“मुझे नहीं लगता कि किन्नर बुरे
होते हैं। पता है दीदी जब हम दूसरी जगह रहते थे, तब घर के ऊपर वाले माले में
किन्नर रहा करते थे। एक दिन वो नहा रहे थे, लेकिन दरवाजे की कड़ी नहीं लगी थी और
मैंने गलती से दरवाजा खोल दिया। मेरी नजर उनके लिंग पर पड़ गई, पर मैं बहुत छोटी
थी दीदी मुझे अक्ल नहीं थी। लेकिन हैरानी की बात है कि उन्होंने मुझे नहीं डाटा और
बोला कुछ नहीं होता तुम जाओ यहां से।” एक प्रतिभागी ने
झिझकते हुए सत्र के दौरान ये बात सभी से बांटी।
प्रतिभागियों के सामने जब जेंडर प्रस्तुत किया
जाता है तो ये बात मन में बैठ सकती है कि लड़का और लड़की दो जेंडर होते हैं। बहुत
जरुरी है कि इस दौरान धारणा का दायरा बढ़ाया जाए और इस बात की समझ बनाई जाए कि
लड़की, लड़का के अलावा और कई जेंडर और यौनिक पहचानें होती है। और उससे भी जरुरी है
कि यौनिकता पर चर्चा की जाए- क्योंकि पहचानों की चर्चा करने से पहले खुद के लिए
यौनिकता के मायने या मैं अपनी यौनिकता को कैसे समझती हूं ये जानना और समझना बेहद
जरुरी है।
इसी बात को मद्देनजर रखते हुए जेंडर के तुरंत
बात किशोरियों के साथ यौनिकता पर आधारित सत्र किया गया। जहां समाज में यौनिकता के
नाम पर लम्बी चुप्पी साध रखी है, जहां युवा भी यौनिकता शब्द बोलने में झिझकते हैं
वहां किशोरियों के साथ यौनिकता की बात, फिर यौनिक पहचानों की बात और वो भी महज 2
घंटे के अंदर, हां ये काफी चुनौतिपूर्ण रहा। लेकिन इस सत्र में जो कुछ भी बातें,
कहानियां और सवाल निकलकर सामने आए उससे इस चुनौती को स्वीकारना एक रोचक अनुभव बन
गया।
सत्र की शुरुआत दो-दो प्रतिभागियों के बीच कुछ
बहुत ही निजी सवालों पर बातचीत के साथ हुई जैसे क्या कभी भी उन्होंने समाज का कोई
नियम तोड़ा है या फिर ऐसे कपड़े पहने हैं जो उन्हे बेहद पसंद है पर उन कपड़ों के
लिए उन्हें डांट पड़ी हो इत्यादि। सवालों की तरह जवाब भी काफी अन्तरंग रहे।
‘मेरी मम्मी को मेरा घर से बाहर
निकलना बिलकुल पंसद नहीं है। वो नहीं चाहती कि मैं कहीं भी जाऊं तो जब एक दिन मैं
अपनी दोस्त के घर खेलने के लिए चली गई, तो उन्होंने मुझे बहुत मारा और कहा कि आगे
से अगर तुम कहीं गई तो तुम्हारी टांगे तोड़ दूंगी।’ प्रतिभागी
ने कहा।
निर्देशक का सवाल, ‘फिर क्या हुआ? अब तुम खेलने नहीं जाती ?’
