समाज में महिलाओं को ऐसी भूमिका में मान्यता दी
जाती है जहां वो दूसरों की परवाह करती है, ख्याल रखती है, उनका सारा जीवन अपने
परिवार के इर्दगिर्द घूमता है, जब ये महिला अपने बारे में थोड़ी देर सोच ले तो भी
वो आत्मग्लानि से भर जाती है, ऐसे में अगर ये महिला अपने शरीर को अहमियत दे दे या
अपनी जरुरतों के बारे में सोच ले तो ये बात कयामत से कम नहीं होती। जेंडर पर समझ
बनाने के बाद पिलाना ब्लॉक में हमने महिलाओं के साथ “यौनिकता” पर बातचीत की शुरुआत की।
वर्कशॉप के दौरान आने वाले 2 घंटे में क्या होगा
और वर्कशॉप में किन बातों का ध्यान रखना है की जानकारी दी गई। सत्र का दूसरा खेल “सांप सीड़ी” था, हां वही खेल जो हम
सबने बचपन में खूब खेला है, एकदम ऐसे जैसे कि इस खेल की जीत हार ही हमारा भविष्य
तय कर देती हो, जो मुकाबले की भावना ये खेल देता है शायद कोई और खेल नहीं दे सकता।
सांप-सीड़ी के इस खेल में छोटा सा ट्वीस्ट रहा
क्योंकि सांप के मुंह और सीड़ी के शुरुआत में एक संदेश जुड़ा हुआ था, तो जैसे ही
किसी की गोटी यहां पहुंचती है तो प्रतिभागी को जोर से ये संदेश अपने समूह में
सुनना था।
“इस खेल को खेलकर बड़ा मज़ा आया। सांप सीडी का
खेल देखा तो था बच्चे खेलते थे पर मुझे पता नहीं था कि कभी मुझे भी ये खेल खेलने
को मिलेगा और साथ में जीवन से जुड़ी बातें जानने के लिए मिलेगी”
“मुझे कुछ संदेश अच्छे लगे- जैसे अगर अब किसी
लड़की के साथ छेड़खानी या बदतमीज़ी होगी तो मैं जरुर रोकूंगी”
“मैं तो अपनी बच्ची को पढ़ाउंगी और बेटे को बेटी
के जैसे घर का काम सिखाउंगी, अभी तो वो बोलता है कि ये सब काम आपके हैं, पर मुझे
समझ में आया कि ये काम सिर्फ मेरे नहीं है”
“क्या आप ये खेल हमें दे रही है, हम समूह की बैठक
में इसी खेल से शुरुआत करेंगे।”
इस खेल के बाद बॉडी मैप एक्टिविटी के लिए महिलाओं
को 4-4 के समूहों में बांटा गया, जहां उन्हें अपने समूह में से एक प्रतिभागी का
चुनाव करना था जिसका बॉडी मैप बनना है, फिर शरीर के सभी अंगों को बनाकर उनके नाम
लिखने थे।
इस गतिविधि की शुरुआत में सभी प्रतिभागी थोड़े
गुपचुप थे, फिर धीमी धीमी आवाज़े शुरु हुई, फिर बातचीत शुरु हुई और फिर ठहाकों की
आवाजें रुम में गूंजने लगी। वाकई ये एक्टिविटी किसी जादू से कम नहीं है, जो
महिलाएं घूंघट के नीचे रहती है, धीमी आवाज़ में बात करती है, शर्माती वो इस खेल के
बाद खुलने लगती है।
“ऐसा है शर्म तो छाती और योनि में आती है, तभी तो
नहाते समय गुसलखाने का इस्तेमाल करते हैं, दुपट्टा लेते है वहीं पुरुष बिना झिझक
कहीं भी नहा लेते हैं, पेशाब कर देते हैं, कई बार तो शर्ट भी नहीं पहनते”
“आनंद तो भरपेट खाना खाने में आता है, और शक्ति
भी उसी से मिलती है”
“ऐसी बात है कि शर्म तो आती है लेकिन आनंद तो
योनि में मिलता है, शरीर में मिलता है जब संबंध बनता है”
“इतना हंसने की क्या जरुरत है, देखो दो लड़कियां
दिल्ली से आई है, ये तो शादीशुदा भी नहीं है पर सेक्स से जुड़ी, हमारे मतलब से
जुड़ी बातें कर रही है, हमारे पास मौका है अपनी बात रखने का ऐसे में तुम लोग हंसकर
मौके को गंवाओ मत”
“दीदी मैं तो मना कर देती हूं जब ये कहते हैं। कई
बार मान जाते हैं लेकिन बहुत बार बिना मर्जी के होता है तो उसमें अच्छा नहीं लगता।”
“मेरा मन करता है तो मैं बता देती हूं कि आज मेरा
मन है। और जब संबंध नहीं बनाने तो साफ साफ कह देती हूं दूर रहिए। हर वक्त कैसे मन
करेगा”
बॉडी मैपिंग के जरिए हमने महिलाओं की इच्छाओं,
यौनिक भावनाओं, सहमति और सेक्स को लेकर खुलकर बातचीत की, जहां महिलाओं ने खुलकर अपनी
बातें, अपने अनुभव और परेशानियों के बारे में बताया। लेकिन सबसे अहम था कि जो
महिलाएं यौन शब्द सुनकर छी छी कर रही थी अब वो ही एक दूसरे को समझा रही थी।
एक प्रतिभागी, “छी छी, गंदी बातें है ये
सब। ये तो एक जिम्मेदारी है ही, शादी की है तो करना पड़ेगा ही ऐसे में इस पर कौन
बात करता है”
दूसरा प्रतिभागी, “इसमें छी छी की क्या बात
है, क्यों तुम नहीं संबंध बनाती, क्या मज़ा नहीं आता तुम्हें। अरे हमने भी किया है
सेक्स, हमारे बड़े लोगों ने भी किया तभी तो हम पैदा हुए है नहीं तो हम एक दूसरे के
सामने कैसे बैठे होते। समझदार बनो क्योंकि ये सब बातें हमें अपने बच्चों से भी
बांटनी है।”
यौनिकता पर आधारित ये कार्यशाला हमारे लिए कई
मायनों में अहम रही, क्योंकि महिलाओं के साथ दो किशोरियों ने भी इस कार्यशाला में
भाग लिया, उनका उत्साह किसी प्रतिभागी से कम नहीं था। दूसरी बेहद अहम बात ये रही
कि डेढ़ साल में पहली बार साहस का बैनर बना और एक सरकारी दफ्तर की दीवार पर
लगाया गया, ये वो कुछ पल है जो साहस के इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो जाएंगे ।
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