“मेरे पड़ोस में एक लड़का
रहता है, कभी-कभार मैं उससे बात भी करती थी। कुछ दिनों से वो परेशान सा दिख रहा
था, मैंने सोचा कि मुझे उससे बात करनी चाहिए। लेकिन थोड़ा डर लग रहा था,
कि एक तो वो मुझसे बड़ा है और वो लड़का भी है। मुझे आपकी बात याद आई कि जैसे हम एक
दूसरे से बात करते हैं वैसे लड़कों से भी बात कर सकते हैं। इसलिए मैंने हिम्मत
जुटाकर उससे बात की। पहले तो वो झिझक रहा था पर धीरे धीरे उसने मुझे बताया कि कैसे
एक अंकल उसके साथ गंदी हरकत करना चाहते हैं। वो बहुत डरा हुआ था, मैंने उसे समझाया
और जोर देकर कहा कि बिना सहमति के आपको कोई नहीं छू सकता, ये गलत है और इसमें
तुम्हें डरने की कोई जरुरत नहीं और इसमें तुम्हारी कोई गलती भी नहीं है। अपने
माता-पिता से इस बारे में बात करो, वो तुम्हारी मदद जरुर करेंगे। फिर हम उसने और
मैंने उसके माता-पिता से बात की। उन्होंने न केवल उसे प्यार से संभाला बल्कि गंदे
अंकल की पिटाई भी की”
11 साल की एक छोटी सी, बेहद नाजुक सी दिखनी वाली
बेहद हिम्मतवाली लड़की ने अडोलेस्टेंट जेंडर फैसिलिटेटर मीट के दौरान ये बात सांझा
की। किशोर-किशोरियों के साथ जेंडर, यौनिकता और प्रजनन स्वास्थ्य को लेकर साहस पिछले
2 साल से काम कर रहा है, इस दौरान हमने सोचा नहीं था कि जिन मुद्दों का नाम लेने
पर व्यस्क लोगों के चेहरे पर झिझक और शर्म के बादल घिर जाते हैं उन्हीं मुद्दों को
लेकर किशोर-किशोरी अपने आप-पास की जगहों में अपने हम-उम्र लोगों से बातचीत करेंगे।
उनकी इसी जागरुकता, जिज्ञासा और समझ को मजबूती देने के लिए हमने ‘अडोलेस्टेंट जेंडर
फैसिलिटेटर’ कार्यक्रम की शुरुआत की।
कार्यक्रम के मद्देनजर हमने ‘छोटी सी खुशी संस्था’ की 5 किशोरियों के साथ
मुलाकात की जिनमें से 3 किशोरियां संस्था में आने वाली बच्चियों के साथ, 1 अपने
पड़ोस में रहने वाली किशोरियों और 1 अपने स्कूल में सहपाठियों के साथ जेंडर, सेक्स
और बाल यौन शोषण के मुद्दों पर लगातार बातचीत कर रही है।
इससे पहले की हम अपने प्रतिभागियों से बात कर
पाते उनमें से एक ने कहा, “दीदी, हमारे अनुभव तो हम बांट ही लेंगे, पर क्यों न आप उन लड़कियों
से पूछो कि हमने उन्हें क्या सिखाया, क्या उन्हें समझ में आया? इससे पता चलेगा कि उनकी समझ कितनी बन गई है साथ
ही एक फीडबैक भी मिल जाएगा”
मेरे चेहरे पर एक हैरान कर देने वाली मुस्कान
तैर रही थी, दो मिनट के लिए समझ नहीं आया कि ये वही किशोरियां है जिनके साथ हमने
पिछले साल वर्कशॉप की थी, क्या उत्साह, क्या आत्मविश्वास और क्या आइडिया है? मैं कुछ बोल पाती इससे पहले 4 और लड़कियां गोले
का हिस्सा बन चुकी थी।
किशोरी ट्रेनर: क्या तुम दीदी को बताओगी कि हमने वर्कशॉप
में किस-किस बारे में बात की थी, तुम्हें क्या क्या समझ में आया?
चारो लड़कियां झिझक रही थी, शर्म वाली हंसी उनके
चेहरे पर साफ दिख रही थी।
मैंने फिर सोचा कि बोलूं लेकिन किशोरी ट्रेनर ने
एक बार फिर कहा : अरे शर्माओ मत, हम जब वर्कशॉप में होते थे न तो हमें भी
शर्म आती थी, हम भी हंसते थे। लेकिन ये जानकारी बहुत जरुरी है, हमारे खुद के जीवन
के लिए बहुत जरुरी है। अगर तुम दीदी के सामने भी शर्माओगी तो क्या फायदा?
