचीत करुंगा

इस कार्यशाला में मैंने बहुत कुछ सीखा, सेक्स एडुकेशन को लेकर मेरी पूरी विचारधारा ही बदल गई है   

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