“दीदी, आज हमें गोले में नहीं बैठना है क्या?” एक महिला प्रतिभागी ने पूछा
“नहीं आज सुबह के सत्र और दोपहर के सत्र दोनों की महिलाएं आएंगी
इसलिए आप सभी अपने समूह के साथ बैठेंगी”
सुनने में ये काफी मामूली सी बात लगती है लेकिन वर्कशॉप की छोटी छोटी बातों को
महिलाओं ने इस कदर आत्मसात किया है कि मैं हैरान हूं, जो महिलाएं पहले गोले में
बैठकर भी अपने साथी के साथ पीछे छुपती छिपाती थी, आज वो खुलकर बात करती हैं, हंसती
है, खेलने के लिए आग्रह करती है। सालों से घर की चार दीवारी को अपनी दुनिया समझने
वाली, अपने अस्तित्व से बेखबर, दूसरों के लिए जीने वाली महिलाएं इन दो घंटों में
मानो अपना पूरा जीवन जीना चाहती हैं।
जेंडर, यौनिकता और महिला आधारित हिंसा को लेकर हुए तीन सत्रों पर मंथन करते
हुए कुछ अहम बातें सामने निकलकर आई मसलन सुबह के सत्र में कई महिलाएं विधवा हैं,
कुछ के पति शराब के नशे में धुत्त होकर मारपीट करते हैं, पैसे का बहुत अभाव है,
रोजगार का कोई साधन नहीं है, स्थिति ऐसी है कि कई बार उनके लिए समूह में बचत के
पैसे देना भी टेड़ी खीर साबित होता है, नए समूह बने हैं जिसकी वजह से उनके बीच कई
बार विवाद की स्थिति पैदा हो जाती है- वहीं दोपहर के सत्र में आने वाले समूह
संतुलित है, समूह की गतिविधियों को चलाने योग्य हो गए हैं, कुछ महिलाओं ने रोजगार
का साधन भी समूह की मदद से ढूंढ लिया है, तो ऐसे में मुझे लगा कि क्यों न दोनों
सत्रों की महिलाओं को साथ बिठाकर महिला नेतृत्व की बातचीत की जाए और उन्हीं के
उदाहरणों से प्रतिभागियों को प्रेरित किया जाए। इस सत्र की डिजाइन को लेकर हमने
बिनौली के अधिकारी से बातचीत भी कि ताकि सत्र के एक भाग में उन्हें एनआरएलएम से
संबंधित और सरकारी योजानाओं की सही जानकारी भी मिल सके।
मन काफी भारी था, इन महिलाओं के साथ बिताया एक महीना काफी आत्मचिंतन और
आत्ममंथन वाला रहा, कई बार महसूस भी हुआ कि कितने भाग्यशाली है हम, फिर लगता है कि
एक लड़की या एक महिला के पास मूलभूत सुविधाएं जो कि उसका मौलिक अधिकार है- क्या
इसे भाग्यशाली समझना सही है? लेकिन एक बात मन में खटक रही थी कि ये आखिरी वर्कशॉप है अब पता नहीं कि
इनसे मुलाकात कब होगी? अपने महिला होने का एहसास, अपने जेंडर
से जुड़ाव का अनुभव बहुत ही अजीब होता है, कई बातें दिल में लग जाती है और जिंदगी
में एक अमिट छाप रह जाती है।
वर्कशॉप की शुरुआत हमने महिलाओं के साथ एक महीने तक चली कार्यशालाओं के
अनुभवों को बांटने के साथ की, साथ ही पहली बार सरकार के साथ काम करने का अनुभव
बांटा। इसके बाद प्रतिभागियों को आमंत्रित किया कि अगर वो चाहे तो वर्कशॉप से
जुड़ा अनुभव सबके साथ बांटे। सबसे मज़ेदार बात ये रही कि महिलाएं आगे आकर सबके
सामने खड़े होकर अपने अनुभव बांट रही थी।
ब्रिजेश, पार्वती समूह, “मुझे
वर्कशॉप की कई बातें काफी अच्छी लगी। मुझे पता है कि हर घर में मारपीट गाली गलौच होती
