‘मुझे पहले लगता था कि लड़के लड़कियों से ज्यादा ताकतवर होते हैं शायद इसलिए वो कुछ भी कर सकते हैं, और आगे बढ़ने का मौका भी उन्हें मिलता है। पर पिछले एक साल में हमने कई कार्यशालाओं में भाग लिया, मोना दीदी और पूर्वी दीदी ने समझाया कि हम लड़कियां भी कुछ भी कर सकते है। इससे मुझे अपने उपर एक विश्वास जगा और समझ में आया कि अगर हम भी हिम्मत करें, आगे बढ़े तो हम लड़कों से भी आगे निकल सकते हैं और अपने सपने पूरे कर सकते हैं।’
बतौर साहस हम पिछले 4 साल से खुशीपुरा गांव की
किशोरियों के साथ कई अहम मुद्दों पर समझ बनाने के साथ साथ वो खुद की आवाज को पहचान
पाएं और अपने हकों के लिए उसे बुलंद कर पाएं की कोशिश में जुटे हुए हैं। लड़कियां कार्यक्रम
से मिली सीख को, अपनी समझ को और खुद की कहानी को कह पाएं इसी सोच से मार्च के महीने
में हमने ‘मैं साहसी मेरी कहानी’ कार्यशाला का आयोजन किया जहां 40 लड़कियों ने
हिस्सा लिया। हमारे कार्यक्रम में बड़ी लड़कियों के साथ साथ हमेशा 8-11 साल की कई बच्चियां
भी आती है – उन्हें कार्यशाला में शामिल करना संभव नहीं हो पाता। हालांकि उनके
उत्साह से प्रेरित होकर हमने तय किया कि क्यों न उनके लिए कुछ रचनात्मक किया जाए –
इसलिए उन्हें रंगों और पेपर के साथ बिठाया ताकि वो अपनी कल्पना को अपने मन मुताबिक
आकार दे पाएं।
कार्यक्रम की शुरुआत होते ही 5-6 लड़कियों का
पहला समूह पहुंचा जिनमें से एक छात्रा हमारी STEM
पाठ्यक्रम का हिस्सा है और इस वर्ष 12वीं का बोर्ड भी दिया है। उसने बड़े ही
हर्षोल्लास से बताया कि ट्यूशन से उसे काफी मदद मिली और पेपर बहुत अच्छा गया –
विशेष तौर पर गणित और भौतिक विज्ञान। कार्यशाला से पहले ये सुनना काफी प्रेरक रहा
है। इसके बाद धीरे धीरे बाकी प्रतिभागी भी पहुंच गए।
एक किशोरी जिसने 10वीं बोर्ड के पेपर दिए है और
कम बोलती है उसने बड़े उत्साह से बोला, ‘दीदी
आपने एक चीज तो बहुत अच्छी की है। स्कूल के बाद जो क्लास होती है जहां हम गणित,
विज्ञान की पढ़ाई करते हैं वो बेहतरीन है, हमारे अध्यापक बहुत अच्छे से पढ़ाते
हैं, अगर कुछ समझ न आए तो हमारी हिम्मत बढाते हैं, बिना डांटे हुए बार बार समझाते
हैं। फिर भी नहीं आए तो कहते हैं कि कोई बात नहीं आज नहीं आया तो कल समझ में आ
जाएगा। पहले हम स्कूल जाते थे पेपर देते हैं पर पढ़ाई बिलकुल समझ नहीं आती थी। अब
विषय समझ में आता है, हमारी रुचि बढ़ी है और पढ़ाई में भी मन लगता है।’
सभी प्रतिभागियों के आने पर हमने कार्यशाला की
शुरुआत एक खेल से की। इसके बाद साहसी गर्ल्स उनके लिए क्या मायने रखता है उसपर एक
शब्द शेयर करने को कहा गया। यहां किशोरियों ने बताया –
·
खेल
खेलना: कानाफूसी, क्रिकेट, सांप सीड़ी, खो-खो, फुटबॉल;
·
फिल्म: डोर, दंगल, चक दे ;
·
शरीर के
बारे में, लड़कियों के अधिकार, मानवाधिकार, सहमति, माहवारी आदि,
·
मैं कुछ
भी कर सकती हूं,
·
लड़कों
के बराबर हम भी ताकतवर है
·
पहले
हमें घर से बाहर निकलने को नहीं मिलता था, थोड़ा भी बाहर जाओ तो ताने सुनाए जाते
थे लेकिन कार्यक्रम में हिस्सा लेने के चलते हम घर से बाहर निलकते है, अपनी
सहेलियों से मिलते हैं और बहुत कुछ सीखते भी हैं।