‘नहीं, ऐसा कैसे हो सकता है। मुझे
खेलना पसंद है तो मैं खेलने जाती ही हूं’ प्रतिभागी ने बिना
वक्त जाया करते हुए जवाब दिया।
सत्र को आगे ले जाते हुए प्रतिभागियों से एक के
बाद एक सवाल पूछे गए जहां उन्हें ये बताना था कि क्या वो सवाल में पूछी गई
परिस्थिति से सहज हैं या असहज। सवालों का पूछने का तरीका ऐसा था कि उन्होंने सोचने
के लिए ज्यादा समय नहीं दिया गया। कई बहुत रोचक बातें सामने आई जैसे लगभग सभी
लड़कियां ‘एक लड़का दूसरे लड़के से प्यार करता है’
इस बात से एकमत में असहज थी वहीं ‘संबंधों में हिंसा’ के एकदम खिलाफ थी, हालांकि कुछ लड़कियों ‘एक लड़की
दूसरी लड़की से प्यार करती हैं’ की बात से सहज थी।
इसके बाद प्रतिभागियों को गोले के बीच में रखी
हुई तस्वीरों में से एक तस्वीर चुननी थी और तस्वीर को देखकर उसे मर्दाना या फिर
औरताना डिब्बे में रखना था। कई प्रतिभागियों ने एकदम फटाफट निर्देश को मानते हुए
तस्वीरों को उनके हिसाब से जो सही है उसे डिब्बे में रख दिया। लेकिन इसमें कई फोटो
ऐसी हैं जिसे देखकर ये कहना काफी मुश्किल है कि उन्हें किस ढांचे में डाला जाए।
प्रतिभागियों के चेहरे पर चिंता और परेशानी के भाव थे क्योंकि आज तक हमने केवल दो
ही ढांचों के बारे में समझा है।
“दीदी ये लड़का है क्योंकि इसके
चेहरे पर तो बाल हैं, पर इसकी आंखे तो लड़की जैसी है। इसने मैकअप कर रखा है”
“ये तो लड़का है क्योंकि ये साधू
है”
“ये तो लड़की ही है क्योंकि
इन्होंने मेकअप किया है”
लेकिन जब इन तस्वीरों के पीछे की कहानी बांटी गई
तो प्रतिभागी स्तंभ रह गए। जिन्हें वो लड़का समझ रहे थे वो दरअसल एक लड़की थी जिसे
एक तरह की बीमारी हो गई थी जिसके वजह से उसके चेहरे पर बाल निकल रहे थे। जो उन्हें
लड़का लग रहा था वो दरअसल एक बौद्ध मॉक है।
इस प्रक्रिया से प्रतिभागियों को एक बात तो समझ
आ गई कि लड़का और लड़की के अलावा भी कई पहचानें होती हैं। इसी को आगे बढ़ाते हुए
अलग-अलग जेंडर और यौनिक पहचानों के बारे में जानकारी दी- ट्रांसजेंडर, किन्नर, गे,
लेस्बियन, इन्टरसेक्स आदि के बारे में समझ बनाई। और फिर 20 मिनट तक जो हुआ उसने
मुझे हिलाकर रख दिया। मेरे ऊपर सवालों की ऐसी बारिश हुई कि सवालों की छतरी खोलते
खोलते मैं पूरी सराबोर हो गई।
‘क्या किन्नर भी स्कूल में पढ़
सकते हैं, उन्हें एडमिशन कैसे मिलता है?’
‘क्या किन्नर बचपन से ही ऐसे होते
हैं’
‘क्या किन्नरों के माता-पिता होते
हैं’
‘लड़का-लड़का या फिर लड़की-लड़की
एक दूसरे के साथ सेक्स कैसे करते हैं’
‘क्या किन्नरों की शादी हो सकती
है’
‘किन्नरों के प्राइवेट अंग क्या
होते हैं’
‘अगर किन्नरों को पैसा देने से
मना कर दो तो वो पूरे कपड़े उतार देते हैं। मैंने उनका लिंग देखा था उसमें बहुत
बात होते हैं’
‘किन्नरों के पास लिंग कैसे हो
सकता है, क्योंकि उनके तो स्तन होते हैं न, स्तन तो लड़कियों के पास होने चाहिए’
‘किन्नर लड़के ही होते हैं पर जब
वो हमारी उम्र में आते हैं न तो वो लड़कियों से जैसा व्यवहार करने लगते हैं, तैयार
होने लगते हैं। वो किसी को कुछ नहीं कहते पर लोग उनका मज़ाक उठाते हैं उन्हें
परेशान करते हैं’
खैर जवाब देते देते भी कई सवालों ने मुझे एक बार
फिर घेर लिया। इतने में ही मोना ने उनसे पूछा, “अच्छा कोई बताएगा मुझे कि हम इन
सब बारे में बात क्यों कर रहे हैं? इतने तरह के लोग- हमे
जानना क्यों जरुरी है”
प्रतिभागी, "क्योंकि कई बार हमें इन पहचानों के बारे में जानकारी नहीं
होती, तो हम उनका मज़ाक
उड़ाते हैं और उनकी बेइज्जती भी कर देते हैं। अगर हमें जानकारी होगी तो हम उनका
वैसे ही सम्मान करेंगे जैसे हम एक दूसरे का करते हैं"
समलैंगिकता के बारे में प्रतिभागियों की समझ
एकदम दुरुस्त हो जाए इसलिए सत्र के आखिर में ‘पप्पू और पापा सेक्स चैट’ फिल्म दिखाई।
इस सत्र का निर्माण और एप्लीकेशन दोनों ही बेहद
भारी रहे, एक तरफ खुद के दिमाग में जंग चल रही थी कि कितनी जानकारी सही जानकारी
है, क्या प्रतिभागी ये सब समझ पाएंगे और अगर समझ गए भी तो क्या असल जिंदगी में उसे
अप्लाई कर पाएंगे? वहीं सत्र के दौरान सारी प्रक्रियाओं में
प्रतिभागियों की भागीदारी और उनमें समानुभूति का भाव आना यूरेका अनुभव से कम नहीं
था।
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