Saturday 12 January 2019

जेंडर आधारित हिंसा पर समझ बनाते और चुनौती देने के लिए कमर कसते नागेपुर गांव के युवा


लड़कियों को बस नाम भर के लिए पढ़ाया जाता है ताकि शादी-ब्याह के समय कोई ये न कहे कि लड़की अनपढ़ है। अगर लड़की आगे की पढ़ाई करना चाहे तो ये कहकर उसका मुंह बंद कर दिया जाता है कि ससुराल में तेरी पढ़ाई से तो घर चलेगा नहीं। आगे चलकर वैसे भी तुझे चूल्हा चौका ही करना है।

वाराणसी के नागेपुर गांव के सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ आयोजित जेंडर, यौनिकता और सरोकार वर्कशॉप के दूसरे सत्र में जेंडर आधारित भेदभाव और पित्तृसत्ता पर समझ बनाई गई। सत्र को शुरु करते हुए प्रतिभागियों को 6 समूहों में बांटा गया जहां उन्हें घर, सार्वजनिक जगहें, कार्यस्थल, मीडिया, धर्म और शिक्षा में दिखने वाले जेंडर आधारित फर्क पर चर्चा करने के लिए आमंत्रित किया गया।

घर-
घर-परिवार में महिला और पुरुष के काम, व्यवहार और जिम्मेदारी में काफी फर्क दिखाई देता है। जैसे महिला का काम है- घर की साफ सफाई करना, खाना बनाना, परिवार के सभी सदस्यों के खाना खाने के बाद ही भोजन करना, पर्दे में रहना, परिवार के छोटे-बड़े फैसलों में महिला की कोई भागेदारी न होना, महावारी के दौरान महिलाओं को किचन में जाने पर, आचार छूने पर पाबंदी, बच्चा पैदा करना और उसकी देखभाल करना। एक बात जो गौर करने वाली रही वो थी कि बच्चे न पैदा होने की जिम्मेदारी महिलाओं पर आती है क्योंकि महिला को ही नसबंदी करवानी पड़ती है।



वहीं पुरुष घर परिवार के सभी बड़े फैसले लेता है, नौकरी करता है, बारात में जाता है, अंतिम संस्कार, राजनीति, मनोरंजन जैसे शराब पीना, बाहर घूमना फिरना, फिल्म देखने, वाहन चलाने जैसे काम करता है।  

कार्यस्थल-
गांव के पंचायत चुनाव और उससे जुड़े कामों में पुरुष भाग लेते हैं। पंचायत चुनाव में महिलाओं से बढ़चढ़ कर प्रचार करवाया जाता हैं लेकिन उनके जीतने और प्रधान बनने पर उसका पति ही गांव संबंधित फैसले लेता है, लोगों से मीटिंग करता है और पत्नी को घर से बाहर नहीं जाने देता। मैंने महिला प्रधानों के साथ बातचीत की है, वो बाहर जाना चाहती है, लोगों से मिलना चाहती है, गांवों की समस्याओं को सुनकर उनका समाधान करने की इच्छुक है पर पति की पाबंदी के चलते वो घर में बंद होकर रह जाती हैं।


घर का काम महिलाएं करती हैं, पुरुष मज़दूरी का काम करते हैं, मनरेगा के तहत मिलने वाला काम महिलाएं करती हैं, रेलवे स्टेशन पर कुली का काम पुरुष करते हैं
ज्यादातर कार्यस्थलों पर पुरुष ही मालिक की भूमिका में होते हैं। काम के वेतन की बात करें तो पुरुषों को ज्यादा सैलरी मिलती है महिलाओं के मुकाबले।

शिक्षा-


स्कूलों में लड़कियों को सबसे आगे बैठाया जाता है
लड़कियों को मैदान में घूमने नहीं दिया जाता
लड़कियों को लड़कों के मुकाबले कम पढ़ाया जाता है, लड़कों को पढ़ने के लिए गांव से दूर, शहर भी भेजा जाता है
लड़के और लड़कियों के खेल में अंतर होता है, लड़कों को खुले मैदान में खेलने को कहा जाता है, लड़कियों को इंडोर गैम खेलने।
पढ़ाई लिखाई की सामग्री लड़कों के लिए तुरंत उपलब्ध करा दी जाती है
परिवारवालों की सोच होती है कि लड़कों को खूब पढ़ाया जाए ताकि वो नौकरी कर पैसा कमाएं, वहीं लड़कियों को पढ़ाने से क्या फायदा क्योंकि उन्हें तो शादी करके दूसरे के घर जाकर चौका-चूल्हा ही संभालना है
लड़कियों को साधारण ढंग से रहने को कहा जाता है, शिक्षित होने का मतलब है कि लड़कियां अपना नाम, गांव का नाम लिख ले और हस्ताक्षर कर पाए