· स्कूल के बाद होने वाली ट्यूशन क्लास।
सत्र के अगले हिस्से में हमने उन कहानियों की बात
की जिन्हें पढ़कर, देखकर हमें अच्छा लगा हो, खुशी की अनुभूति हुई हो, या प्रेरणा
मिली है। जहां प्रशिक्षकों ने स्वदेश और दंगल फिल्म और सावित्री बाई फूले की बात
की वहीं किशोरियों ने भी अपनी पंसदीदा कहानियों के बारे में साझा किया। एक
प्रतिभागी ने एक कहानी के बारे में बताया जहां एक लड़की की जबरन शादी उसके
परिवारवाले करवा रहे होते हैं पर वो आगे पढ़ाना चाहती है। वो सभी को चुनौती देते
हुए आगे चलकर अपने सपने पूरे करती हैं। वहीं एक किशोरी ने शेयर किया कि एक लड़की
एक लड़के को पसंद करती है, दोनो की शादी होने वाली होती है – लड़की को चेचक हो जाता
है और उसके चेहरे पर अजीब से दाग बन जाते हैं। लड़का उससे शादी करने से इनकार कर
देते हैं। लड़की भी नहीं चाहती कि वो लड़के से शादी करे तो वो आगे बढ़कर पढ़ाई
करती है और अपना टीचर बनने का सपना पूरा करती है।
हमने साल के शुरुआत में अलग अलग स्कूलों और
समुदायों में मानवाधिकार और मौलिक अधिकारों पर कार्यशालाओं का आयोजन किया था। यहां
की सीख और कहानियों को ब्लॉग का रुप भी दिया। कार्यशाला के अलग हिस्से में हमने
किशोरियों को ये ब्लॉग पढ़ने को कहा – गोले में बैठी हर लड़की ने इस कहानी का एक
एक पैराग्राफ सबके सामने जोर से पढ़ा। इससे उन्हें दूसरे स्कूलों में हुई
कार्यशालाओं और वहां से आई सीख का तो पता चला ही साथ ही एक पढ़ने का अभ्यास भी
हुआ। बहुत कम लड़कियां थी जो साफ साफ बिना रोके टोक पढ़ पाई। हमारे लिए ये एक और
पड़ाव रहा ये समझने का कि लड़कियों को किस और चीज की जरुरत है।
किशोरियां ये कहानियां पढ़ बेहद उत्साहित नजर आई।
कहानियों की बात हुई और खुद कहानी न लिखी ऐसा तो संभव नहीं है। सभी प्रतिभागियों
को समूह में बांटा गया और कहानी लिखने के लिए आमंत्रित किया गया।
पहली कहानी –
‘मैंने इस साल साहसी गर्ल्स कार्यक्रम से बहुत कुछ
सीखा। अब तक मुझे लगता था कि जो ताकत लड़कों में होती है वो लड़कियों में कभी नहीं
हो सकती। लेकिन जब हम साहसी गर्ल्स कार्यक्रम से जुड़े तो समझ में आया कि ये
भ्रांति है और लड़कियां भी लड़कों जितनी ताकतवर होती है। मोना दीदी और पूर्वी दीदी
ने हमारी हिम्मत जगाई और समझाया कि लड़कियां लड़कों से कम नहीं होती है। हम भी आगे
बढ़ सकते हैं और अपने जीवन को अच्छे से जी सकते हैं। इन सभी बातों से हमें काफी
अच्छा लगा और एक नया जोश आया कि हमें भी आगे बढ़ना है, कुछ करना है ताकि हम अपने
परिवार का नाम रोशन कर सके।’
‘हमेशा कहा जाता है कि लड़के और लड़कियों को समान
अधिकार मिलने चाहिए लेकिन कई बार हमने देखा है कि ऐसा नहीं होता। बहुत सारी
परिस्थितियों में लड़कियों की जगह लड़कों को अधिकार दिए जाते हैं। लड़कियों को शिक्षा का अधिकार मिलना चाहिए ताकि
वो भी पढ़ाई कर जीवन में आगे बढ़ पाएं। इसके साथ ही अगर कोई गलत कदम उठाए तो उसे
समझा पाए। एक बार की बात है कि जब हमारे स्कूल की छुट्टियां चल रही थी, भागवत की
कथा का आयोजन किया जा रहा था। मैंने अपनी दादी से कहा कि इस बार मैं कलश रखने
जाउंगी। दादी ने जवाब में कहा कि नहर बहुत दूर है, लड़कियां इतना दूर कलश भरने
