‘बुरे लोग वो हैं जो हम लड़कियों को साहसी गर्ल्स कार्यक्रम में आने से रोकते हैं, तरह तरह की अफवाह फैलाते हैं। आप दीदी अच्छे हो क्योंकि आप हमें शिक्षा से जोड़ने और अपने बारे में अलग अलग बातें समझाने का काम करते हैं।’ – प्रतिभागी
‘पर ये लोग तुम्हें क्यों कार्यक्रम में आने से
क्यों रोकते हैं?’ – प्रशिक्षक
'इन लोगों को जलन होती है, कि लड़कियां काफी कुछ
सीख रही हैं, हमें पढ़ने का मौका मिल रहा है। जानकारी मिलने से हम अपने अधिकार
मांगने लगेंगे और वो समाज को अच्छा नहीं लगता है। लड़कियां लड़कों से आगे निकल
जाएंगी’ - प्रतिभागी
देश के अलग अलग कोनों में किशोर-किशोरियों, युवाओं और विभिन्न कार्यस्थल में कार्यरत लोगों के साथ जेंडर और यौनिकता की समझ बनाने के साथ साथ साहस फाउंडेशन पिछले तीन सालों से खुशीपुरा गांव में किशोरियों और महिलाओं के साथ काम कर रहा है। इस नए साल की शुरुआत हमने नए तरीके से नए जोश से करने की ठानी है। वैश्विक और भारतीय परिपेक्ष्य में जिस प्रकार मानवाधिकारों और संवैधानिक मूल्यों की अवलेहना की जा रही है, उसे देखकर ये अब और जरुरी हो जाता है कि युवा पीढ़ी संविधान और उसके मूल्यों को गहराई से समझे और जीवन में उतारे।इस सोच को केंद्रित करते हुए हमने साहसी गर्ल्स के साथ ‘मेरे मानवाधिकार’ कार्यशाला का आयोजन किया जहां गांव की 31 किशोरियों ने बढचढ़ कर हिस्सा लिया। कार्यशाला की शुरुआत ‘इंस्पेक्टर और लीडर’ खेल से की गई जहां प्रतिभागियों ने अपनी लीडरशीप, समझदारी और रणनैतिक सोच का प्रदर्शन करते हुए बहुत मजे किए। किशोरियों ने कार्यशाला को सुचारु रुप से चलाने के लिए जरुरी सहमतियों को खुद पर खुद दोहराया। वर्कशॉप में आगे बढ़ते हुए प्रतिभागियों से पूछा कि मानव में क्या क्या खूबियां होती है – जवाब में एक दूसरे का सम्मान करना, भलाई, छोटी-छोटी चीजों में खुश होने वाले, बुद्धिमान, मेहनती, साहसी, एक दूसरे का साथ देना, ईमानदार, ताकतवर, तेज, खुशमिजाज आदि प्रतिभागियों ने साझा किया।
प्रतिभागियों की चर्चा में एक और अहम बात निकल कर
आई जिसपर विस्तार से चर्चा हुई। एक प्रतिभागी का कहना था कि पेपर में अगर खुद के
नम्बर ज्यादा आते है तो अच्छा लगता है अगर किसी दूसरे के आते हैं तो जलन होती है।
ये पूछने पर कि नम्बर किसके ज्यादा आते हैं उसमें जवाब आए कि वो बुद्धिमान होगा,
क्लास के समय ज्यादा ध्यान दिया होगा, पढ़ाई में तेज होगा इत्यादि। अमूमन किसके
नम्बर ज्यादा आते हैं ; इस दूसरे सवाल के जवाब में चर्चा की शुरुआत हुई
और एक प्रतिभागी ने कहा, “लड़कियां स्कूल जाने से पहले घर का काम करती हैं,
फिर स्कूल जाती है, वापस आकर भी घर में हाथ बंटाती है ऐसे में उनके पास पढ़ने और
अभ्यास करने का काफी कम समय रहता है वहीं लड़कों को घर में कोई काम नहीं करना
होता। ज्यादातर वो या तो बाहर घूमते हैं या पढ़ाई करते हैं जाहिए सी बात है उनके
ही नम्बर ज्यादा आते हैं।”
