“लड़कियों
को ज्यादातर घर में रहने को कहा जाता है, बाहर घूमने से मना किया जाता है और जोर
से हंसने पर भी मना करते हैं क्योंकि ये उनकी प्रोटेक्सन के लिए होता है, नहीं तो
कुछ भी उल्टा सीधा हो सकता है।” ये बात 13 साल की प्रतिभागी
ने ‘रिश्ते, प्यार और सेक्स’ पर आधारित
सत्र के दौरान बड़े ग्रुप में बांटी। और हम लोग ये सोचते हैं कि ये बच्चे है छोटे
है इन्हें दुनियादारी की क्या समझ होगी? दुनियादारी का मतलब
तो खैर मुझे भी समझ नहीं आता!
'मेरा सबसे प्यारा रिश्ता' |
वर्कशॉप की शुरूआत ‘चलते-चलते मुलाकात हुई’ खेल से की ताकि प्रतिभागी
एक-दूसरे से सहज हो सके। माइंड मैपिंग के जरिए हमने ये समझने की कोशिश की कौन से
रिश्ते और कौन से लोग हमसे जुड़े हुए है? इन रिश्तों में
बॉयफ्रेंड और गर्लफ्रेंड की भी बात हुई।
रिश्तों पर बात
करने के दौरान हमने बात की उस रिश्ते की जो हमें सबसे प्यारा है? ‘मुझे तो मेरी मम्मी सबसे ज्यादा अच्छी लगती है
क्योंकि मैं उनके साथ कोई भी बात शेयर कर सकती हूं वो बातें भी जिन्हें पापा को
नहीं बता पातीं’
“मम्मी
अच्छी लगती हैं क्योंकि वो डांटती है और कहती है कि खाना खा लो” 14 साल की प्रतिभागी की इस बात में एक अलग सा दर्द झलक कर सामने आया,
मानो वो डांट में छिपे अपने मां के प्यार और अपनत्व को तलाश रही हो। “मुझे तो अपने दोस्त पसंद है क्योंकि हम उनके साथ किसी भी तरह की बात कर
सकते हैं, घर की समस्याएं, स्कूल की बातें वो हमारी मदद करते है, सारी बातें बिना
कोई राय के सुनते हैं।”
ये सारी
कहानियां जब चार्ट पेपर पर कला के माध्यम से उतारी गई तो मुझे काफी अच्छा लगा, ऐसा
इसलिए क्योंकि ज्यादातर बार कहानियां शब्दों, बातों और चर्चा के जरिए सामने आती है
पर रंग बिरंगे चित्रों के जरिए रिश्ते भी काफी सुंदर और आत्मीय महसूस हो रहे थे।
एक खालीपन भी महसूस हो रहा था क्योंकि मेरे लिए अब रिश्तों के मायने बचपन के
मुकाबले बिलकुल बदल चुके थे।
देविका चित्र के माध्यम से रिश्तों को समझाती हुई |
इस एक्टिविटी के बाद प्रतिभागियों को तीन अलग-अलग
ग्रुप में बांटा गया: परिवार, दोस्त और
पड़ोसी- अपने ग्रुप में प्रतिभागियों को चर्चा करनी थी कि उन्हें मिले ग्रुप में
ज्यादातर किस बारे में बातचीत होती है? क्या लड़के या
लड़कियों के साथ होने वाली बातचीत में कोई फर्क महसूस होता है? अगर हां तो क्या आपको पता है कि ये फर्क क्यों हैं?