पहली लड़की: हमें बाल यौन शोषण यानि
अच्छे और बुरे स्पर्श के बारे में बताया। दोनों में फर्क समझ में आए। इसके बाद
शरीर के हिस्सों के बारे में बताया कि कैसे किशोरावस्था में हमारे शरीर में बदलाव
होते हैं और ये सभी बदलाव हमारे स्वस्थ होने का प्रतीक है। हमने महावारी के बारे
में भी चर्चा की। सैनेटरी पैड का इस्तेमाल या फिर सूती कपड़े का उपयोग। अगर सूती
कपड़े का उपयोग करते है तो उसे साफ पानी में अच्छे से धोना और धूप में सूखाना
चाहिए ताकि उसे दोबारा इस्तेमाल किया जा सके।
दूसरी लड़की: हमने
सीखा गे और लेस्बियन के बारे में भी सिखा, कि जरुरी नहीं है कि एक लड़के को एक
लड़की पसंद आए, और अगर एक लड़की को एक लड़की और लड़के को लड़का पसंद है, वो प्यार
करते हैं और सेक्स करना चाहते है तो इसमें कोई गलत बात नहीं है।
तीसरी लड़की: हमने जेंडर के बारे में
सीखा और समझा कि कैसे हर जगह में छोटी छोटी बातों पर लड़के और लड़की में फर्क किया
जाता है। ये सही नहीं है और अगर हम चाहे तो इसे बदल सकते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर एक घर में एक लड़का और 3
लड़कियां है तो वहां सिर्फ लड़के को स्कूल भेजा जाएगा, लड़कियों को नहीं। घर के
काम लड़कों से नहीं कराए जाते ।
चौथी लड़की: हमने
लड़के-लड़कियों के यौन अंगों के बारे में बातचीत की, सेक्स क्या होता है। क्या ये
सही है या गलत? इसके अलावा दोस्तों के दवाब
के बारे में भी चर्चा की गई।
थोड़े आश्चर्य और अंचभे के बाद हमने पांचों
किशोरियों से इन वर्कशॉप के दौरान हुए अनुभवों, सवालों, अलग बातों और चुनौतियों के
बारे में लिखने के लिए आमंत्रित किया। मेरी उम्मीद के एकदम विपरित पांचों ने काफी
समय लेकर बहुत डिटेल में अपने अनुभवों को शब्दों के ढांचों में उतारा। इन्हीं कुछ
अनुभवों को मैं यहां लिख रही हूं।
पहली जेंडर ट्रेनर- मैंने अपने स्कूल में 9वीं
क्लास में पढ़ने वाली पांच लड़कियों और दो लड़कों के साथ गुड और बैड टच,
किशोरावस्था में होने वाले बदलावों, किन्नर, महावारी के बारे में बातचीत की।
शुरुआत में तो बहुत घबराहट हो रही थी, थोड़ी शर्म भी आ रही थी क्योंकि सभी मुझसे
बड़े है, मुझे लगा कि वो मेरी बात क्यों सुनेंगे, और क्या पता वो हंसने लगे। पर
जैसे जैसे बातचीत आगे बढ़ी, मेरा आत्मविश्वास भी बढ़ा। मैंने हर बार उनसे कहा कि
हमें अपनी भावनाओं पर विश्वास करना चाहिए, अगर हमें कोई चीज या किसी का टच अच्छा
नहीं लग रहा तो वो सही नहीं, हमें तुरंत अपने माता-पिता को, पुलिस को या चाइल्ड
लाइन में कॉल करना चाहिए। साथ ही बताया कि सहमति बहुत जरुरी है, अगर आप किसी बात
से किसी टच से सहमत नहीं है तो विरोध करें, बिलकुल हिचकिचाए नहीं। अब मुझे
किन्नरों से बिलकुल डर नहीं लगता, एक किन्नर बहुत अच्छा दिख रहे थे, मैंने जाकर
उनकी तारीफ भी की। मैंने एक लड़की की मदद भी की, उसका बॉयफ्रेंड उसे परेशान करता
था, उसे ब्लैकमेल कर रहा था कि वो अगर उसके साथ सेक्स नहीं करेगी तो उसके परिवार
वालों को बता देगा मैंने इस बात को पुलिस अंकल को बताया जो मेरे पड़ोस में रहते
