उज्जैन में
पुलिसकर्मियों के साथ दो दिवसीय जेंडर और जेंडर आधारित हिंसा पर बातचीत अधूरी रहती
अगर हम सत्ता पर विस्तार से समझ नहीं बनाते, क्योंकि जेंडर आधारित हिंसा की जननी
सत्ता और उससे उपजी गैर बराबरी है। सत्ता क्या है, कौन है जो सत्ता में है, सत्ता के
जातक, क्या सत्ता केवल नकारात्मक होती है? और बतौर पुलिसकर्मी आपके पास कानून की जो सत्ता
है उसको कैसे इस्तेमाल करके जेंडर आधारित हिंसा को चुनौती दी जा सकती है इन सभी
बिंदूओं पर हमने बातचीत की।
अपने निजी जीवन में
जेंडर आधारित हिंसा को देखना और बाकी प्रतिभागियों के साथ बांटना भावनात्मक तौर पर
काफी भारी रहा, ऐसे में उनको कुछ समय देना जरुरी था ताकि वो अपने मन में चल रही
भावनाओं के साथ रहे और उनसे तालमेल बना पाए। इस ब्रेक के बाद सभी प्रतिभागियों को
3-3 के समूह में बांटा गया और एक-एक पहचान दी गई उदाहरण के तौर पर ब्राह्मण पुरुष,
मुस्लिम लड़की, विकलांग अमीर लड़का, पुलिस अधिकारी आदि।
पॉवर वॉक के जरिए
प्रतिभागियों को अलग- अलग परिस्थितियों में डाला गया, अगर उनकी पहचान इन
परिस्थितयों में अपना अधिकार हासिल कर सकती है या नहीं, उस आधार पर उन्हे आगे
बढ़ने या फिर पीछे कदम रखने के लिए कहा गया। ये प्रक्रिया काफी अहम थी पहली इसलिए
क्योंकि तीन लोग को एक पहचान दी गई थी, उन्हें इस पर एकमत होकर फैसला लेना था- तो
यहां दो तरह से सत्ता काम कर रही थी: एक हमारे द्वारा दी गई पहचान और दूसरी समूह में फैसला लेने
वाले शख्स की।
इस पॉवर वॉक में कौन
सबसे आगे रहा, कौन अपनी जगह से कुछ कदम आगे बढ़ पाए और कौन अपनी निर्धारित जगह से
पीछे चले गए- प्रतिभागियों ने अपनी अपनी पहचान बड़े समूह में बताई और साथ ही ये
बताया कि किन परिस्थितियों की वजह से वो आगे कदम बढ़ पाए और किन में उन्हें पीछे
जाना पड़ा।
“मैं पुलिस अधिकारी हूं, ऐसे
में पता नहीं मेरी पोस्टिंग कहां हो तो पिता के दाह संस्कार में आ पाऊं या नहीं,
इसकी अनुमति मेरे उच्च अधिकारी पर रहेगी इसलिए मैंने एकदम पीछे बढ़ाया”
“मैं दलित लड़की थी, ऐसे में
मेरा 8वीं तक पढ़ना, घर से शाम या रात में बाहर निकलना, शारीरिक संबंध के दौरान
कंडोम के प्रयोग पर अपने पार्टनर को राजी करना क्योंकि शायद मुझे इस बारे में पता
नहीं होगा और दाह संस्कार के बारे में तो भूल जाओ। इसलिए मैं बहुत पीछे रह गई”
“अमीर विकलांग लड़का- मुझे
कुछ परिस्थितियों में पीछे जाना पड़ा जैसे अगर शहर में दंगा होता है, कोई लड़की से
छेड़खानी कर रहा है, टू विहलर चलाना पर क्योंकि मैं अमीर हूं इसलिए काफी चीजें
आसान भी रही।”
“बतौर महिला पुलिस अधिकारी,
कार्यस्थल पर मेरी सत्ता रहेगी, पुरुष भी मेरी बात सुनेंगे, पर घर पर मेरा पति मुझ
पर हावी हो सकता है, और उसके फैसले मुझे मानने पड़ेगे”
“बतौर शादीशुदा महिला, अपने
पार्टनर को कंडोम का इस्तेमाल करने पर, रात को दूसरी जगह रुकने, दाह संस्कार करने,
प्रॉपर्टी में हिस्सा लेने, बर्तन धोने जैसी परिस्थितियों में मुझे पीछे हटना पड़ा”
प्रतिभागियों ने जिस
तरह से अपनी पहचान और परिस्थितियों संबंधित फैसले सामने रखे वो सत्ता को समझने के
लिए काफी मददगार साबित हुए, सत्ता क्या है और किस तरह जेंडर, यौनिक पहचान, क्लास,
जाति, विकलांगता, धर्म और वर्ग से प्रभावित होती है या किस स्थिति में कौन सी
पहचान हावी रहती है पर समझ बनाई गई। इससे ये भी पता चला कि किसी एक शख्स के पास
हमेशा सत्ता नहीं रहती, किसी परिस्थिति में उसके पास सत्ता हो सकती है और दूसरी
जगह वो सत्ताहीन हो सकती है।
इसके साथ ही सत्ता
से प्रतिभागी क्या समझते है उसे माइड मैंपिंग के जरिए चार्ट पेपर पर उकेरा गया।
सत्ता के नाम से अक्सर नकारात्मक शब्द या विचार सामने आते है लेकिन साथ ही सत्ता
सकारात्मक हो सकती है- इसी बिंदू को पकड़कर हमने बतौर पुलिस सत्ता पक्ष पर चर्चा
की।
“सड़क पर हो रहे झगड़े में
अगर कोई आम आदमी लड़ाई रोकने की कोशिश करेगा तो हो सकता है वो पीट जाए पर एक
पुलिसकर्मी उस झगड़े को रोक सकता है”
“रात में किसी भी शख्स की
गतिशीलता पर रोक लग सकती है, पर पुलिस स्वच्छंद होकर कभी भी कहीं भी जा सकती है”
“किसी आम आदमी के मुकाबले
पुलिस न्याय दिलाने में हजार गुना सक्षम है”
“पुलिस जेंडर आधारित हिंसा
को रोकने का काम कर सकती है, और जेंडर पर जागरुकता के बाद ज्ञान की सत्ता भी है
हमारे पास”
सत्ता पर आधारित
सत्र अपने आप में जेंडर आधारित हिंसा को चुनौती देने वाला कदम साबित हुआ, क्योंकि
सत्ता को प्रतिभागी अब अलग तरीके के देख और समझ पा रहे थे। बतौर पुलिस और आदमी की
पहचान के साथ तो वो अपने आप को सत्ता में देख ही रहे थे साथ ही जेंडर पर अपनी समझ
के साथ वो और जागरुक होकर अपने निजी जीवन और कार्यस्थल में भेदभाव हटाने के लिए
खुद को सक्षम भी मान रहे थे।
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