आखिर में ये कहा गया कि अगर लड़का-लड़की दोनों घर के कामों में हाथ बंटाए, दोनों को अभ्यास का समय मिले तब देखा जाएगा कि किसके नम्बर परीक्षा में ज्यादा आएंगे। यहां एकेडेमिक उर्तीणता, जेंडर और मानवाधिकार का एक समावेश समझने को मिला।
इस गतिविधि के बाद सभी प्रतिभागियों को 6 समूह
में बांटा गया और एक सवाल पर चर्चा करने को आमंत्रित किया गया। पहला
सवाल – एक मानव होने का क्या मतलब है? खुलकर
जिंदगी जीने और मुश्किल से जिंदगी काटने में क्या फर्क हैं।
पहला जवाब – एक मानव होना का मतलब ये है कि वो
सही से खाना खाए, कपड़े पहनने को मिले, रहने के लिए घर हो। वो चीजों को समझ पाएं,
सही –गलत का फर्क कर पाए और बुद्धिमान होना। इस समूह का ये भी कहना था कि मनुष्य
को हर परिस्थिति में खुश रहना चाहिए चाहे फिर वो खुशी का मौका हो या दुख का।
मुश्किल के समय में, जहां लोग उसे नापसंद करते हो, अपने लोग भी पराए हो जाए तो उसे
खुश रहना चाहिए और हटकर मुश्किल का सामना करना चाहिए। यहां प्रशिक्षक ने पिछले साल
हुए मानसिक स्वास्थ्य कार्यशाला की सीख को याद कराया और जोर दिया कि हमेशा
मजबूत रहने की जरुरत नहीं होती, जैसा महसूस हो रहा है उसे होने देना चाहिए नहीं तो
भावनाएं अंदर अंदर इंसान को परेशान कर देती है और इससे परिस्थिति खराब ही होती है।
दूसरा सवाल – क्या आपको लगता है कि सभी मनुष्य
बराबर है? क्या सभी मनुष्यों की इज्जत करनी चाहिए। पहले
समूह का मानना रहा कि सभी मनुष्य बराबर नहीं होते क्योंकि कुछ लोग अच्छे होते हैं
और कुछ बुरे। अच्छे इंसान एक दूसरे को समझते है, इज्जत करते हैं जबकि कुछ लोगा ऐसा
नहीं करते। इनके हिसाब से सभी मनुष्यों चाहे वो अच्छे हो या बुरे सभी की इज्जत
करनी चाहिए क्योंकि वो तो अच्छे हैं और बुरे लोग समय के हिसाब से सुधर जाएंगे और
उन्हें अपनी गलती समझ आ जाएगी। इस कथन पर बहुत जरुरी चर्चा हुई क्योंकि यही आधार
है जेंडर आधारित हिंसा और कई तरह की गैरबराबरी का – जो इंसान दूसरों पर
अत्याचार कर रहा है, भेदभाव कर रहा है वो सोच समझकर अपनी सत्ता का इस्तेमाल करके
दूसरों को नीचा दिखाना चाह रहा है। ऐसे लोग स्वंय नहीं बदलते। प्रशिक्षक ने दिसंबर
में साहस के खिलाफ गांववालों के व्यवहार को उदाहरण लेते हुए समझाया कि एक दूसरे का
आदर करना बहुत जरुरी है लेकिन जब वो एकतरफा हो तो सही नहीं है। हिंसा करने वालों
के खिलाफ आवाज उठाना और दूसरों को जागरुक करना बहुत अहम है।
दूसरे समूह के मुताबिक सभी लोग बराबर नहीं है
क्योंकि लड़कियों को लड़कों के बराबर इज्जत नहीं मिलती, बराबरी नहीं मिलती।
प्रतिभागियों का कहना था कि इज्जत सभी की करनी चाहिए, चाहे वो बड़े हो या दोस्त
हो। साथ ही बड़ों को छोटों का भी सम्मान करना चाहिए। इज्जत करना एकतरफा नहीं होना
चाहिए। सम्मान उसका करना चाहिए जो बातों को समझे, परेशानी में साथ दे पर जो लोग
परेशान करते हैं उनसे दूरी बना लेनी चाहिए।
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