हमारे देश का बहुत बड़ा हिस्सा ग्रामीण अंचलों
में बसता है लेकिन आज भी विकास के बड़े बड़े वादों और दावों के बीच यहां बसने वाले
लोग बुनियादी सुविधाओं से महरुम हैं। गांव में सरकारी स्कूल होते हुए भी अध्यापकों
की कमी, गांववालों का अविश्वास, भ्रांतियों की भरमार और आखिर में महज 5वीं तक
क्लास के चलते गांव के बच्चे बुनियादी संपूर्ण शिक्षा पूरी नहीं कर पाते।
मुश्किलें तब और बढ़ जाती है जब आसपास प्राइवेट स्कूल खोल दिए जाते हैं, अध्यापकों
के नाम पर बेहद कम सैलरी में युवाओं को पद में रखा जाता है जिन्होंने खुद डिसटेन्स
से ग्रेजुएशन बड़ी मुश्किल से पूरी की होती है – ऐसे में शहर की देखादेखी ग्रामीण
अपने बच्चों को सरकारी स्कूल न भेजते हुए प्राइवेट स्कूल भेजते हैं। और शिक्षा का
ये चक्र यूं ही चलता रहता है। ये एक और वजह से जिससे लड़कियां आगे नहीं पढ़ पा
रही। पिछले 1 साल से साहसी गर्ल्स भी इसी समस्या से जूझ रही है – कुछ लड़कियां ऐसी
है जिन्हें 10वीं के बाद सीधे 12वीं के फॉर्म भरे, गांव के प्राइवेट स्कूल में
एडमिशन तो ले लिया लेकिन 9वीं से 12वीं तक की कोई क्लास ही नहीं लग रही।
ऐसे में साहस की टीम ने STEM विषयों के लिए खासकर अध्यापकों को तलाशना शुरु
किया। बीच में 1-2 लोग तैयार तो हुए पर वो ज्यादा दिनों तक पढ़ा नहीं पाएं। काफी
कोशिशों के बाद हमारी मुलाकात ग्रामीण युवा अनमोल से हुई तो सरकारी परिक्षाओं की
तैयारी कर रहा है और साथ साथ बच्चों को पढ़ाने का काम भी करता है। छोटे से
इंटरव्यू के बाद दिसंबर की शुरुआत अफ्टर स्कूल प्रोग्राम से हुई जहां 12 किशोरियों
ने एडमिशन लिया। अनमोल और इन 12 किशोरियों की लगातार मेहनत का असर फाइनल परिक्षाओं
में दिखा जहां 12वीं में एक किशोरी और 10वीं की 4 छात्राओं ने बेहतरीन नम्बर लाएं।
साहसी गर्ल्स की इसी सफलता को मनाने के लिए हमने एक दिवसीय कार्यक्रम आयोजित करने
का प्लान बनाया। इस खुशी को और बढ़ाने के लिए हमारे काफी समय से समर्थक रहे डोनर
और मेरे पूर्व सहपाठी ने 5 डिजीटल घड़ियां किशोरियों को उपहर स्वरुप देने के लिए दिल्ली
भिजवाई।
कार्यक्रम के दिन हम गांव में पहुंचने ही वाले थे
तब पता चला कि एक किशोरी के घर में विवाद हो गया है – खुशी के माहौल में किशोरी
दुखी होगी इस वजह से हमारे टीम के दो सदस्य वहां पहुंचे। विवाद मामूली था, तो
जल्दी ही सुलझ गया इसके बाद टीम किशोरियों को मोबाइलाज़ करने में जुट गई। जब
किशोरियां वेन्यू की तरफ बढ़ रही थी तब चलते चलते तीन लड़कियां एक दूसरे के साथ
लड़ने लगी – कुछ ही समय में विवाद ने उग्र रुप ले लिया। टीम ने किसी तरह समाजाइश
करते हुए उन्हें वेन्यू तक पहुंचने के लिए कहा। रिपोर्ट के पन्नों पर, नम्बरों की
चमक धमक में अक्सर चाहे सरकार हो या गैर सरकारी संस्थाएं वो ये चुनौतियां जो फिल्ड
पर रोजमर्रा होती है उसे नजरदांज कर देती है लेकिन एक समुदाय के लिए ये बातें
भूलने वाली नहीं है।