सार्वजनिक स्थल-
बाज़ार में ज्यादातर पुरुष ही नज़र आते हैं, गांव की पंचायतों में पुरुषों की ही भागीदारी होती है, ट्रेन में कुली का काम, ड्राइवर का काम पुरुष ही करते हैं। दुकानों का संचालन भी पुरुष करते हैं

ट्रेन, बस में महिलाओं को छोड़ने के लिए उनके साथ पुरुष जाते हैं। बस में महिलाओं की सीट पर पुरुष बैठ जाते हैं, और अगर उन्हें कुछ बोलो तो वो धौंस दिखाते हैं।


हमारे गांव में हर घर में शौचालय नहीं है, सार्वजनिक शौचालय हैं जहां सिर्फ पुरुष ही जाते हैं। अगर कोई महिलाएं जाएं तो उनके बारे में धारणाएं बनाई जाती है, उनको अलग नज़रों से देखा जाता है।

धर्म-
मुस्लिम धर्म में महिलाओं के मस्जिद में जाने पर पाबंदी है, महावारी के दौरान मज़ार पर महिलाएं नहीं जाती, बिना नकाब के बाहर निकलने पर भी रोक है।


हिंदू धर्म में कुछ ऐसे मंदिर हैं जहां महिलाओं के प्रवेश वर्जित है, महावारी के दौरान महिलाएं मंदिर में नहीं जा सकती। धर्मगुरु हमेशा पुरुष ही होते हैं।

मीडिया-
अखबरों, न्यूज़ चैनल पर महिलाओं और बच्चियों के साथ रेप और छेड़खानी की खबरों को सनसनीखेज तरीके से दिखाया जाता है

पुरुषों के खेलों की अधिक ख़बरें होती है, फिल्मों में महिलाओं को कमज़ोर दिखाया जाता है और हमेशा पुरुष ही उन्हें मुश्किलों से बचाते हैं।

हर सीरियल में महिलाओं को घर के प्रति जिम्मेदार दिखाया जाता है और पुरुषों को बाहर का काम करते दिखाया जाता है।

महिला एक अच्छी मां, अच्छी बहन और एक अच्छी पत्नी के तौर पर दिखाई जाती हैं।
मनोरंजन के तौर पर महिलाओं पर जुल्म दिखा- पुलिस और वकीलों द्वारा तमाम सवाल करना ज्यादा दिखाया जाता है

इन समूहों की चर्चा के दौरान कई बेहद जरुरी बातें और ग्रामीण परिपेक्ष्य सामने निकलकर आया जिसने खुद प्रतिभागियों को भी हैरान कर दिया। ये पूछने पर कि इस चर्चा का निचोड़ क्या रहा – प्रतिभागियों ने काफी रोचक जवाब दिए।


पंचायत चुनाव के दौरान पुरुषों को अपने परिवार की इज्जत या शर्म का ख्याल नहीं आता जब महिलाओं से प्रचार प्रसार करवाया जाता है पर जैसे ही वो जीत जाती है और प्रधान बन जाती है, तुरंत परिवार की इज्जत की दुहाई देकर उन्हें घर तक सीमित कर देते हैं। हर फैसले पर पुरुष की ही सत्ता नज़र आती है

समाज में जैसे परिस्थिति है, वैसे ही मीडिया, सीरियल में दिखाई देता है- महिलाओं को कमजोर दिखाया जाता है, उसे घर के काम करवाए जाते हैं। कहीं न कही इसकी वजह से भी गैर बराबरी है

इन सभी 6 जगहों पर महिला और पुरुष में गैर बराबरी दिखती है, हर जगह पुरुष ऊपर और महिला नीचे दिखाई देती है। पुरुष प्रधान समाज है हमारा जहां सारे फैसले पुरुष के होते हैं- महिलाओं को सिर्फ बताया जाता है कि उन्हें क्या करना है और क्या नहीं।