है लेकिन यहां हमने सीखा कि इसे हम खुद रोक सकते हैं। और महिलाओं को खुद की ताकत
को पहचानना बेहद जरुरी है, इसके साथ ही शराब पर रोक लगाना और स्वंय सहायता समूह की
बैठक में भाग लेना सबसे अहम है।”
मुसर्रफ़, मुस्कान समूह,
“पहले हिंसा की शिकायत करने में झिझक और डर लगता था, क्योंकि
हमारी कोई क्यों सुनेगा, पुलिस भी भगा देती थी। पर अब समझ आ गया है कि महिलाओं के
हितों के लिए कई कानून है और हम हिंसा से लड़ सकते हैं, ये समझकर काफी अच्छा लग
रहा है। और हमें अपनी बात सबके साथ बांटनी चाहिए नहीं तो किसी को कैसे पता चलेगा
की हमें मदद की जरुरत है।”
सविता, “मैंने तो यहां
सबके सामने अपनी बात रखना सीखा, इससे मेरा आत्मविश्वास काफी बढ़ गया है।”
इसके बाद महिला सशक्तिकरण, दूसरे प्रदेशों में चल रहे स्वंय सहायता समूह के
काम पर आधारित फिल्म दिखाई। इन फिल्मों को देखकर महिलाओं के चेहरे पर एक बड़ी
मुस्कान बिखर गई और उनमें ऊर्जा का संचार हुआ। सत्र के अगले भाग का दारोमदार ब्लॉक
अधिकारी असलम जी को दिया गया जहां उन्होंने एनआरएलएम से जुड़ी तमाम जानकारियां एक
बेहद मज़ेदार और बातचीत के तरीके से बताई, सरकारी योजनाएं मसलन विधवाओं के लिए,
विकलांगों के लिए, बेहद गरीब लोगों के लिए आर्थिक सहायता और स्वंय सहायता समूहों
के विकास हेतू भी कई जानकारियां दी गई। इस दौरान कई महिलाओं ने स्वंय सहायता समूह
द्वारा मिली आर्थिक सहायता के बारे में बताया उदाहरण के तौर पर एक महिला ने सब्जी
की दुकान शुरु कर दी है, तो दूसरी ने दर्जी की दुकान खोली है आदि।
प्रतिभागियों को प्रोत्साहित करने के लिए मुख्य जिला विकास अधिकारी, बागपत
चांदनी सिंह ने सर्टिफिकेट और लुड्डू को खेल दिया (यौनिकता में इस खेल के जरिए
हमने महिलाओं में कई संदेश पहुंचाए थे और इस खेल को लेकर वो काफी उत्साहित भी थी)
।
‘तो ये आज आखिरी वर्कशॉप है...’
‘नहीं नहीं दीदी ऐसे मत कहो, ये तो शुरुआत है’
ऐसी बातें सुनकर सच में बेहद खुशी होती है, लगता है कि जीवन में मैं कुछ तो कर
पाई। इसके बाद सभी महिलाओं के साथ एक ग्रुप फोटो ली गई।
“बेटा चलो, पास ही में मेरा घर है, रोटी खा लेना और हम बात भी
कर लेंगे”
“अपना फोन नम्बर देदे बेटी, कभी कभार फोन घुमा दूंगी, उठा लेना
भूलना मत”
“चलो चलो कोई बहाना नहीं चलेगा, घर चलो, हम आते हैं न तुम्हारे
बुलाने पर, मैं तो समय से आती हूं। पता नहीं तुम अब कब आओगी”
“अच्छा ऐसा है कि अब न अगले रविवार को आना, साथ बैंठेगे, खूब
बातें करेंगे और खेल भी खेलेंगे। तुम्हारी बहुत याद आएगी”
“धन्यवाद दीदी, आपकी वजह से हमें बहुत कुछ सीखने को मिला, मैं
आपको हमेशा याद करुंगी”
“पूर्वी यहां आजा, मैं तो तेरे साथ फोटो खिचाऊंगी”
समझ नहीं आता कि मैं कैसे इन महिलाओं का, इस जगह का, यहां के अधिकारियों का और
साहस का धन्यवाद करूं, बस मन शांत और संतुष्ट है, शायद यही है जो मेरी कर्मभूमि
है।
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