ये प्रक्रिया
काफी रोचक और हमारे लिए सीखने वाली रही- जेंडर पर बातचीत किए बिना प्रतिभागियों ने
बड़ी बखूबी बताया कि उनके समुदाय में जेंडर आधारित भूमिकाएं कितनी मज़बूत हैं।
इसमें ये भी पता चला कि वो काफी विषयों को लेकर बातचीत करते हैं और कई मुद्दों पर
उनकी अपनी राय भी है। परिवार वाले ग्रुप की बात करें तो घर के ज्यादातर काम जैसे
साफ-सफाई, खाना बनाना और कपड़े धोना लड़कियां करती है, लड़कियों को बाहर घूमने का
मन करें तो भी उन्हें बाहर नहीं जाने दिया जाता। अगर लड़कियों को बाहर जाना है तो
उन्हें उनके भाई के साथ भेजा जाता है क्योंकि परिवारवालों को उनकी इज्जत का खतरा
लगता है जैसे लड़कियों के साथ कुछ हो न जाए या फिर वो किसी लड़के के चक्कर में न
पड़ जाए। इसलिए लड़कियों की शादी भी जल्दी करवा दी जाती है। दूसरी तरफ लड़कों को
बाहर का काम करना पड़ता है जैसे घर का सामान लाना, लड़कियों को स्कूल या ट्यूशन के
लिए छोड़ना आदि।
दूसरे ग्रुप दोस्ती
में चर्चा के दौरान पता चला कि दोस्तों में हर तरह की बाते जैसे स्कूल में क्या
हुआ, घर में क्या हुआ, ऐसी बातचीत जो आप किसी के साथ नहीं करते, मम्मी-पापा की
लड़ाई की बातें शेयर करते हैं। लड़कों के ग्रुप में लड़कियों की बात होती है कि वो
लड़की कैसी दिखती है उससे कैसे बात करें, अगर लड़की से बात की तो वो कहीं किसी को
बता न दें वहीं लड़कियों के ग्रुप में भी लड़कों के बारे में बातें होती है-
लड़कों से कैसे बात करें, शर्म भी आती है कि लड़का उनके बारे में क्या सोचेगा।
इसके साथ ही लड़कों को ऐसा भी लगता है कि अगर वो लड़की होते तो उनपर ज्यादा
जिम्मेदारी नहीं होती या फिर ज्यादा काम नहीं करना पड़ता।
मैं पड़ोसी वाले
ग्रुप में थी और इस ग्रुप में एक भाई और बहन भी थे- यहां जो बातें निकलकर आई वो
काफी चौकाने वाली थी क्योंकि ये कहीं न कहीं जिस समुदाय में रहते हैं उसका आईना
पेश कर रही थी। 14 साल के प्रतिभागी ने कहा कि अगर एक लड़का-लड़की साथ में जाएं तो
उन्हें गलत ही समझा जाता है भले ही वो भाई-बहन ही क्यों न हो। इसकी शिकायत तुरंत
माता-पिता से कर दी जाती है। अगर कोई लड़की कॉलेज में पढ़ने जाती है तो भी उसके
बारे में हर तरह की बातें बनाई जाती है। लड़कियों के घर से देर तक बाहर रहने,
लड़कों से बातचीत करने यहां तक की उनके कपड़ों को लेकर भी उंगलियां उठाई जाती है।
वहीं लड़कों को अक्सर दोस्तों को लेकर, स्टाइल वाले कपड़े पहनने और बाहर घूमने को
लेकर सवालों में घेरा जाता है। इस ग्रुप का मानना है कि उनके माता-पिता को कोई समस्या
नहीं है पर पड़ोसियों और समुदाय के लोगों के दबाव के कारण उनसे उनकी आज़ादी छीन ली
जाती है।
इसके बाद हमने
एक कहानी के जरिए प्यार, सहमति और चुनने की आज़ादी के बारे में चर्चा की। ये काफी
सुखद आश्चर्य रहा कि इस उम्र के प्रतिभागियों सहमति और असहमति का फर्क जानते हैं
मसलन एक लड़की ने कहा, “ मैं उसे थप्पड़ मारती
और नाराज़ होकर चली जाती पर बाद में उससे जरुर पूछती कि किसलिए उसने मुझे किस
किया। मेरी सहमति के बिना मुझे वो कैसे छू सकता है।”
सत्र का आखिरी
और सबसे अहम हिस्सा प्रतिभागियों को सेक्स- क्या होता है और कब कर सकते हैं,
गर्भधारण और कंडोम की जानकारी देना था, इसके लिए हमने उन्हें “पप्पू और पापा- सेक्स चैट” सीरीज़
की दो फिल्में दिखाई जिसमें 10 साल का पप्पू अपने पापा से पूछता है कि बच्चे आते
कहां से हैं? सामाजिक धारणाओं को तोड़ते हुए पप्पू के पापा
बेहद आसान और सरल चीजों के माध्यम से सेक्स, गर्भवती होना और कंडोम के बारे में
बात करते हैं।
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