मुझे समझ नहीं आता है कि हम कैसे समाज का हिस्सा हैं। क्या ये आजाद भारत वो हैं जिसका सपना आज से सालों पहले गुलाम भारत के लोगों ने देखा था? क्या उन्होंने ये सोचा होगा कि आजादी के इतने साल बाद भी लड़कियां और महिलाएं खुद की कॉलेज में, कार्यस्थल पर, सार्वजनिक जगहों पर या फिर घरों में हिंसा का यूं शिकार होंगी? मेरे कान थक चुके हैं ये सुनते सुनते कि अब तो लड़कियां लड़कों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलती हैं, हमारे राजनीतिक पटल पर इतनी महिलाएं कार्यरत हैं, अब तो जेंडर गैरबराबरी है ही नहीं, आजकल तो लड़के खतरे में आ गए हैं, आपने वो किस्सा सुना जहां भरी रोड़ पर एक लड़की ने ऑटो वाले को तमाचा जड़ दिया, ये नारीवाद ने तो घरों का नाश कर दिया।
तो मैं उन सभी समाज के
ठेकेदारों,
ये बातें करने वाले बुद्धिजीवियों, मीडिया
वाले साथियों से पूछना चाहूंगी कि एक पढ़ी लिखी लड़की जिसने न जाने कितनी मेहनत और
चुनौतियों के बाद एक मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया, पूरी
पढ़ाई की और वो रात में पढ़ रही थी तो फिर किसी आदमी की कैसे हिम्मत हुई कि वो
वहां घुस आया, उसके साथ बलात्कार कर मौत के घाट उतार दिया।
जब किसी मेडिकल कॉलेज में एक भावी डॉक्टर सुरक्षित नहीं तो लड़कियां और महिलाएं
कहां सुरक्षित हैं – ये महज कोलकाता
का मामला नहीं है भारत के हर कोने में हर रोज हर घंटे ऐसी घटना होती है जिससे
लड़कियों की आजादी छीन रही है। कहां है वो लोग जो कहते हैं कि लड़कियां तो आज बहुत
आजाद हो गई हैं – क्या आपने रोड
पर चलती लड़की को देखा है तो सिमट कर, कभी दुपट्टा ठीक करती,
तो कभी साड़ी का पल्लू संभालती तो कभी अपनी शर्ट को देखती है कि कभी
कुछ दिखाई तो नहीं दे रहा है कि सामने वाला उसे ऐसे घू रहा है।
बलात्कार महज एक अपराध नहीं है
बल्कि लड़कियों और महिलाओं की आजादी छीनने का, अपनी मर्दानगी जताने का और सबसे
बड़ी बात एक ढांचागत फेलियर है प्रशासनिक तंत्रों की जो अलग अलग योजनाओं का दावा
देते हुए कभी वोट बैंक भरते हैं तो कभी अपने जैब। आजादी के समय अलग अलग जगह
कार्यक्रम करने, या फिर नारों से नहीं आएगी – बहुत जरूरी है कि लोग अपने गिरेबान में झांके और सोचे कि
कितने बार उनकी नजरों ने घूरा है, कितने बार उन्होंने महिला
या लड़की पर हो रहे भेदभाव या हिंसा से मुंह फेरा है, कितने
बार सिर्फ हिंसा को महिलाओं का मुद्दा मानकर छोड़ दिया है, कितने
बार घर में, अपने कार्यस्थल पर भेदभाव किया या देकर नजरअंदाज
किया है, कितने बार किसी के कपड़ों, आवाज
या बर्ताव पर कमेंट किया है या सुना है – हो सकता है ये
बातें आपको छोटी या बेमानी लग रही हैं – पर अगर आप इनमें
से किसी भी चीज के भागीदार रहे हैं तो आप भी कोलकाता में हुए मेडिकल छात्रा के
बलात्कार में हिस्सेदार हैं।
आजादी के मायने महज विकास से, शिक्षा से.
कानून में बदलाव लाने, प्रशासनिक कार्रवाई से नहीं बल्कि
अपनी रूढ़िवादी और पितृसत्तामक मानसिकता (फिर आपका कोई भी जेंडर, जाति या क्लास हो) को समझने और चुनौती देने से आएगी।
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