ख़बरों से प्यार और
भावनाओं का रिश्ता ऐसा है कि सोते जागते, खाते-पीते ( पानी पीने की बात हो रही है
यहां पर!) दोस्त या परिवार से बात करते समय भी सिर्फ ख़बरों की चर्चा होती है। लोगों
के मुताबिक मेरे पास दिल नहीं है, दिल की जगह पर एक टेलीविज़न है जहां सिर्फ
ख़बरें ही डिस्पेल होती है। लेकिन इसमें क्या गलत है लोगों की महबूबा लड़की होती
है मेरी महबूबा हर रोज़ घटने वाली घटनाएं हैं। ऐसा मैं तब तक सोचता था जब तक उसे
नहीं देखा था। मेरे ख़बरों से भरे रेगिस्तान में उसकी एंट्री बिलकुल मॉनसून की
पहली बरसात की तरह था। नो ओफेन्स मौसम विभाग के अनुमान से बिलकुल विपरित था उसका
आना (हां भाई! रेगिस्तान में भी बारिश हो सकती है)
हालांकि उसकी एंट्री
रोमंटिक फिल्म की तरह नहीं थी, उसे देखकर हवाएं नहीं चली, नाही उसका दुपट्टा हवा
में उड़ रहा था, नाही कोई वायलिन बजा...मैं हैरान तो तब हुआ जब कोई गाना नहीं बजा।
सोचा शायद कोई इंट्रेस्टिंग ख़बर ही आ जाती, मन को सुकून आ जाता कि ये प्यार की
दस्तक है। इस ताने-बाने मैं अचानक ख़बर आई की प्रदेश में विपक्ष के बढ़ते हंगामे
को लेकर मुख्यमंत्री को दिल्ली हाईकमान ने तलब किया है। ओफ, प्यार गया तेल लेने
अभी मुख्यमंत्री ज्यादा अहम है। मुद्दा सभंल पाता इससे पहले बड़ा रेल हादसा हो
गया। ये प्यार तो गले का फांस बन गया, इसकी दस्तक इतनी खतरनाक है तो आगे बढ़ना
कैसा होगा, सोचकर भी मन कांप गया। उस हसीना को मैंने एक खुबसूरत सपने की तरह
भुलाने की ठान ली। ख़बरों की दौड़ धूप में मैंने देखा कि किस शिद्दत के साथ वो
अपना काम निभा रही थी। ख़बर पर पल पल अपडेट देना हो, किसी एक्सपर्ट से ज्यादा
जानकारी के लिए फोन करवाना हो, या घटना को ख़बर का एंगल देना हो, वो हर काम बखूबी
निभा रही थी। मैं हैरान था ये देखकर कि एक इंटर्न इतना अच्छा काम कैसे कर सकती है? क्या ज़ज्बा है वाह! उसने अपनी इंटेलिजेंस ने
मुझे कायल कर दिया था।
इससे पहले मेरा
ख़बरों भरा दिल उसके प्यार के समुद्र में गोता खाने लगता, सपनों का ताजमहल बन पाता
कि न्यूज़ रुम की फेमस कर्कश आवाज़ ने मुझे हिला दिया। खैर अपने बची हुई भावनाओं
को समेटते हुए भारी कदमों के साथ मैं अपनी सीट की तरफ बढ़ा। पर मेरी आंखे अभी भी
उसी पर टिकी हुई थी, दिमाग में एक ख्याल ये नहीं आया कि उसने देख लिया तो क्या
होगा।
एक बात तो थी कि वो खास है, मेरे लिए। क्या इसे प्यार ही कहते है या मन का
कोई अनजाना खलल, हे भगवान दिल और दिमाग की बैटिंग के बीच मैं बावरा सा हो गया था।
डेस्क पर पहुंच गया, खड़े होकर कुछ सोच ही रहा था कि एक अजनबी आवाज़ ने मेरा नाम
पुकारा। आवाज़ ऐसी जैसे कानों में मिसरी घुल गई हो, मेरा नाम इतना अच्छा शायद ही कभी
लगा था मुझे! आगे भी जारी रहेगा पत्रकार और उसके दिल की दास्तां...
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