Sunday, 13 January 2019

जेंडर और यौनिकता के मुद्दों पर नागेपुर के युवा कार्यकर्ताओं का एक्शन प्रोजेक्ट


समुदाय में काम करने की कई सकारात्मक बातें हैं। मेरे लिए जो बात सबसे अहम है वो ये कि मेरी खुद की एक पहचान बन गई है, अब लोग मुझे किसी की बेटी, बीबी या मां के तौर पर नहीं पर मुझे जानते हैं।

वाराणसी के नागेपुर गांव के सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ आयोजित जेंडर, यौनिकता और सरोकार कार्यशाला के चौथे और अंतिम पड़ाव में जेंडर संबंधित मुद्दों पर बनी समझ को वो कैसे अपने काम में शामिल कर अमीली जामा पहनाएं पर विस्तार से चर्चा की गई। सभी प्रतिभागी वाराणसी से जुड़े गांवों में महिलाओं, किशोरियों और युवाओं के साथ शिक्षा, महावारी, रोजगार – सिलाई सेंटर, समेत अलग अलग मुद्दों पर काफी समय से काम कर रहे हैं, जाहिर सी बात है कि कार्यशाला में निकल कर आई कहानियां इनके निजी जीवन और कार्यस्थल से जुड़ी हुई है इसलिए जेंडर और जीवन का जुड़ाव रुपी पहली सीढी इन्होंने पार कर ली है। दूसरी बात ये कि वो समझ पा रहे थे कि उनका काम और जेंडर दो अलग-अलग बातें नहीं है, एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। 

चौथे सत्र की शुरुआत धारणाओं और पूर्वानुमानों को समझने के साथ हुई। अक्सर जब हम किसी सामाजिक मुद्दे पर काम करते हैं, तो काफी बातों और रुकावटों का सामना करना पड़ता है, तो प्रतिभागियों को आमंत्रित किया गया कि वो खुलकर ये बताएं कि लोग उनके काम की वजह से उनके बारे में क्या कहते हैं और जब वो ऐसे लोगों से मिलते हैं जो जेंडर पर काम करते हैं उनके बारे में वो खुद क्या राय रखते हैं?



जब पहली बार दीदी और भइया हमारे गांव में महावारी को लेकर बातचीत करने के लिए आए थे, तो लगा कि इनको शर्म नहीं आती महावारी के बारे में बात करते हुए? लड़के के साथ आईं है तो ये सब कैसे बोल सकती हैं?”
मुझे लगा कि आदमी क्यों महावारी पर बात करेंगे? हम लड़कों को नहीं बता सकते इस बारे में
इन सब पर खुलकर बात करना नहीं चाहिए। कितने बेशर्म है।

हम जब महावारी पर बातचीत कर रहे थे, तो साथ साथ स्वास्थ्य संबंधित सलाह भी दे रहे थे। हमने बताया कि जरुरी नहीं है कि पुरुष ही कंडोम लें, लड़कियां भी ले सकती है क्योंकि सुरक्षित यौन संबंध होना चाहिए। इस समूह में किशोरियों के साथ कई महिलाएं भी बैठी हुई थी। वो गुस्सा हो गई और बोलने लगी कि हम लड़कियों को बिगाड़ रहे हैं, गलत बातें बता रही हैं


अक्सर जेंडर पर काम करने वालों को चरित्रहीन माना जाता है, लोगों को लगता है कि वो कितने बजे भी घूम सकती हैं, किसी के भी साथ सोने के लिए तैयार हो जाएंगी, हमारे साथ किसी भी तरह की बातचीत की जा सकती है

हमने एक समारोह में बच्चों के डांस की तैयारी करवाई थी, तो परिजनों ने आपत्ति जताई और साफ मना कर दिया कि लड़कियां लड़कों के साथ नहीं नाचेंगी। अलबत्ता लड़कियां ही नहीं डांस करेंगी।
जब मैं देखता हूं कि लड़कियां जेंडर जैसे गहन मुद्दे पर काम करते हैं, तो मुझे हमेशा लगता है कि इनके परिवार कितने संवेदनशील होंगे।

लोग बहुत अजीब तरीके से देखते हैं, मानो मैंने पता नहीं क्या गुनाह कर दिया हो।’ 