प्रतिभागियों की चर्चा से जोड़ते हुए पित्तृसत्ता पर समझ और कैसे पित्तृसत्ता ही इस गैरबराबरी के लिए जिम्मेदार है पर समझ बनाई गई। इसके बाद हुए लंच ब्रेक में जो हुआ उसे देखकर खुशी तो हुई ही बल्कि उम्मीद की एक नई किरण भी दिखी। वर्कशॉप के प्रतिभागियों ने मिलकर खाना बनाया- महिला और पुरुष दोनों ही सब्जी काटते, सब्जी बनाते, पूड़ियां बेलते और सेकते नजर आए। जेंडर पर बातचीत के बाद अगर कामों पर से जेंडर के काले बदल हट जाएं तो चर्चा मानो सफल हो गई।



ब्रेक के बाद प्रतिभागियों में स्फूर्ति लाने और जेंडर आधारित हिंसा के सत्र की तैयारी के मद्देनजर भेड़ और भेड़िये का खेल खिलाया गया। प्रतिभागियों ने बहुत चालाकी से, सोच विचार करके भेड़िए के चक्रव्यू को भेदते हुए अपने आप को आज़ाद करावाया।



सत्र के अगले हिस्से में प्रतिभागियों को पांच समूहों में बांटा गया जहां उन्हें एक वाक्य दिया जिसपर उन्हें चर्चा कर ये तय करना था कि वाक्य में दी गई स्थिति हिंसा है या नहीं?
लड़कों को रोना नहीं चाहिए- इस समूह के प्रतिभागियों में परिस्थिति को लेकर काफी असमंजस बना रहा। पर समूह ने एकमत होकर कहा कि ये सही नहीं है, अगर घर में किसी की मौत हो जाए, बहन की शादी हो या फिर घर से दूर रहना हो तो पुरुषों का रोना मान्य है। ये कहना कि लड़कों को कभी रोना नहीं चाहिए हिंसा हो सकता है क्योंकि उनकी भावनाओं को दबाया जा रहा है।
अक्सर पुरुषों को बोला जाता है कि महिलाएं भावुक होती है, पुरुष घर का मुखिया होता है ऐसे में अगर वो भी कमजोर पड़ जाए तो घर परिवार को कौन संभालेगा। इसलिए कई बार भावनाओं को दबाकर रखना पड़ता है।


घर का काम करने वाला मर्द जोरु का गुलाम है-  ये बात अक्सर पुरुषों को सुनने के लिए मिलती है जब वो घर का काम करने में सहयोग देते हैं। किसी को बार बार ताने मारना हिंसा में आता है और ये सही नहीं है। ये समूह जब अपनी चर्चा को बड़े समूह में सांझा करने वाले थे उसी से पहले वाक्य सुनते ही एक पुरुष प्रतिभागी ने तुरंत कहा-
मैं घर में बाथरुम साफ कर रहा था, कि भाभी ने मुझे ताना मारते हुए कहा कि तुम्हारी बीबी कहां चली गई। घर में कोई लड़की नहीं है जो तुम औरतों वाले काम कर रहे हो।


रेप, छेड़खानी इसलिए होती है क्योंकि लड़कियां मार्डन हो गई है, छोटे कपड़े पहनती है, रातभर बाहर घूमती हैं-
रेप और छेड़खानी का मार्डन होने से कोई संबंध नहीं है। अगर ऐसा होता तो बच्चियों और बुजुर्ग महिलाओं के साथ रेप क्यों होता? जो पूरे कपड़ों में ढकी रहती हैं उनके साथ भी रेप होता है। इसी ग्रुप के पुरुष प्रतिभागियों का मानना था कि नशा करने, अश्लील फिल्म देखने और लड़के-लड़कियों की दोस्ती और बातचीत नहीं होने की वजह से रेप होता है। हालांकि एक महिला प्रतिभागी ने कहा – महिलाओं के कपड़े देखने से पुरुष उत्तेजित होते हैं लेकिन गांव में तो पुरुष सिर्फ लुंगी या अंडरवीयर में घूमते हैं पर महिलाएं तो उत्तेजित होकर उनके साथ छेड़खानी नहीं करती।


जो आदमी अपनी पत्नी के साथ मारपीट करता है, उसके पास जरुर कोई कारण होगा ही- ये तो हिंसा है। पहली बात तो मारपीट किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। मारपीट से शारीरिक, भावनात्मक हिंसा होती है- इसके चलते परिवार और बच्चों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

घर में खाना बनाना महिलाओं की जिम्मेदारी है- इस परिस्थिति को लेकर काफी मज़ेदार और गहमागहमी भरी चर्चा हुई। ग्रुप के ज्यादातर लोगों ने इसे हिंसा मानने से इनकार कर दिया। उनके मुताबिक अगर जबरदस्ती खाना बनवाया जा रहा है तो ही हिंसा है वैसे नहीं। लेकिन बड़े समूह में चर्चा के बिंदू रखते हुए कई प्रतिभागियों ने अपने मत रखे- क्या खाना बनाने के लिए किसी ने लड़कियों से कभी भी पूछा, पहले से ही सोच लिया गया कि खाना बनाना तो लड़कियों का ही काम है। महिलाएं अगर बाहर काम करके आए, बीमार हो तब भी उन्हीं को खाना बनाना पडता है- क्या उन्हें ये ज़िम्मेदारी चुनने का अधिकार मिला है?

