Tuesday, 11 October 2016

मेरा बदलता शरीर



क्या आप अपने शरीर को जानते है, पहचानते और समझते हैं? आप सोच रहे होंगे ये कैसा सवाल है और इस सवाल को पूछने का क्या तुक बनता है? तो थोड़ा अपने दिमाग पर जोर डालकर सोचे कि क्या आप शरीर के सभी अंगों को ठीक से जानते हैं और हां क्या आपने सभी अंगों को देखा हैं और आप इस बारे में बातचीत करने में कितने सहज है? खैर! जब भी मैं शरीर और शारीरिक बनावट के बारे में सोचती हूं तो मेरे ध्यान में सबसे पहले किशोरावस्था आती है। ऐसा इसलिए क्योंकि जीवन का ये दौर बदलाव से ओत-प्रोत होता है  चाहे वो शारीरिक हो, मानसिक हो या समाजिक। किशोरावस्था में होने वाले शारीरिक बदलाव बेहद अहम होते हैं साथ ही वो उलझन में डाल सकते हैं, परेशान कर सकते हैं और बहुत सारे सवाल खड़े कर देते हैं। ऐसे ही सवालों के जवाब ढूंढने और उनसे जुड़ी कहानियों को समझने के लिए हमने अपनी दूसरी वर्कशॉप मेरा बदलता शरीर का आयोजन किया।



 
मेरे दिमाग में कई तरह की बातें चल रही थी, ये मुद्दा जितना जरुरी है उसे उतने ही संवेदनशील तरीके से बताना भी अहम है। साहस के जरिए हम लगातार कोशिश कर रहे हैं लड़के और लड़कियां एक साथ बैठकर इस मुद्दे पर न केवल अपनी समझ बनाएं बल्कि उसपर सहज तरीके से बातचीत भी कर पाएं। 
वर्कशॉप की शुरुआत में प्रतिभागियों को ग्रुप में बांटते हुए उनके सामने 3 सवाल रखे मसलन उन्हें पहली बार कब पता चला कि वो लड़का हैं या लड़की हैं? ये बात सुनकर उन्हें कैसा लगा और किसने उन्हें ये बताया? आसान से इस सवाल ने प्रतिभागियों को काफी सोच विचार में डाल दिया- पहले तो कई प्रतिभागियों ने कहा किइसमें बताने की क्या जरुरत है, हमें तो पता है कि हम लड़के हैं या फिर लड़की हैं...और 5-6 साल की उम्र में तो सभी को पता चल ही जाता है।पर जब ग्रुप में चर्चा आगे बढ़ी तो कई कहानियां सामने निकल कर आई।



जब मुझे पहली बार पता चला कि मैं लड़की हूं तो मुझे अजीब लगा। अब तो मैं शरारती और बदमाश नहीं बन पाउंगी जैसे लड़के कर सकते हैं।

मुझे 5 साल की उम्र में पता चला कि मैं लड़का हूं पर मुझे अच्छा नहीं लगा। सोचा कि अगर मैं लड़की होती तो कितना अच्छा होता।

जब मुझे पता चला कि मैं लड़का हूं तो मुझे लगा कि मैं कुछ भी कर सकता हूं।

मैं सोच में पड़ गई थी कि महज लड़का होना या लड़की होना जीवन के मायने कितने बदल देता है, हम सहमति और चॉव्इस (किसी चीज का चुनाव करने की आज़ादी) के बारे में कितनी बातें करते हैं पर अगर एक 12 साल की लड़की को ये लगता है कि वो शरारत इसलिए नहीं कर सकती क्योंकि वो लड़की है तो बाकी बातें तो महज किताबी हो जाती हैं। 

इसके बाद प्रतिभागियों को शरीर का वो अंग चुनने के लिए कहा गया जो उन्हें बेहद पसंद है और क्यों, साथ ही उन्हें उस अंग के बारे में लिखने को कहा गया जो उन्हें नापसंद है। उम्मीद के मुताबिक लगभग सभी प्रतिभागियों ने बाल, चेहरे, आंखों को पसंदीदा अंग के तौर पर देखा और नापसंद में भी वो विचार रहे। 