हैं।
दूसरी जेंडर ट्रेनर- मैंने पड़ोस में रहने वाली
4 लड़कियों के साथ गे, लेस्बियन,किन्नर, जेंडर, बाल यौन शोषण, गर्भवती कैसे होते
हैं, सेक्स, कंडोम, शारीरिक बदलाव पर बातचीत की। मेरे सत्र में भाग लेने वाली
लड़की एक बार पुलिस चौकी के पीछे से जा रही थी तो एक लड़का उसे छेड़ रहा था, परेशान
कर रहा था बोलता कि मैंने तुझसे शादी करुंगा, मैंने बीच-बचाव किया और उसकी शिकायत
पुलिस में जाकर लगा दी। पार्क में एक लड़का ड्रग्स ले रहा था उसने मुझे कई बार
टोका लेकिन मैं उससे डरी नही बल्कि उससे बोला कि अगर ये चीज उसके परिवार में से
किसी के साथ होगी तो वो क्या करेंगे। इसके बाद जब वो नशे की हालत में किसी लड़की
के साथ गंदी हरकत कर रहा था तो मैंने पुलिस की मदद की और उसे पकड़वा दिया। जो
प्रतिभागी है न वो शारीरिक बदलाव और सेक्स पर बातचीत करते समय बहुत हंसते थे, शायद
उन्हें भी हमारे तरह शर्म आ रही थी लेकिन धीरे धीरे उन्होंने सवाल पूछना शुरु
किया, जब मैंने जवाब दिए तो उन्होंने मेरी बात और ध्यान से सुनना शुरु कर दिया।
तीसरी जेंडर ट्रेनर- हमने पहला सत्र पहचान पर
लिया था, शुरुआत में तो सभी अपने माता-पिता, अपने घर के बारे में बात करने लगे
लेकिन जब हमने उन्हें उनकी पहचान के बारे में बताने के लिए कहा, तो उन्होंने अपने
बारे में खुलकर बात की। दूसरे सत्र में हमने शारीरिक बदलाव के बारे में बात की,
सभी लोग शरीर के अंग की बात कर रहे थे लेकिन योनि और छाती की बात नहीं की, वो लोग
शर्मा रहे थे। हमने थोड़ी हिन्ट दी, इसके बाद वो धीरे धीरे खुले और बात करने लगे।
इसके बाद महावारी पर बात हुई, इस दौरान होने वाले पेट दर्द से निपटने के बारे में
बताया, सैनेटरी पैड और सूती कपड़े के इस्तेमाल पर चर्चा हुई। बाल यौन शोषण पर बात
करते हुए अच्छे और गंदे स्पर्श को लेकर हमने डिटेल में बात की, अगर ऐसा कोई करने
की कोशिश करें, तो हमें न बोलना चाहिए, वहां से तुरंत भागकर एक विश्वासनीय शख्स के
पास जाना चाहिए और उसे सब बताना चाहिए ताकि वो हमारी मदद कर सके। इस दौरान दो
लड़कियों ने अपने साथ हुई छेड़छाड़ के बारे में बताया। इसके अलावा हमने जेंडर पर
चर्चा की , प्रतिभागियों ने घर, स्कूल और बाहर लड़के-लड़कियों के फर्क के बारे में
बताया। कुछ लोगों ने अपने निजी अनुभव बांटे। हमने गे, लेस्बियन, सेक्स के बारे में
बात की- इसके साथ ही सेक्स से जुड़ी जिम्मेदारियों और सावधानी की बारे में भी
बताया।
चौथी जेंडर ट्रेनर- जब हमने वर्कशॉप लेना शुरु
किया था तो काफी डर और शर्म लग रही थी, पता नहीं चल रहा था कि कैसे करें पर
धीरे-धीरे अच्छा लगने लगा। मुझे लगा कि मैंने इतना कुछ जरुरी सीखा है तो मुझे
दूसरों को भी इस बारे में बताना चाहिए, इसलिए हमने 8-9 बच्चों के साथ वर्कशॉप लेना
शुरु किया पर कुछ किशोरी आ नहीं पाईं, कुछ और कामों में व्यस्त हो गई। फिर मैंने
सोचा कि जितनी किशोरियां है उन्हीं के साथ हम बातचीत करेंगे। वर्कशॉप की शुरुआत