इन्हीं चर्चाओं को आधार बनाते हुए जेंडर आधारित हिंसा पर समझ बनाई गई – जिसमें बताया गया कि हिंसा केवल शारीरिक ही नहीं – बल्कि आर्थिक, भावनात्मक, मानसिक, सांस्कृतिक और यौनिक भी होती है।


सत्र के अगले पड़ाव में प्रतिभागियों को उनके समुदाय में होने वाली हिंसा के बारे में सोचने और उसे सांझा करने के लिए आमंत्रित किया गया-

बसों में, रास्ते में चलते हुए पुरुष महिलाओं के शरीर रगड़ते हैं
गर्भवती न होने के कारण परिवारवालों के साथ साथ आसपड़ोस के लोग भी ताने मारते हैं, परेशान करते हैं।
मेरे ससुरालवाले मुझपर काम छोड़ने का दवाब डालते हैं, तकरीबन हर रोज कुछ न कुछ करते हैं, ताने मारते हैं लेकिन मेरे लिए ये नौकरी बहुत जरुरी है- मुझे आर्थिक सुरक्षा मिलती है और साथ ही घर से बाहर निकल पाती हूं

हमारे गांव में लड़का-लड़की अपनी पंसद से शादी नहीं कर सकते। अगर दो लोग एक दूसरे से प्यार करते हैं और उनके परिवारवालों को पता चल जाता है तो वो उनपर हिंसा करते हैं
मेरे साथ कई बार शारीरिक और मानसिक हिंसा की गई है

एक बार विजयदशमी के अवसर पर दुर्गा पूजन का आयोजन किया गया था। सभी लोग उसे सफल बनाने में लगे हुए थे। इस दौरान बच्चियां द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति की जा रही थी। लेकिन गांव के कुछ बुजुर्ग लोग कार्यक्रम को बंद कराने का दवाब बनाने लगे, मारपीट तक नौबत आ गई जिसकी वजह से कार्यक्रम को बंद करना पड़ गया। कार्यक्रम करवाने वाले कलाकारों को धमकी दी गई। ये सब इसलिए क्योंकि वो नहीं चाहते थे कि बच्चियां सांस्कृति कार्यक्रम प्रस्तुत करें।

महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों पर ही हिंसा होती है। मेरे ही एक संगी साथी था, कुछ समय पहले उसने बताया कि कैसे उसकी पत्नी उसे परेशान करती है, ताने मारती है। वो काफी परेशान रहता था। कुछ समय पहले पता चला कि उसने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली।


अलग जाति के लड़की या लड़के से प्यार करने पर अत्याचार होना

बेटे की चाहत में महिलाओं को बार बार गर्भवती होने के लिए विवश करना
लड़की पैदा होने पर महिला की बेइज्जती करना, ताने मारना
लड़के की पसंद से शादी होने पर भी वो लड़की पर अत्याचार करता है
अपने मन मुताबिक जीवनसाथी का चयन न करने की पाबंदी
हमारे काम के समय के अलावा भी काम लिया जाता है
 
पहले दिन की समाप्ति प्रतिभागियों के फीडबैक के साथ हुई-

आज का दिन काफी अच्छा रहा, पहले भी ट्रेनिंग हुई है लेकिन खेलों और कहानियों के जरिए बातचीत रोचक हो गई और मुद्दों पर समझ आसानी से बन पाई
मुझे जेंडर आधारित हिंसा के बारे में पता नहीं था। हिंसा शारीरिक के अलावा भी हो सकती है ये जानकारी काफी अहम है

भेड़ और भेड़िए के खेल के जरिए समझ में आया कि अगर हम चाहे तो जेंडर आधारित हिंसा को चुनौती दे सकते हैं। समाज में बहुत हिंसा है, इसके साथ ही जेंडर आधारित मानसिकता को बदलना बेहद जरुरी है।       

No comments:

Post a Comment