इस चर्चा को आधार बनाते हुए प्रतिभागियों में धारणा क्या होती है, कैसे लोग हमारे बारे में धारणा बना लेते हैं और कैसे हम भी बिना किसी को जाने उसके बारे में पूर्वानुमान लगाते हैं पर समझ बनाई गई। जरुरी बात ये है कि ये धारणाएं और पूर्वानुमान ज्यादातर सही नहीं होते, जिसकी वजह से कई बार हम लोगों से बात करने से कतरा जाते हैं और उनसे जुड़ नहीं पाते- ऐसे में सामाजिक कार्य करना और बदलाव लाना मुश्किल हो जाता है। ऐसा मुमकिन नहीं है कि एकदम से ये धारणाएं और पूर्वानुमान छूमंतर हो जाए, जरुरी ये है कि हम इन्हें देख पाएं, सवाल कर पाएं और लोगों से संवाद करें तभी समाजिक बदलाव लाया जा सकेगा।

दूसरी एक्टिविटी में हमने सामाजिक मुद्दों पर काम करने की क्या साकारत्मक बातें हैं पर चर्चा की-
इन मुद्दों पर काम करने की वजह से मुझे घर से बाहर निकलने को मिला, कई नई बातें सीखी और स्वाबलंभी बन पाई
अब मैं खुलकर महावारी के बारे में बात कर पाती हूं। मेरे सिलाई सेंटर में किशोरियां आती है- तो मैं उनसे बात करती हूं, अच्छा लगता है जब वो खुलकर अपनी बातें, समस्याएं मेरे सामने रखती हैं
महावारी के मुद्दे पर मेरी खुद की समझ बनी, इससे जुड़े मिथक बातें साफ हुई
सामाजिक मुद्दे मुझ से जुडा हुआ है तो लगता है कि मैं अपने लिए कुछ कर पा रही हूं। अच्छा लगता है और आज़ाद महसूस होता है।


इसके बाद सामाजिक मुद्दों पर काम करने को लेकर क्या-क्या चुनौतियों का सामना करना पड़ता है- पर प्रतिभागियों ने अपनी अपनी बातें सामने रखी-
बार-बार बोला जाता है कि महिला हो तो घर में ही रहो, बाहर जाकर क्या करोगी
साइकिल चलाकर काम करने के लिए जाती हूं तो लोग ताने मारते हैं और कहते हैं कि इसके घर में कोई मर्द नहीं है कमाने के लिए
पता नहीं क्या करती है, साइकिल चलाकर जाती है, कलेक्टर बन गई है
गंदी औरत, घर तोड़ने वाली, लड़कियों को बिगाड़ने वाली, चरित्रहीन औरत जैसे शब्द कई बार सुनने के लिए मिलते हैं

एक बेहद अहम बात जो इस चर्चा से सामने आई- ये सभी महिलाएं चुनौतियों को भी चुनौती दे रही हैं। पहली बात तो उत्तर प्रदेश के गांवों में जहां महिलाओं को घर से बाहर नहीं निकल दिया जाता है वहां ये समाज में बदलाव लाने के मकसद से बाहर जा रही हैं। साइकिल चलाना पुरुष होने से जोड़ा जाता है- ये महिलाएं अपनी ससुराल में साइकिल चलाती है। शुरुआत में साड़ी पहनती थी पर अब सूट पहनकर जाती है। लोगों के ताने और उलाहनाओं ने भी इनके दृढ़ निश्चय को हिला नहीं पाया – वो मजबूती से आगे बढ़ रही है जो काबिल-ए-तारिफ बात हैं।


इस चर्चा के दौरान एक ऐसा किस्सा सामने आया जिसने यौनिकता, जेंडर और धारणाओं का लाइव उदाहरण पेश कर प्रतिभागियों की समझ को और पुख्ता करने में मदद की।

मैंने अपनी बाजू पर टैटू बनवाया था, मुझे वो काफी पसंद था। लेकिन जब भी कोई देखता है तो हंसी उड़ाता है, ताने देता है, कार्यस्थल पर काम करने वाले संगी साथी भी बॉडी बिल्डर कह कर पुकारते हैं।- महिला प्रतिभागी

