किसी ने बहुत सही कहा है,
“मुट्ठी में जो शक्ति है वो
उंगलियों में नहीं...
रस्सी में जो ताकत है वो धागे में नहीं...”
इस कथन पर मुझे उस वक्त पूरा यकीन हो गया जब
मैंने एक ही जगह तकरीबन 500 ऐसी महिलाओं को देखा जिनके सिर पर घूंघट की पहरेदारी
थी, जो ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं पर आत्मविश्वास से लबरेज थीं। उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन
द्वारा बागपत जिले के बिनोली में आयोजित "मिल कर साथ चले" कार्यक्रम में साहस को
आमंत्रित किया गया था।
ये कार्यक्रम महिला समूहों की उपलब्धि, फायदों, सफलताओं के साथ साथ बाकि महिलाओं को इन समूहों का हिस्सा बनने और
उन्हें एकजु़ट रखने के उद्देश्य से आयोजित किया गया जिसंमें अलग-अलग गांवों की 500 से ज्यादा महिलाओं
ने हिस्सा लिया।
पिछले एक साल से हम किशोर-किशोरियों और युवाओं
के साथ जेंडर और यौनिकता पर बातचीत कर रहे हैं, महिलाओं से इन मुद्दों पर बातचीत
की शुरुआत हमने अपने कार्यक्रम ‘कदम मिलाकर चलना होगा’
के जरिए की है। हालांकि ये सब शहरी परिपेक्ष्य से संबंधित हैं, पहली बार साहस
ग्रामीण क्षेत्र में कदम रखने जा रहा है, ऐसे में ग्रामीण परिपेक्ष्य को समझना और
जानना बेहद जरुरी है ताकि बातचीत और कार्यक्रम को उन्हीं के ढांचे में पिरोया जा
सके और जेंडर की समझ की नींव डाली जाए।
मुझे याद नहीं कि मैं आखिरी बार गांव कब गई थी,
लेकिन मुझे मेरा बचपन काफी अच्छे से याद है। जब मैं गांव में लोगों के घरों में
जाकर बातचीत किया करती थी और हैरान हो जाती थी कि जो चीजें मेरी समझ का हिस्सा है
वो यहां के उम्रदराज लोगों को पता भी नहीं है मसलन कोई भी छोलाछाप डॉक्टर हर मर्ज
के लिए इंजेक्शन का इस्तेमाल करता था, ऐसी सुई जो न जाने कितने लोगों को लगाई हो
उसे ही इस्तेमाल में लाता रहता था, लोग शौच के बाद राख से हाथ साफ करते हैं, जब
मैंने 8वीं में एड्स के बारे में पढ़ा था तो मैंने कई महिलाओं से इस बारे में बात
की तो वो घूंघट में मुंह छिपाकर हंसने लगती थी। मैंने हमेशा यही सोचा था कि
जानकारी और ज्ञान की ये जो खाई है उसे एक दिन मैं जरुर भरुंगी, और बागपत में साहस
का ये कदम मेरी उसी इच्छा और लगन का नतीजा है।
‘मिलकर साथ चलें’ कार्यक्रम शुरु होने से करीब आधा घंटा पहले हम पहुंच चुके थे, हमने सोचा
समुदाय को जानने का ये सबसे अच्छा तरीका है कि उनसे आगे बढ़कर बातचीत की जाए।
‘दीदी, हमें करीब डेढ़ साल हो गया
है गणेश समूह बनाए हुए, पहले हमने सोचा था कि समूह की सभी महिलाएं 100-100 रुपए
जमा कराएगी लेकिन पैसे की दिक्कत के कारण हमने 25 रुपए से शुरुआत की आप यकीन
मानोगी अब हमारे समूह के पास डेढ़ लाख रुपए की राशि है, मैंने करीब 50 हजार रुपए
लिए थे अपने देवर की नौकरी के लिए और बहुत जल्द लौटा भी दिए। अकेले मैं ये सब नहीं
कर पाती, समूह से जुड़ने पर मुझे काफी मदद मिली है, हम लोग महीने में चार बार
मिलते हैं, आर्थिक समस्याओं को सुनने के साथ साथ हम एक दूसरे के मन की बातें में
सांझा करते हैं।’
‘मेरे पति बहुत सीधे है, वो कुछ
कामकाज नहीं कर पाते, ऐसे में हमारे लिए दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल हो
