Tuesday, 11 October 2016

महावारी और उससे जुड़ी बातें



अगर सैनेटरी पैड खरीदने के लिए पैसे नहीं होंगे तो मैं अपनी मां को सूती का कपड़ा पैड की तरह फोल्ड करके दूंगा ताकि वो पीरियड्स में इस्तेमाल कर लें। वो इसे अपने पर्स में भी रख सकती हैं ये बात एक 10 साल के प्रतिभागी ने वर्कशॉप के दौरान कही। 

हां ये बात सुनकर कोई भी हैरान होगा क्योंकि अक्सर सुनने में तो यही आता है कि महावारी तो लड़कियों की समस्या है और लड़कियों को समझाना चाहिए कि इस दौरान क्या-क्या एतिहात बरतनी चाहिए? पर हम भूल जाते हैं कि समाज में तो लड़के- लड़कियां दोनों रहते हैं ऐसे में महावारी के बारे में केवल लड़कियों को जागरुक करने का कोई मतलब नहीं है। इसी सोच के साथ हमने शाहबाद डेयरी के किशोर-किशोरियों के साथ महावारी पर आधारित वर्कशॉप की।


हाथ में सैनेटरी पैड थामे जब मोना ने ये पूछा,क्या आपने इस वस्तु को कभी देखा है?” तो उम्मीद के विपरित सभी प्रतिभागियों का उत्तर हां में था। लड़कियों के साथ साथ लड़कों को भी पता था कि ये सैनेटरी पैड है। जब पूछा गया कि इसका इस्तेमाल कब होता है? तो थोड़ी झिझक के साथ एक प्रतिभागी (जो अब तक नहीं बोल रही थी), उसने बहुत धीरे से बताया कि ये एमसी में इस्तेमाल किया जाता है। 





मेनस्ट्रूपीडियाकी फिल्म हैलो पीरियड्स के जरिए हमने पीरियड्स या महावारी क्या होती है? ये कब होती है? लड़कियों को महावारी क्यों होती है? सैनेटरी पैड्स का इस्तेमाल, महावारी के दौरान साफ-सफाई का महत्व को लेकर चर्चा की। वीडियो में हर बात को बड़ी गहराई और सरलता से समझाया गया है, हर बात हर प्रतिभागी को समझ में आ रही है इसे जानने के लिए हर टॉपिक के बाद रिवीज़न भी कराया गया। महावारी के दौरान होने वाले पेट दर्द, सिर दर्द और ऐठना को ठीक करने के लिए अलग-अलग योगासन बताए गए, प्रतिभागियों ने उन आसान को करके दिखाया जो बहुत मज़ेदार रहा। 


महावारी के दौरान क्या करना चाहिए?, क्या नहीं करना चाहिए?, महावारी से जुड़ी भावनाएं, उससे जुड़े तथ्य, मिथ्या बातों को जानने के लिए हमने माइंड मैपिंग की। लड़कियों को घर से बाहर नहीं निकलने दिया जाता, आचार को छूने नहीं दिया जाता’‘खटाई खाने को मना किया जाता है, कम मिर्च मसाले वाला खाना खाना चाहिए’, ‘मंदिर नहीं जाने दिया जाता, क्योंकि हम अपवित्र होते हैं। इन सभी विचार-विमर्श और उदाहरण को आधार बनाकर हमने बताया कि ये बातें सच नहीं है ये महज धारणाएं हैं, महावारी एक तरह का शारीरिक बदलाव है जो लड़कियों में किशोरावस्था के दौरान शुरू होता है और ये दर्शाता है कि वो स्वस्थ्य है। 



