‘दीदी, मुझे पता है वो क्या होता है। जब एक लड़के
और लड़की की शादी होती है न, तो सुहागरात की रात को जब वो करते हैं तो लड़की
गर्भवती हो जाती है।’
12 साल की प्रतिभागी के मुताबिक उपरोक्त वाक्य
सेक्स को परिभाषित करता है। और उसे ये कैसे पता चला क्योंकि टीवी और फिल्म में ये
दिखाया जाता है। मज़ेदार बात ये है कि परिभाषा तो दे दी लेकिन एक बार भी सेक्स
शब्द को जुबान तक आने नहीं दिया। अजीब विडंबना है एक तरफ तो हम चाहते हैं कि
बच्चों का सम्रग विकास हो लेकिन उन्हें सवाल नहीं उठाने देते, किताबों में प्रजनन
का अध्याय तो है लेकिन उसे पढ़ाते नहीं, सेक्स की चर्चा महज तब होती है जब उसे
हिंसा से जोड़कर देखा जाता है पर आनंद से इसका जुड़ाव हो सकता है इसपर चुप्पी साध
ली जाती है, जिस वजह से बच्चों का जन्म हुआ है उस प्रक्रिया को ही एक सामाजिक धब्बा
बना दिया है और फिल्मों में खुलकर इस बात को ऐसे पेश किया जाता है ताकि भ्रांतिया
जमकर फूले फले।
साहस का 6वां सत्र सेक्स जैसे संवेदनशील मुद्दे
पर समझ बनाने और उससे जुड़ी भ्रांतियों से धूल हटाने पर आधारित रहा। मुझे काफी
घबराहट हो रही थी, दिल और दिमाग में सवालों की एक्सप्रेस दौड़ रही थी- सेक्स और
प्यार पर क्या किशोरियां बात कर पाएगी, क्या ये मुद्दा उन्हें असहज कर देगा, क्या
मैं उन्हें समझा पाउंगी कि सेक्स होता क्या है?, इस जानकारी का उनपर कैसा प्रभाव रहेगा
इत्यादि। इन्हीं सवालों, घबराहट और आत्मविश्वास के साथ सत्र की शुरुआत की गई।
प्रतिभागियों ने ‘सिक्के की रेस’ खेल में जमकर हिस्सा लिया,
उन्हें खेलता देखकर मेरे मन में धमा-चौकड़ी कर रही शंका ने कुछ राहत की सांस ली।
पारो की कहानी सुनकर प्रतिभागियों ने काफी
अलग-अलग जवाब दिए।
‘मैं लड़के को चांटा मारूंगी’
‘मैं अपने माता-पिता से उसकी शिकायत करूंगी’
‘मैं वहां से भाग जाउंगी’
ये पूछने पर कि पारो तो लड़के को पसंद करती थी
फिर क्या करती?
‘फिर क्या दीदी, मैं कुछ नहीं बोलती’
‘पर दीदी उसने मुझसे पूछा ही नहीं ऐसे ही किस कर
दिया’
‘अगर पारो प्यार करती है तो फिर क्या कर सकते हैं’
इसके बाद प्रतिभागियों को ‘प्यार’ और ’सेक्स’ शब्द सुनकर मन में क्या
विचार या भावनाएं आती है उसे पेपर पर लिखने का निमंत्रण दिया गया।
‘सेक्स तो पता नहीं, प्यार शब्द सुनकर गंदा लगता
है’
‘प्यार एक अजीब सी चीज़ है, कुछ अलग सा महसूस
होता है, मुझे पता नहीं ऐसा क्यों महसूस होता है’
‘प्यार का मतलब है किस करना, एक दूसरे के साथ
निभाना, एक साथ खाना खाना’
महज 4-5 प्रतिभागी थे जिन्हें सेक्स के बारे में
आधी कच्ची पक्की जानकारी थी बाकियों ने पहली बार ये शब्द सुना था।
इसके बाद तीन अलग-अलग फिल्मों के जरिए सेक्स
क्या होता है, महिलाएं गर्भवती कैसे होती हैं, सेक्स या संबंध बनाने के लिए सहमति
की जरुरत और सुरक्षित सेक्स के लिए कंडोम का इस्तेमाल को लेकर प्रतिभागियों में
समझ बनाई गई।
सत्र का ये हिस्सा काफी अहम रहा क्योंकि
प्रतिभागियों को ये जानकारी पहली बार मिल रही थी ऐसे में वो इस जानकारी को पूरी
तरह और सही तरह से समझ पाए इस बात का ध्यान रखना जरुरी था। इसके बाद जो हुआ उसने
मुझे आश्चर्यचकित तो किया ही साथ ही मेरा दिल खुशियों से रोशन भी हो गया।
‘अगर लड़कियों को गर्भवती होना ही होता है तो
महावारी का क्या फायदा?’
‘क्या महावारी के दौरान सेक्स करने से महिला
गर्भवती हो सकती है?’
‘मुझे कैसे पता चलेगा कि मैं गर्भवती हो गई हूं?’
‘किन-किन तरीकों से एक लड़की या महिला गर्भवती हो
सकती है?’
‘बच्चे 9 महीने के बाद ही क्यों पैदा होते हैं?’
कोई सोच भी सकता है कि 12-14 साल की किशोरियां
ऐसे सवाल पूछ सकती हैं? क्या हम अपने घर-परिवार या फिर स्कूल में इन बच्चों को वो
जगह दे पाते है कि वो अपने सवालों को पूछ पाएं ? शायद नहीं तभी तो
किशोर-किशोरियां ये जानकारी हासिल करने के लिए इंटरनेट या फिर अपने हमउम्र का
सहारा लेते हैं और कई बार अज्ञानता में ऐसे कदम उठा लेते हैं जिनका दुष्परिणाम
उन्हें जिंदगी भर भुगतना पड़ता है। पर इन किशोरियों के साथ ऐसा नहीं होगा क्योंकि
इनके पास न केवल सेक्स और प्यार को लेकर सही जानकारी है पर अब सवाल खुलकर पूछने की
हिम्मत भी है।
ये सत्र मेरे लिए और प्रतिभागियों के लिए काफी
भारी रहा, इसलिए सोचा कि इस भारीपन को शरीर से बाहर निकाल फेंके इसलिए ‘शैक-शैक शैक योर बॉडी’ खेल खिलाया। प्रतिभागियों
ने न केवल खुलकर खेल का लुत्फ उठाया बल्कि ज्ञान की रोशनी को खुली बाहों से अपनाया।
पूवी आपके द्वारा उठाया गया ये कदम, सराहनीय है।
ReplyDeleteधन्यवाद अपराजिता, आपके ये शब्द बहुत बल देते हैं इस काम को आगे बढ़ाने के लिए।
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