‘लड़कियों के पास से फोन मिल रहे हैं, पता
नहीं किस से बातचीत करती हैं।’
‘मेरी मां ने कहा कि उसके साथ मत रहा करो,
वो सही लड़की नहीं है।’
‘अगर लड़कियां गलत करेंगी तो भाई और पिता
से मार तो खाएंगी ही’
‘गांव का माहौल अच्छा नहीं है इसलिए पापा
ने छर्रा की कॉलेज में जाने से मना कर दिया है।’
ऐसी अफवाहों और बातों का गांव में आज से नहीं सालो साल से चलन रहा है, लड़कियों को बुनियादी सुविधाओं और अधिकारों से दूर रखने के लिए उनके किरदार पर सवाल उठाना, घर के काम में झोंक देना, मारपीट करना और कम उम्र में शादी करवा देना। पिछले 4 सालों से हम इसी मानसिकता से लड़ने की कोशिश में जुटे हैं पर हमारी चुनौतियां दुगनी हो जाती है जब यही बातें हमारे कार्यक्रम में आने वाली किशोरियां कई अहम सत्रों के बाद बोलती है। पिछले दो महीनों से जितने बार भी बातचीत हुई यही बातें निकल कर – एक दूसरे से ईष्या, दूसरों के बारे में अफवाह फैलाना, इधर की बात उधर करना, एक समुदाय की भावना से बहुत परे होना – ऐसे में हमने अपना प्लान ऑफ एक्शन थोड़ा बदला और सोचा कि कार्यशाला की जगह एक फिल्म दिखाई जाए। मजे की बात ये है कि बोर्ड की परीक्षा में सफल हुई किशोरियों के लिए आयोजित समारोह के तुरंत बाद हमारी नजर फिल्म लापता लेडीज पर पड़ी। इस फिल्म में हमारे समुदाय में आने वाली हर चुनौती, समस्या और किशोरियों को पढ़ाई के लिए प्रेरित करने समेत कई मुद्दों के जवाब थे।
बस फिर क्या था हमने फिल्म स्क्रीनिंग की
तैयारी शुरु कर दी। साहसी गर्ल्स कार्यक्रम में आने वाली एक किशोरी के घर में
स्मार्ट टीवी थी, तो हमने तय किया कि कार्यक्रम वहीं आयोजित किया जाएगा। बिजली की
समस्या काफी है तो हमने किसी तरह इन्वर्टर का इंतजाम भी कर लिया। बड़े उत्साह से
हम गांव पहुंचे, जहां फिल्म दिखाई जाने वाली थी किशोरियां पहले ही वहां पहुंच चुकी
थी। जो हम डिजाइन करते हैं और जो जमीनी हकीकत है वो काफी अलग होती है – फिल्ड की
चुनौतियां इतनी है कि गांव में फिल्म दिखाना भी किसी पहाड़ पर चढ़ने से कम नहीं
है। तकरीबन 1 घंटे तक लगातार प्रयास करने पर भी फिल्म बड़ी स्क्रीन पर नहीं चली –
ऐसे में हमारे पास दो ही तरीके थे – एक की फिल्म ही न दिखाएं दूसरा कि कोई तरकीब
ऐसी हो कि फिल्म भी दिखा पाएं औऱ चर्चा भी हो पाएं।
हमने फैसला लिया कि हमारे पास 3
स्मार्टफोन है – छोटे छोटे समूहों में किशोरियां ये फिल्म बैठकर देख ले। पहले तो
थोड़ी मुश्किल हुई पर बाद भी सभी प्रतिभागी फिल्म दे पाएं। लम्बी फिल्म होने की
वजह से और कार्यक्रम देरी से शुरु होने की वजह से काफी विलंब हो चुका था ऐसे में
कई किशोरियों के घर से बोला गया जल्दी वापस आने के लिए। हालांकि फिल्म में रुचि के
कारण सभी लोग डटे रहे।
फिल्म खत्म होते ही सभी गोले में वापस आए,
सभी मुस्कुरा रहे थे और आपस में बात कर रहे थे। ये पूछने पर कि आपको फिल्म कैसी
लगी और फिल्म से क्या क्या सीखा, किशोरियों ने बताया –
‘जया की बहादुरी की वजह से वो खुद भी बच
पाई और फूल की भी मदद कर पाई’
‘ये जया का दिमाग और उसके पढ़े लिखे होने
की वजह से ही फूल अपने घर वापस हो पाई। अगर वो चित्र नहीं बनवाती, फोन नम्बर नहीं
लिखती तो फूल का कैसे पता चलता’
‘पढ़ना बहुत ज्यादा जरुरी है’
‘घूंघट की प्रथा की वजह से फूल गुम हो जाती
है, उसे अपनी पति का नाम और गांव का नाम पता होता तो वो आराम से घर आ सकती थी।
दीदी ये तो यहां भी होता है’
‘जब फूल वापस आती है तो वो जोर से अपने पति
का नाम लेकर बुलाती है। अगर तब भी वो पुरानी बातों में विश्वास करती तो फिर एक बार
अपने पति से नहीं मिल पाती’
‘दोनों लड़कियों की कहानी अच्छी थी, आखिर
में दोनों के सपने पूरे हुए’
‘फूल जब वापस आई तो मुझे लगता है कि वो
जरुर कुछ काम करेगी’
‘पुलिस ने मदद की, उसके पति से बचाया और
पढ़ने के लिए भी कहा’
सभी किशोरियों को जया का किरदार बेहद पसंद
आया। उसकी पढ़ाई, लगन और सही मौके पर सही फैसले लेने की वजह से उसने खुद को और फूल
को बचा लिया। मजे की बात ये है कि फिल्म के आखिर में घर में मौजूद एक महिला ने कहा
कि अब तो दोनों लड़कियां अपने अपने पति के घर में जाएंगी तभी एक 12 साल की लड़की
ने बोला, ‘नहीं जया आगे की पढ़ाई पूरी करने के लिए
देहरादून जाएगी। अपने पति के पास नहीं।’
जिस
भावना की तलाश हम कर रहे हैं वो इन साहसी गर्ल्स में है बस उसे निखारने की जरुरत
है। डिजिटल इंडिया में हमने एक फिल्म दिखाने के लिए जी तोड़ मेहनत की, पता नहीं
सरकारी आकंड़े कहां लिए जाते हैं जो ये कहते हैं कि गांव में पढ़ाई भी डिजिटल
माध्यम से हो रही है। खैर हम और साहसी किशोरियां हर रोज किसी न किसी बंधन और
बेड़ियों को तोड़ते हुए आगे की नींव रख रहे हैं ताकि अपने सपनों तक पहुंच पाएं।
‘दीदी, फिल्म में ये भी अच्छा दिखाया कि
कैसे अगर हम आगे पढ़ते हैं, तो हम न सिर्फ खुद की मदद कर सकते हैं बल्कि दूसरों का
रास्ता भी आसान कर सकते हैं। आखिर में जब सब जया को छोड़ने के लिए जा रहे थे तो
मुझे बहुत अच्छा लगा।’
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