कैसे जा सकती है। अगर यही सवाल किसी लड़के ने किया होता तो उसे कभी ये नहीं बोला
जाता और नाही उसे मना किया जाता। जीवन के अलग अलग क्षणों में इसी तरह से लड़कियों
से अधिकार छीन लिए जाते है।’
‘पिछले साल से साहसी गर्ल्स कार्यक्रम में हमने
काफी कुछ सीखा – अपने शरीर को जाना, माहवारी के बारे में समझ बनाई, माहवारी होने
के दौरान घर की महिलाएं अक्सर लड़कियों को वजन उठाने, आचार छूने, मंदिर जाने और
नहाने से मना करती हैं जो सही बात नहीं है – लड़कियां इस दौरान या कभी भी अपवित्र
नहीं होती। हमने अपने अधिकारों को समझा – हम भी लड़कों की तरह कहीं भी जा सकते
हैं, पढ़ सकते हैं, खेल सकते हैं, सपने देख सकते हैं, पढ़लिख कर जॉब कर सकते हैं।
हमारे माता पिता को हमारा सहयोग करना चाहिए, प्यार देना चाहिए, आगे बढ़ाना चाहिए।
इसके अलावा ट्यूशन क्लास ने हमारी बहुत मदद की, मुझे अब पढ़ाई करने में बहुत मजा
आता है।’
‘प्रिय दीदी,
मैं आपके जैसे बनना चाहती हूं। मुझे नहीं पता कि
मैं आपके जैसे बन पाउंगी या नहीं लेकिन मैं आगे पढ़ लिखकर आपके जैसा बनने की कोशिश
जरुर करूंगी। मेरी माताजी भी यही कहती है कि पढ़ो लिखो और आगे बढ़ो। अगर कुछ नहीं
बन पाएं तो पढ़ाई का कोई फायदा नहीं है। मुझे आप पर बहुत भरोसा है, आपकी बातें और
सीख बहुत पसंद है। मेरे घर के लोग कई बार ताने मारते हैं कहते हैं कि तुम कुछ नहीं
कर पाओगी, पढ़ नहीं पाओगी। इसलिए मैं चाहती हूं कि मैं इतना अच्छा पढूं और जीवन
में आगे बढूं कि वो देख पाएं कि उनकी बात सही नहीं थी। मैं अपने माता पिता और आपका
नाम रोशन करना चाहती हूं।’
इसके अलावा एक प्रतिभागी ने चित्र के द्वारा अपनी
बात को कागज पर उतारा – उसने एक लड़की को पानी का मटका ले जाते हुए दिखाया। इस
चित्र से वो कहना चाहती है कि जब लड़की मटके में पानी भर कर लाए तो उसे भरने का
काम लड़के को करना चाहिए। घर के कामकाज में लड़कों को महिलाओं और लड़कियों के साथ
हाथ मिलाकर आधा आधा काम करना चाहिए क्योंकि इस जिम्मेदारी के बोझ के चलते लड़कियां
अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाती और पीछे रह जाती है। लड़कों और लड़कियों को बराबर
देखा और समझा जाना चाहिए।
इसी बीच ट्यूशन टीचर अनमोल भी पहुंचे जिन्हें
देखकर छात्राएं बहुत खुश हुई। हमने उन्हें उनके योगदान के लिए सम्मानित किया। ये
बेहद जरुरी है कि जो लोग काम करते हैं, अपना सहयोग देते हैं उन्हें ये महसूस कराया
जाए कि वो कितने अहम हैं। ऐसा करने से न केवल काम बेहतर होता है बल्कि लोगों को
आगे बढ़ने की और खुशहाली से रहने की प्रेरणा भी मिलती है। अनमोल के पढ़ाने से जो
लड़कियों में एक जोश और उमंग भर आई है उसकी बात ही अलग है।
कार्यक्रम के बाद साहसी गर्ल्स ने जमकर होली
खेली। हम अलग अलग मुद्दों पर कई कार्यक्रम करते रहते हैं लेकिन त्यौहार की खुशी,
एक दूसरे के साथ मिलकर होली खेलने की चमक ने दिन में चार चांद लगा दिए। हमारी और
साहस की यही कोशिश है कि किशोरियां अपने जीवन में इस खुशी को महसूस कर पाएं और
सपनों को पूरा करने की कोशिश में अपना 100 प्रतिशत दे ।
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