हमने सहमति से करवाई, पहले कुछ समय तक उन्हें काफी शर्म आ रही थी हमारी तरह फिर
उन्हें भी मज़ा आने लगा। हम हर कार्यशाला वाले दिन से एक दिन पहले ही तैयारी कर
लेते थे। मुझसे एक प्रतिभागी ने पूछा कि आप इतना खुलकर बात करती हो आपको झिझक नहीं
होती? तो मैंने बताया कि हमने पहले वर्कशॉप में हिस्सा लिया था, जहां हमें बहुत सारी
जानकारियां दी गई थी, पहले हमें भी शर्म आती थी पर अब पता चल गया है कि ये हमसे
जुड़ी बातें है इसमें शर्माने जैसे कुछ नहीं है। हमने बाल यौन शोषण के बारे में
बहुत डिटेल में बात की- बताया कि अगर कोई जबरदस्ती आपके यौनांगों को छूता है, आपके
साथ सेक्स करने की कोशिश करता है, गलत फोटो या वीडियो दिखाता है तो आप उसे नहीं
बोल सकते हैं, अपने माता पिता, पुलिस या फिर 1098 पर कॉल कर सकते हैं। इसके बाद
उन्होंने मुझसे 1098 के बारे में पूछा । बच्चों ने ये भी पूछा कि क्या जो हमने
उन्हें बताया वो अपनी सहेलियों को बता सकते हैं, तब मैंने उन्हें बताया कि इस
जानकारी को देना का मतलब ही ये है कि वो सभी बच्चों तक इन बातों को पहुंचाए ताकि
किसी बच्चे के साथ कुछ भी गलत न हो। पहले की तरह अब मुझे बिलकुल डर या झिझक नहीं
होती , मैंने सोच लिया है कि अब मैं और बच्चों के साथ बात करुंगी, और अपने अनुभव
भी बाटूंगी।
पांचवी जेंडर ट्रेनर: पहली वर्कशॉप लेने से पहले
मुझे इतना डर लग रहा था कि समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करुं। पर मैंने अपना
डर भगा दिया यह सोचकर की अगर इन्हें इन सब की जानकारी नहीं होगी तो आगे परेशानी
होगी इसलिए दिल पक्का करके मैंने पहली वर्कशॉप ली। महावारी के दौरान कई सवाल सामने
आए जैसे ये क्यों होते हैं, पेट में क्यों दर्द होता है, चेहरे पर दाने क्यों
निकलते हैं? दो लड़कियों को महावारी होती है पर उन्हें इसके बारे में
कुछ नहीं पता था। मैंने सबकुछ विस्तार से बताया तो कुछ शर्माने लग गए और कुछ हंसने
लग गए। कभी कभी डर लगता था कि कहीं कुछ गलत बात न बता दूं! इसके बाद मैंने सेक्स के
बारे में बताया कि कैसे सेक्स होता है, अगर बच्चा नहीं चाहते तो कंडोम का इस्तेमाल
करना चाहिए।
छोटी सी खुशी के 20 प्रतिभागियों में से 5 जेंडर
ट्रेनर बन चुके है, शायद शिक्षा का सही रुप यही है जहां आपके पास जानकारी होना तो
जरुरी है पर उस जानकारी को सही तरह से दूसरों तक फस्लिटेट करपाना भी उतना ही
शिक्षा का हिस्सा है। शुरुआती दौर में साहस का मुख्य उद्देश्य सही जानकारी को
किशोर-किशोरियों तक पहुंचाना था ताकि वो जागरुक बनें और जेंडर आधारित हिंसा को
चुनौती दे पाएं, लेकिन इसके साथ साथ इन बच्चों ने जो कर दिखाया वो एक रिप्पल
इफेक्ट है यहां वो अपनी जानकारी का इस्तेमाल करते हुए अपने आप को ही नहीं बल्कि
दूसरे बच्चों तक वो जानकारी को पहुंचा रहे है, हिंसा के खिलाफ एक्शन ले रहे हैं,
एक ऐसे बदलाव का आगाज़ कर रहे हैं जो आज भले ही बहुत छोटी लौ की तरह दिख रहा हो पर
आने वाले दिनों में वो एक बड़े सैलाब की तरह उभरेगा।
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