महावारी के बारे में खुलकर बात नहीं की जाती, और ये यौनांग से जुड़ा हुआ है, लड़कियों को भी इसके बारे में पूरी जानकारी नहीं होती इसलिए समाज में इसे एक धब्बे की तरह देखा जाता है। लड़कों और लड़कियों को एक साथ बैठकर इस बात पर चर्चा करने का एक अहम मकसद ये भी है कि महावारी को धब्बे की तरह न देखा जाए बल्कि उससे जुड़े दबे हुए सवालों और जिज्ञासा के उत्तर ढूंढे जा सके। मैं काफी उत्साहित और खुश थी, जिस सोच को लेकर हम आगे बढ़ रहे हैं वो हकीकत में तब्दील होते नज़र आ रही थी।

इस वर्कशॉप के दूसरे सत्र में हमने बॉडी इमेज और किशोरावस्था में पड़ने वाले प्रभाव के बारे में बातचीत की। सत्र की शुरुआत हुईआइना क्या कहता है?” से, जिसमें प्रतिभागी एक-एक करके शीशे के सामने अपने आप को देखेगे और उनके मन में सबसे पहला विचार क्या आता है, उसे एक पेपर पर लिखना था।



मैं सुंदर नहीं हूं, मैं स्वस्थ्य नहीं हूं, मेरे चेहरे पर अजीब से निशान है

मुझे अजीब लगा 

हां! गौर से खुद को शीशे में देखने से अंदर तक कुछ हिल जाता है, कहीं न कहीं अपने शरीर के प्रति सहजता नहीं होतीहै। इस एक्टिविटी के बाद प्रतिभागियों को ग्रुप में बांटा गया, उन्हें अलग-अलग विज्ञापन दिए गए और इन्हीं विज्ञापनों पर आधारित कुछ सवाल दिए गए जिसके जवाब उन्हें हां या नहीं में देने थे। इन सवालों के जरिए हमने बॉडी इमेज को लेकर समझ बनाने की कोशिश की- क्योंकि हम कैसे दिखते है, हमारा शरीर कैसा है, चेहरा कैसा है, मोटे हैं या पतले हैं, इसको लेकर हमारी एक समझ होना जरुरी है। 



नाटकों, विज्ञापनों और सिनेमा में दिखाए जाने वाले अभिनेता-अभिनेत्री शरीर की एक आइडियल छवि दर्शाते हैं- अक्सर लोग उनसे अपने शरीर की तुलना करते हैं और वही शरीर पाने की होड़ में जुट जाते हैं। ये होड़ किशोरावस्था में देखने को मिलती है जो शरीर के लिए बेहद नुकसानदेयक हो सकती है साथ ही हीन भावना को भी जन्म देती है। 

माइंड मैपिंग के जरिए एक पुरुष का शरीर कैसा होना चाहिए और एक महिला का शरीर कैसा होना चाहिए के बारे में विचार विमर्श किया। इसी चर्चा को आधार बनाकर मोना ने समझाया कि कैसे समाज एक आदमी और महिला से उम्मीद करता है कि वो शारीरिक तौर पर कैसे दिखने चाहिए? जो लोग इस ढांचे में नहीं आते तो उनपर ऐसा बनने का दबाव बनाया जाता है, ताने और उलहाने दिए जाते हैं। आइडियल शरीर को पाने की होड़, दवाब को ही बॉडी इमेज बोला जाता है। प्रतिभागियों ने खुलकर अपने मन की बातें सामने रखी जिसे सुनकर उनके अंदर चलने वाले विचारों का पता चला। 



तीसरी वर्कशॉप के अंत तक दिख रहा था कि प्रतिभागी खुल रहे हैं, अभी भी शर्म और झिझक है पर जिस तरह से वो अपनी कहानियां बांट रहे थे मुझे यकीन हो गया था कि वो दिन ज्यादा दूर नहीं है जब वो खुलकर अपने मन की बात गोले में बिना झिझक के बांट पाएंगे। 

4 comments:

  1. Nice... our society needs these type of workshop, it fills the gap between a girl and boy.

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    1. Thank you :-) These words motivate us to work more hard.

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  2. Really very good initiative....keep it up it's need of our society urgently.... Akhilesh

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