Monday, 3 April 2017

पहचान और सपने का तानाबाना



मैं कवि बनना चाहती हूं।”

कुछ मिनटों के लिए मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। क्या अभी अभी एक लड़की ने ये कहा कि वो कवि बनना चाहती है? मेरा ये बिलकुल मानना नहीं है कि बच्चों को केवल डॉक्टर या इंजीनियर बनने का सपना देखना चाहिए पर ये पहली बार था साहस की कार्यशालाओं में जहां एक 12 साल की प्रतिभागी पूरे विश्वास के साथ अपने सपने को बांटा। 

कौन हूं मैं?
इस एक लाइन ने मुझे पहचान और सपने के बीच के अनोखे और खूबसूरत एहसास को महसूस करने का मौका दिया।
 
साहस ने इस बार जेंडर, यौनिकता और प्रजनन स्वास्थ्य पाठ्यक्रम को लेकर दिल्ली के द्वारका सेक्टर-3 में मौजूद बस्तियों की किशोरियों के साथ काम की शुरुआत की है। इस बार कई चीजें नई हैं- जैसे प्रतिभागियों का ग्रुप केवल किशोरियों का है, संख्या बढ़कर 30 के करीब हो गई है, पाठ्यक्रम में नई विषयवस्तु को जोड़ा गया है। काफी महीनों के संघर्ष, उतार-चढ़ाव, खींचतान, अनेकों इवेन्ट्स के बाद हम अपने तीसरे अध्याय के लिए बिलकुल तैयार और उत्साह से लबरेज हैं। 
 
जस्ट नाचो!
कैसे बनाएं सुरक्षित जगह?
नई ऊर्जा और उत्साहित करने वाले खेल से मैं कौन हूंकार्यशाला की शुरुआत हुई। ये खेल वैसे तो काफी हिट रहा है, पर यहां इसका रुप ही अलग था, हर कोई इस खेल का संचालन करने को तैयार था। प्रतिभागियों को अपने आप से रुबरु कराने और खुद को और अच्छे से समझने के लिए एक प्रश्नावली भरने को दी गई जिसमें अपने आप से जुड़े कई सवाल थे जैसे परिवार के अलावा मेरा पसंदीदा लोग कौन है, मेरा एक बहादुरी का काम, एक ऐसा काम जिसे मैं सबसे अच्छा करती हूं। इसी प्रश्नावली में कुछ जवाबों ने मुझे परेशान कर दिया। सोचिए अगर 12 या 13 साल की लड़की ये लिखती है कि मुझे शादी से नफरत है, तो आप क्या करेंगे, मेरे दिमाग में तो सवालों की कतारें लग गई, मुझे ये भी पता है कि आने वाले सत्रों में जब और खुलकर बातें होंगी तो पता नहीं कैसे-कैसे अनुभव सामने आएंगे। हालांकि इस दौरान खुद के बारे में लिखने का उत्साह खुशनुमा रहा।
 
पहचान की तलाश


इसके बाद प्रतिभागियों को अपना पहचान पत्र बनाकर उसे सबके साथ बड़े गोले में बांटना था। मैं हैरान थी कि कैसे किशोरियां पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनी पहचान को समझने की कोशिश कर रही है, कितने रंग- बिरंगे सपने सजाए हैं, तकरीबन हर प्रतिभागी कुछ न कुछ बनना चाहता है- डॉक्टर, पुलिस, अध्यापिका, सिंगर, कवि और हां एक तो अनाथाश्रम खोलना चाहती थी, मानो हर सपने के पीछे एक अनकही कहानी हो। ये कोमल और अनछुए मन कैसे अपनी पहचान और सपने का खूबसूरत सा तानाबाना बुनते है और पुरजोर कोशिश में जुट जाते है कि ये सपने हकीकत का जामा पहन लें।