गया, लेकिन समूह में जुटने से मैंने खुद के लिए दुकान खोली है, जो बहुत अच्छी चल
रही है, अब मुझे पैसे की कोई दिक्कत नहीं है। आपको पता है मैंने ही अपने गांव में
7 और समूह बनाए है और हर समूह में करीब 10 महिलाएं जुटी हुई है’
हमने ऐसी कई और आत्मविश्वास से भरी कहानियां
सुनी, रोचक बात ये थी कि शुरुआत में एक या दो बार ही हमें पहल करनी पड़ी बाद में
महिलाएं खुद हमें बातचीत के लिए बुला रही थी, ऐसे करते करते शायद 50 से भी ज्यादा
महिलाओं के साथ हमने बात की, महिला समूहों की सफलता की कहानियां खुद उनसे सुनी,
खास बात उनका आत्मविश्वास था।
‘अच्छा समूह से जुड़ने से आपको
कुछ फायदा हुआ है?’ मैंने पूछा
‘मैडम आप क्या बात कर रही हैं, हम
जैसे महिलाएं गांव में अपने घर की चार दीवारी में रहकर ही जीवन गुजार देती है,
लेकिन समूह की वजह से हम घर से खुलकर बाहर निकलते, अपने समूह की बाकी महिलाओं से
मिलते हैं। और आज अपने गांव से इतने दूर यहां अकेले आएं है इससे बड़ा उदाहरण हमारी
आजादी का और क्या हो सकता है।’
मैं कुछ देर के लिए ठहर गई, ये जरुरी भी था
क्योंकि मैं इस बात के साथ एक रिश्ता बनाना चाहती थी, वो डोर जो आज़ादी की सौंधी
खुशबु से रोम-रोम को महका दें। इस एहसास को महसूस करना ही अपने आप में आज़ाद होना
जैसा लगता है।
पैंतालीस मिनट की चर्चा के बाद शायद शारीरिक रुप
से हम थक गए थे लेकिन मन में एक नई ऊर्जा का संचार हो रहा था जिसने हमारे
दिलो-दिमाग में बागपत में कार्यक्रम को शुरु करने की उमंग भर दी थी।
‘मिलकर साथ चलें’ कार्यक्रम काफी रोचक रहा, इसकी अध्यक्षता जिले की मुख्य विकास अधिकारी
चांदनी सिंह कर रही थी, कई पदाधिकारियों ने अपने अनुभव सांझा किए, सबसे मनोरंजक
रहा महिला समूहों की भागीदारी जिन्होंने स्वागत गीत गाए, सभा में अपने अनुभवों और
सफलताओं के बारे में बात की, इसके साथ साथ मेरठ में काम करने वाली एक स्वयंसेवी
संस्था तेजस फाउंडेशन के एक नाटक के जरिए स्वच्छ भारत अभियान को लेकर लोगों को
जागरुक किया। कार्यक्रम की ऊर्जा काफी सकरात्मक थी, मैं पहली बार एक ऐसे कार्यक्रम
का हिस्सा बनी जिसे सरकार ने आयोजित किया हो, अपेक्षा के विपरित मेरा अनुभव काफी
पॉजिटिव और उम्मीदों भरा रहा।
कार्यक्रम का समापन चांदनी सिंह के संबोधन के
साथ हुआ जहां उन्होंने महिला समूहों की जरुरत, फायदों और सफलताओं पर रोशनी डाली,
इसके अलावा कन्या भ्रूण हत्या को रोकने की शपथ दिलाई और लोगों से अपने घरों में
शौचालय बनाने की अपील की। उनका संबोधन काफी प्रेरणापूर्वक रहा, समझ में आया कि एक
अहम पद पर एक सही व्यक्ति का होना कितना जरुरी और अहम है, उनकी नई सोच और महिलाओं
को आगे बढ़ाने के प्रयास को लेकर मैं उनसे काफी प्रेरित हुई।
साहस अब बिलकुल तैयार है इन महिला समूहों के साथ
आने वाले महीनों में जेंडर, यौनिकता और प्रजनन स्वास्थ्य पर काम करने के लिए ताकि
ये आजादी केवल आर्थिक समर्थता तक ही न सीमित रहें।
“सासू रोके, ससुरा रोके
पति रोके, अब कोई भी रोके
मैं तो समूह बनाऊंगी...मैं तो समूह बनाऊंगी”
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