हम जिस अवसर को उत्सव के तौर पर मनाना चाहते थे
उसे कुछ देर के लिए अलग कर इस विवाद पर चर्चा की। ये पूछने पर कि क्या हुआ, किस
बात पर लड़ाई की शुरुआत हुई तो एकदम चुप्पी छा गई। कोई भी प्रतिभागी बोलने को
तैयार नहीं था – ऐसे में एक लड़की ने जो विवाद का हिस्सा थी उसने कहा कि मेरा मां
ने दूसरी लड़की से दूरी बनाए रखने को कहा है। इतना बोलते ही वो दूसरी लड़की और
गुस्से से बोली मेरा परिवार भी यही कहता है कि तुम से दूर रहो, अगर तुम्हारे
परिवार की इज्जत है तो हमारे परिवार की भी है। ये बातचीत कुछ पिछले महीने हुए
कार्यक्रम के बाद की बातचीत की तरह लग रही थी।
ये एक भयनाक सच्चाई है हमारे समाज की जहां किशोर
और किशोरियां समाज में फैली कुरीतियों और पितृसत्ता का प्रतिबिंब बनते जा रहे हैं।
हमारी कोशिश है इस विषम चक्र को तोड़ना ताकि मौजूदा पीढ़ि खुद का विकास कर पाएं और
आगे के लिए एक मजबूत धरातल तैयार करें। खैर हमारी बातचीत आगे बढ़ती इसी बीच STEM विषय़ पढ़ाने वाले अध्यापक कार्यक्रम में हिस्सा
लेने पहुंच गए और इस बातचीत पर विराम लगा दिया गया।
समारोह के शुरुआत में तीनों सफल छात्राओं ने
बताया कि परिणाम पहली बार जब उन्हें पता चला तो कैसा लगा। 12वीं की परीक्षा पास
करने वाली छात्रा के आंखों में आंसू थे, उसने बताया कि रिजल्ट ठीक रहा पर उसे
ज्यादा नम्बर की उम्मीद थी। मैं ये सुनकर बहुत खुश थी क्योंकि ये वहीं छात्रा है
जो ठीक एक साल पहले ये कहती थी कि आप कुछ करो नहीं तो मैं पास नहीं हो पाउंगी।
अपने आप पर विश्वास होना, ज्यादा उम्मीद रखना ये जतता है कि वो खुद को समझ रही है,
सपने देख रही है और आगे की रुपरेखा बुन रही है। बाकी दोनों छात्राएं भी काफी भावुक
थी।
इसके बाद तीनों छात्राओं को माला, घड़ी और डायरी
देकर सम्मानित किया गया। अनमोल के योगदान के लिए उन्हें भी सम्मानित किया गया। सभी
प्रतिभागियों ने जोरदार तालियां बजाई, सभी में घड़ी देखने और उसे एक बार पहनने की
इच्छा दिखी। इसके बाद हम सभी ने जलपान किया। अनमोल के जाने के बाद कार्यक्रम की
शुरुआत में चल रही बातचीत को फिर से शुरु किया। एक किशोरी ने कहा कि घर में कोई
आदमी काम कर रहा था तो हमने बस उससे बात कर ली, खाने पीने के लिए पूछ लिया तो क्या
गलत किया। इसको लेकर हमारे किरदार पर बात कैसे आ गई। यही कारण है पूरे विवाद का।
हमने कुछ समय लिया कि कैसे ये समाज लड़की की
यौनिकता को बेड़ियों में जकड़ कर रखना चाहता है – लड़कों से बातचीत करना, दोस्ती
करना या फिर संबंध बनाने से कैसे परिवार की इज्जत जोड़ी जाती है पर वो इज्जत तब
कहां जाती है जब घर में मारपीट होती है, लड़कियों की पढ़ाई छुड़वा दी जाती, कम
उम्र में शादी करवा दी जाती है। और अगर लड़की कुछ कर रही है तो वहां लड़के भी तो
है पर उन्हें कुछ क्यों नहीं कहा जाता – जब इतनी गैरबरबारी हमारा खुद का परिवार कर
रहा है तो हम एक दूसरे से क्यों लड़ रहे है?