मेरे पापा...” “मेरे पापा... एक कंपकंपाई, सहमी सी आवाज़ जो बोलते बोलते आंसू में तबदील हो गई। खुशी और उत्साह के बीच इस गमगीन आवाज़ ने एक बार फिर मेरे अंतर्मन को झकझोर दिया। वाक्य पूरा करते हुए उसने बताया कि उसके पापा रिक्शा चलाते हैं और वो डॉक्टर बनना चाहती है ताकि वो उनके सपने को पूरा कर पाएं। इतने में ही दूसरी प्रतिभागी बोली कि उसके पिता भी रिक्शा चलाते है। एक ही समय में दो अलग-अलग भावों का एहसास कैसा होता है काश लिख पाती पर ये एक ऐसा अनूठा अनुभव था जिसे महज महसूस ही करा जा सकता है। प्रतिभागियों को पहचान की अहमियत और कैसे जीवन चक्र में इंसान की पहचान बदलती रहती है बताया गया। अगली प्रक्रिया में दो अलग-अलग ग्रुप में दो महान शख्सियतों के किशोरावस्था की कहानी सुनाई गई। कहानी सुनने की रुचि और सवालों की लड़ियों ने इस सत्र को बेहद मनोरंजक बनाया।
 
आओ कहानी सुनें


मेरा दोस्त...


मैं मानती हूं गांधी जी महान इंसान थे, पर भगत सिंह ने भी तो बहुत कुछ किया था फिर नोट पर केवल गांधी जी का चित्र क्यों होता है?”

है कोई जबाव? ऐसे और न जाने कैसे और कितने सवाल किशोर-किशोरियों के मन में आते हैं, जरुरत है कि उन सवालों को आने दिया जाए फिर भले ही उनके जवाब आपके पास हो न हो, हो सकता है कि इन सवालों के जवाब वो खुद ढूंढे या ये अनसुलझे रह जाए, अहम बात ये है कि इन सवालों को रोका न जाए।

सकारात्मक पहचान के बारे में चर्चा के लिए सभी प्रतिभागियों को अपनी एक खूबी जिसे वो हमेशा अपने जीवन में रखना चाहते है पर बांटने के लिए आमंत्रित किया गया।

मुझे गणित बहुत पसंद है और मैं इसे किसी को भी अच्छे से समझा सकती हूं।

मुझे गाना गाना बहुत पंसद है इसलिए मैं सा रे गा मा पा भी देखती हूं और गाना सिखा भी सकती हूं।

मुझे पढ़ना बहुत पंसद है, पढ़ाई वो भी शरारत के साथ। साइंस को समझने के लिए एक्सपैरिमेंट करना बहुत जरुरी है। मैं तो घर में एक्सपेरिमेंट करती रहती हूं

मुझे डांस बहुत पसंद है, मैं बहुत अच्छा डांस करती हूं और अगर कोई चाहे तो उसे सिखाती भी हूं

मैं हर लड़ाई को निपटा देती हूं।

आखिरी प्रक्रिया में सभी को दो-दो के ग्रुप में बांटा गया, जिसमें प्रतिभागियों को एक नया दोस्त बनाने के लिए आमंत्रित किया गया। ग्रुप में दोनों प्रतिभागी एक दूसरे को अच्छे से जाने और फिर बड़े ग्रुप में अपने दोस्त का ऐसे परिचय दें ताकि सभी उससे दोस्ती करना चाहे। कुछ प्रतिभागियों ने शर्माते हुए, कुछ ने विज्ञापन के तौर पर तो कुछ ने हंसते मुस्कुराते हुए अपने नए दोस्त को बड़े ग्रुप में पेश किया। 



मुझे बहुत अच्छा लग रहा है, काफी रिलेक्स हूं, नए दोस्त भी मिल गए और काफी नई जानकारी मिली ये उस प्रतिभागी ने कहा जो पहले वर्कशॉप का हिस्सा बनने से बेहद झिझक रही थी।
मुझे गांधी जी के बारे में जानकर काफी अच्छा लगा। अच्छी बातें सीखने को मिली।

पहचान पर आधारित ये कार्यशाला अबतक के अनुभवों में से बेहद अलग थी, काफी सीखने को मिला और साथ ही समझ में आया कि आने वाला ये महीना काफी चुनौतीपूर्ण रहेगा।

ये सब सोच ही रही थी कि एक मैसेज आया, आप दोनों को बहुत धन्यवाद। मेरी बेटी और उसकी दोस्त मेरे पास आए और मुझे धन्यवाद देते हुए बोले कि वो बहुत लकी है कि हम उनके परिजन है। हम उन्हें इतनी सुविधाएं देते हैं। मैंने एक ही सत्र में इतना बदलाव देखा है। धन्यवाद

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