आपने ही तो कहा था कि इन मुद्दों को समझकर हमें लगता है कि हम तुरंत बदलाव ला देंगे पर ऐसा नहीं है। जो बदलाव सिलसिलेवार, तर्कसंगत और निरंतर तौर पर किया जाए तो ज्यादा प्रभावी होता है। जेंडर पर समझ बनते ही एकदम से खलबली मचा देने से लोगों को लगेगा कि ये सीरीयस नहीं है महज दिखावा है – पुरुष प्रतिभागी

हमें अपनी यौनिकता को अभिव्यक्त करना चाहिए लेकिन अगर दूसरे को असहज महसूस हो तो क्या ये गलत नहीं है। हमें सोच विचार करके चीजें करनी चाहिए।


इस चर्चा से समझ आया कि जब एक महिला अपनी यौनिकता व्यक्त करती है तो कैसे तुरंत उसे दबाने की कोशिश की जाती है – कैसे महज एक टैटू लगाने से वो असहज महसूस करने लगते हैं। इसी बिंदू को लेकर हमने बात कि कैसे जेंडर और यौनिकता के मुद्दे भी लोगों को असहज करते हैं क्योंकि हमें एक ढांचे में बंधे रहने की आदत है, जो बातें ढांचे को तोड़ती है उसे हम गलत मानते हैं तभी जेंडर के नाम पर हम अभी भी महिला और पुरुष की बातें करते हैं। समाजसेवी होने के बावजूद, इन मुद्दों पर ट्रेनिंग लेने पर भी हम कई ढांचों को तोड़ नहीं पाते अपनी धारणाओं के परे नहीं देख पाते- ऐसा क्या गजब हो जाएगा एक महिला के टैटू बनाने से ये सोचने की बात हैं।


इसी बात को आगे बढ़ाते हुए एक महिला ने कहा, ये दीदी मेरे पड़ोस में रहती है, मुझे इनका टैटू बड़ा पसंद आया जिसकी वजह से मैंने भी अपनी बाजू पर मेहंदी की डिजाइन बनवाई। तो लोग कहने लगे कि दीदी की गलत आदतें लग गई है मुझे। पर काम करने की वजह से मुझे साइकिल लेनी पड़ी फिर स्कूटी – अब हर बात पर लोग कहते है कि गलत रास्ते पर निकल गई है। पर मुझे लगता है कि अगर एक औरत आगे बढ़ती है तो दूसरी औरतों को आगे बढ़ने का मौका मिलता, उन्हें लगता है कि वो भी घर की चार दीवारी से निकल कर कुछ कर सकती है।


सत्र की अंतिम और सबसे अहम एक्टिविटी में प्रतिभागियों ने अपने कार्यक्षेत्र – यानि स्कूल में पढ़ाने वाले टीचर, सिलाई सेंटर में काम करने वाले, गांव में युवाओं के साथ काम करने वाले और महिला स्वंय सहायता समूहों के मुताबिक चार समूह बनाए। हर समूह ने अपने काम, किनके साथ वो काम करते हैं, वहां के क्या अहम मुद्दे हैं पर चर्चा करते हुए वर्कशॉप में सीखी हुई बातों को शामिल करते हुए एक्शन प्रॉजेक्ट तैयार किए। एक बात जो मुझे बेहद पसंद आई कि ये सभी प्रोजेक्ट काफी सहज रहे, ऐसा लगा कि इनपर काम किया जा सकता है, और इनपर काम करने की जरुरत है। प्रतिभागियों ने काफी विस्तार से प्रोजेक्ट की रुपरेखा तैयार की – जहां उन्होंने समय सीमा तय की, प्रोजेक्ट का उद्देश्य और परिणाम तय करा, एक्टिविटी, चुनौतियां और क्या सहायता चाहिए भी रेखांकित की।


गांवों में कई दीवारों पर, सड़कों पर अकेली खड़ी दीवारों पर कई बार लिखा होता है कि गुप्त रोगी यहां आकर मिलें, यहां उन्हें सहायता मिलेगी- ये सब देखकर युवाओं के मन में कई सवाल उठते हैं, यौनिकता और निजी अंगों के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं होती- ऐसे में स्कूली शिक्षा के साथ साथ मैं उनके साथ जेंडर, सेक्स और यौनिकता पर भी बातचीत करुंगा। मैंने एक नाटक मंडली तैयार की, हम कोशिश करेंगे कि इन मुद्दों पर नाटक के जरिए लोगों को जागरुक किया जा सके।

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