इस बातचीत के तुरंत बाद हमने सोच लिया कि इस
मुद्दे पर और चर्चा होनी चाहिए क्योंकि यहां समुदाय और एक दूसरे को सहयोग करने की
भावना कम दिख रही है। खैर कार्यक्रम की समाप्ति हुई और हम गांव की ओर चल दिए।
क्योंकि हमें दो विकलांग किशोर और किशोरी के घर जाना था इसलिए वहां हम एक किशोरी
के साथ पैदल चल पड़े। सभी लड़कियां अलग उत्साह में थी तो सभी हमारे साथ चलने लगी।
पूरा जमघट गांव की तरफ एक दूसरे से बात करते हुए हंसते मुस्कुराते हुए चल रहा था।
गर्मी का मौसम था और सामने आइसक्रिम बेचने वाले दिखे – ऐसे में तकरीबन 50 लड़कियों
के लिए उनकी मनपंसद आइसक्रिम खरीद ली। खुशी में अगर कुछ ठंडा और मीठा मिल जाए तो
बात ही बन जाती है।
इसके बाद हम किशोरी के घर पहुंचे जिसे पांव की विकलंगता है। वो यहां अपनी नानी, मामा और मामी के साथ रह रही है। संवाद के दौरान पता चला कि उसकी मां की मृत्यु के बाद उसके पिता जी ने मामा के पास छोड़ दिया है। उसका परिवार और टीम के बीच बातचीत में वो किशोरी चुपचाप उसके बारे में होती हुई चर्चा को सुनती रही। मोना ने इस संवाद को रोकते हुए किशोरी से पूछा कि यहां सभी लोग उसके भविष्य, विकलांगता सर्टिफिकेट और तमाम चीजों के बारे में बात कर रहे है ऐसे में उसकी राय क्या होनी चाहिए। बहुत चुपके से उसने सिर हिलाया। फिर इस चर्चा पर विराम लगाते हुए उसे चित्र बनाने और कॉपी में रंग भरने के लिए आमंत्रित किया। बहुत ही बारीकि और खूबसूरती से उसने ड्राउंइग में रंग भरा, ऐसा करते हुए उसके चेहरे पर एक हल्की मुस्कुराहट भी थी। चित्र जब बन गया तो उसने मोना से कहा कि चार साल बाद उसने किताब को हाथ में लिया है। उसे ये सब की जानकारी तो नहीं है वो बस आगे पढ़ना लिखना चाहती है। हमने प्रण किया कि यहां काम होने की आवश्यकता है – हम ऐसा स्कूल जरुर ढूंढेंगे या फिर व्यवस्था करेंगे ताकि वो आगे पढ़ पाएं।
रमेश के घर हम पहुंचे तो वो हमारा ही इंतजार कर
रहा था, क्योंकि उसे पता लग गया था कि आज लड़कियों के साथ कार्यक्रम है तो हम सब
भी उससे मिलने आएंगे। इस बार साहसी गर्ल्स और रमेश ने सांप सीड़ी का खेल खेला,
काफी देर तक चले इस खेल में रमेश को जीत मिली। इस जीत की खुशी देखते ही बनी। हमने
उसे ये खेल तोहफे में दिया और बाकी लड़कियों को उसके साथ कभी कभार खेलने के लिए भी
बोला।
आखिर पड़ाव में हम एक ऐसे घर पहुंचे जहां तीनों
लड़कियां साहसी गर्ल्स कार्यक्रम का हिस्सा भी है और दूसरी लड़कियों को जानकारी
देने का काम भी करती है। बात करने पर पता चला कि कैसे उनके पिता तीनों के साथ
दुर्व्यवहार करते हैं, दिल्ली में काम करते हैं लेकिन जब भी घर आते हैं तो लड़ाई
का माहौल रखते हैं, गालियां देते हैं मारपीट करते हैं। लड़कियों से सीधे मुंह बात
भी नहीं करते। पढ़ाई से जुड़ा खर्चा तो दूर रोजमर्रा के लिए भी अपने परिवार में
पैसा नहीं देते। ये बड़े दुख की बात है कि जो पिता आपको इस दुनिया में लाया वो
आपको प्यार नहीं करता, स्पोर्ट नहीं करता बल्कि आपके साथ हिंसा करता है। किशोरियों
की एक एक बात से मेरा मन टूट रहा था। बतौर साहस खुशीपुरा गांव में हमारे काम का ये
एक जरुरी हिस्सा बन गया है कि हम इन सभी लड़कियों के लिए एक ऐसा सुरक्षित माहौल
बना पाएं कि ये इस हिंसा को चुनौती देकर अपने सपनों की ओर बढ़ पाएं।
हालांकि इन्हीं में से एक किशोरी आज सुबह बड़े
झगड़े का हिस्सा थी। ये जो परिवार के प्रति इनका गुस्सा है, जो दिल में जकड़ा हुआ
जिसे ये निकाल नहीं पा रहे वो ये दूसरी लड़कियों पर निकाल रहे हैं। ये सही नहीं है
जहां सुरक्षा का घेरा बन सकता है उसे ये व्यवहार और गुस्सा तोड़ रहा है। हमने
समझाने की कोशिश की जहां का गुस्सा है ये वहीं जाना चाहिए। आपको सही नहीं लगता आप
परिवार में बोलो, अगर नहीं बोल पा रहे हो तो मदद मांगों, अपने गुस्से और भावनाओं
को समझने की प्रोसेस करने की कोशिश करो नाकि दूसरों पर भड़ास निकालो। एक बार फिर
हमने उन्हें भरोसा दिलाया कि हम उनके लिए स्पोर्ट सिस्टम है जहां वो अपनी मन की
बात कह सकते हैं, जो भी मदद या सहयोग चाहिए मांग सकते है।
एक ही दिन में हमने अलग अलग भावनाओं को जीया, कई
परिवारों से, किशोरियों से, विकलांग जन और उनके परिवार से विस्तार से बातचीत की।
साहस गांव को समावेशी और विकसित करने में एड़ी चोटी का जोर लगा रहा है, हमारी
उम्मीद है कि गांव की लड़कियां इस विचार को और आगे ले जाएंगी।
No comments:
Post a Comment