अब प्रतिभागियों को दो ग्रुप- एक लड़कों और एक लड़कियों का में बांटा और उन्हें बॉडी मैप बनाने को कहा गया- जिसमें शरीर के हर अंग को दर्शाना है, साथ ही शरीर में हो रहे बदलावों के बारे में चर्चा करनी थी। मैं लड़कों के ग्रुप के साथ थी- मैंने पहली बार ये देखा कि कई लड़के अपना बॉडी मैप बनवाने के लिए उत्सुक थे। बहुत जल्दी ही उन्होंने एक लड़के का चुनाव कर लिया और उतनी ही फुर्ती से उसका मानचित्र भी बना लिया, शरीर के अंग भी बना लिए, पर फिर वो एकदम रुक गए। काफी पूछताछ के बाद उन्होंने मुझे वहां से हटने को कहा ताकि वो बॉडी मैप को पूरा करें। ये झिझक सामान्य थी क्योंकि अपने शरीर के बारे में बात करना, फिर उन्हें पेपर पर उतारना वो भी किसी लड़की के सामने ये उनके साथ पहली बार हो रहा था। वहीं लड़कियां भी पूरी शिद्दत के साथ बॉडी मैप बना चुकी थी। दोनों ग्रुप ने बड़े सहजता और विश्वास के साथ अपने बॉडी मैप को समझाया और जवाबों को बड़े गोले में बांटा।


शरीर में होने वाले बदलाव की कई बुरी बातें है- हम अपने पिता और भाई के साथ एक बिस्तर पर सो नहीं सकते। महावारी में पेट और शरीर में काफी दर्द होता है। घर से बाहर जाने पर बहुत रोक-टोक होती है। और चुन्नी भी लेनी पड़ती है। हर काम में इजाजत लेनी पड़ती है। इस बात ने मुझे अंदर से झकझोर दिया, एक 11 साल की लड़की अपने आप को एक कैदी की तरह महसूस कर रही है क्योंकि वो बड़ी हो रही है, उसके शरीर में होने वाले बदलाव उसके पांव की बेड़ियां बनकर रह गए हैं। वहीं लड़कों ने भी शरीर में होने वाले बदलावों से आने वाली समस्याओं के बारे में बताया, इस समय शरीर से शुक्राणु बाहर निकलते हैं, जिससे हमें काफी कमज़ोरी महसूस होती है




एक फिल्म और पावरपाइंट प्रेजेंटेसन के जरिए हमने किशोरावस्था में होने वाले शारीरिक बदलाव, उनकी महत्वता, लड़के और लड़कियों के यौनांग के बारे में चर्चा की। ये सत्र काफी गहरा हो चुका था, एकदम सन्नाटा पसर गया था, लड़कियां अपना मुंह छिपाने लगी तो लड़के इधर-उधर देखने लगे। ये हैरान और परेशान करने वाली बात ही है कि जो अंग हमारे शरीर के लिए इतने अहम है, जिसके जरिए सृष्टि आगे बढ़ती है, जो नए जीवन का स्रोत हैं उन्हें अपने सामने देखकर इतनी शर्म और झिझक होती है। समाजिक ढांचे ने अंगों को भी सही और गलत की परिभाषा में बांध दिया है। इसी बात को और गहराई और खुलेपन से समझने के लिए प्रतिभागियों को 4 अलग-अलग ग्रुप में बांटा गया और एक कहानी पर चर्चा करने को कहा गया। किशोरावस्था में होने वाले शारीरिक बदलाव, समाज का इन बदलावों पर नजरिया, और इस नजरिए का किशोर-किशोरियों के व्यवहार पर आधारित थी ये कहानियां। एक बार फिर प्रतिभागियों के जवाबों, सीखने की चाह और समझ ने मुझे उत्साहित किया। 

अगर मैं रॉबिन की जगह होता तो कभी वो मैजिक दवाई का इस्तेमाल नहीं करता बल्कि सुबह उठकर घूमने जाता, कसरत करता और सही खाना खाता ताकि मेरा शारीरिक विकास सही तरीके से हो।


नहीं दीदी, मुझे नहीं लगता कि गोरा रंग सुंदरता की पहचान है। उसकी दोस्त को उसके साथ ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए था, साथ ही हमारा आत्मविश्वास एकदम शालिनी के जैसा होना चाहिए।


मैं काफी संतुष्ट थी, आज हमने इन किशोर-किशोरियों के साथ बहुत ही अहम पड़ाव को पार किया है- इस उम्र में होने वाले शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक बदलाव के बारे में बातचीत की शुरुआत हुई। इन मुद्दों पर न तो स्कूल में और नाही परिवार में बातचीत होती है जिसकी वजह से कई सवाल, कई तरह की जिज्ञासा अधूरी-अनसुलझी रह जाती है जो किशोर-किशोरियों में भटकाव या दिशाहीनता का भी कारण बन सकती हैं।

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