अक्सर पत्रकारों के
बीच दोस्ती या प्यार की शुरूआत ऐसे ही किसी न्यूज़ चैनल की टपरी से होती है, टपरी
से मेरा तात्पर्य है चाय की वो छोटी दुकान जहां सबकुछ मिलता है- चाय, मठ्ठी,
सिगरेट, अलग-अलग तरह की नमकीन, चिप्स वगैरह वगैरह। खैर टपरी पर थिसिस करने का मेरा
कोई विचार नहीं है, मैं तो बस आपको बताना चाह रहा था कि मेरी पहली डेट(न्यूज़ चैनल
वाली) टपरी पर ही हुई। मैंने उससे पूछा, “क्या लोगी तुम? ” उसने मेरी तरफ प्यार से देखा और जोर-जोरकर
खिलखिला उठी। मैं झेंप गया, सोचने लगा कि इसमें हंसने वाली क्या बात है? पर उसको मुस्कुराता देख
दिल में कुछ हो रहा था, दिल की धड़कने बढ़ रही थी, मन कर रहा था कि वो यूं ही हंसती
रही और मैं उसे देखता रहूं। क्या ये प्यार है या बस अट्रेक्शन?, दिल और दिमाग पर वर्ल्ड
वार-3 चल रही थी।
इतने में कंधे पर
हाथ रखकर उसने मुझे झकझोरा, ओह! आज सुबह शायद मैंने किसी बहुत ही लकी शख्स का चेहरा देखा
होगा कि ये सब मेरे साथ हो रहा है। उसने मुझे छुआ, हां उसने मुझे छुआ...कंट्रोल
बेटा, कंट्रोल! दिमाग के गधे दौड़ाना बंद कर, पहले ही दिन इतना उड़ोगे तो मुंह के बल गिरोगे !मैंने थोड़ा हिचकिचाते , थोड़ा रौब से उससे पूछा, “क्या हुआ, ऐसा क्या बोला
मैंने कि तुम हंसने लगी?” इसपर वो बोली, “आप तो ऐसे बात कर रहे हैं कि हम किसी फाइव स्टार
होटल में बैठे हैं, टपरी है भई दो चाय और दो मठ्ठी ले लीजिए।” मैं कुछ बोल पाता उससे पहले
वो बोली, “आपको मेरा हंसना अच्छा नहीं लगा, सॉरी सर नहीं हंसूगी।” मेरा दिल बैठ गया, मैंने
जल्दी से डैमेज कंट्रोल करते हुए कहा, “अरे नहीं...नहीं मुझे समझ नहीं आया कि तुम हंसी क्यों,
हमेशा हंसती रहो, तुम हंसती तो लगता है कि बसंत ऋतु आ गई है तो फूलों की बारिश हो
रही है..”
मैंने अपना सिर पीटा,
हे मेरे ईष्ट ये मैंने क्या कह दिया, ये मेरे मुंह से क्या निकल गया...वो क्या
सोचेगी मेरे बारे में? उसे लगेगा और लोगों की तरह मैं भी उसपर लाइन मार रहा हूं या
फिर ये कि मैं ठरकी हूं? मेरे विचारों की बस पर उसकी हंसी ने ब्रेक लगा दिया, बोली “थैंक गॉड आप दूसरे लोगों की
तरह नहीं है, मुझे लगा कि आप नाराज़ हो गए?” चाय की चुसकी लगाते हुए हम दोनों ने ढेरों बातें
की। बहुत दिनों बात ख़बरों के अलावा मैंने कोई बात की है, अलग लग रहा है- पता नहीं
ये अच्छा अहसास है या बुरा? मन में अजीब से बैचेनी थी, क्योंकि मेरे दूसरे बुलेटिन का
समय पास आ रहा था, मैंने चाय के पैसे दिए और हम दोनों वापस न्यूज़ रुम की तरफ चल
पड़े।
मेरे वापस लौटते ही
मिस्टर कर्कश आवाज़ मुझपर बरस पड़े, बिना कुछ पूछे जाने...मैंने सफाई में कहा कि
आपको बताया था कि मैं चाय पीने गया था, इसपर वो साफ मुकर गए उलटा चिल्लाते हुए
बोले,“ ये कोई वक्त है चाय पीने का...बाद में एक घंटे
के लिए खाना खाने जाओगे, ऐसा नहीं चलेगा, कहां है तुम्हारा ध्यान?” जो मन प्यार के समुद्र में
थोड़ी देर पहले गोते खा रहा था, आसमान की बुलंदियों पर नाच रहा था वो सीधे जमीन पर
आ गया, लग रहा था कि ये महाशय उसे अपने बेरहम बदबूदार (सच बोल रहा हूं) पैरों के
नीचे कुचल रहे थे।
अच्छा है ये पुरुष
है, अगर महिला होते और गलती से सास होते तो बहू तो पहले ही दिन सुसाइड कर लेती। हे
राम! कब शुक्रवार और शनिवार आएगा( इन दोनों दिनों को मेरे शिफ्ट इंचार्ज की छुट्टी
होती है) तब मुझे चैन की सांस आएगी। खैर भलाई इसी में है कि ये सारे ताने मैं एक
कान से सुनू और दूसरे कान से निकाल दूं। एक तरफ उनके ताने की बौझार हो रही थी
दूसरी तरफ मेरी उंगलियां एक बार फिर कीबोर्ड पर तेजी से चल रही थी...भाई बुलेटिन
सबसे अहम है, इज्जत गई तेल लेने।