Saturday, 9 April 2016

प्रेम कहानी का पहला मोड़



आज बहुत काम था, ऊपर से मिस नकचड़ी के प्रोग्राम का प्रोडक्शन भी देखना था ऐसे में पता ही नहीं चला कि कब 10 बजे गए ? पता भी कैसे चलेगा, कब्र में तो ऑफिस है (ऊफ सॉरी, मेरा ऑफिस बेसमेंट में हैं) जी हां भूकंप आएगा न तो बाहर निकलते- निकलते शायद दब ही जाऊंगा। शिफ्ट खत्म होते-होते अक्सर ऐसे ही विचार मेरे दिमाग में फुटबॉल खेलते हैं, मुंह चिड़ते हैं। ऐसा नहीं था कि मुझे अपनी ज़िंदगी से कोई शिकवा या शिकायत थी, लेकिन दिनभर की धमा-चौकड़ी, भाग-दौड़ के बाद जो एकदम शांति होती थी वो बहुत शोर करती थी, ऐसा शोर जो कानों को नहीं दिल में हलचल मचा देता था। लगता था कि मैंने अपने आप को एक आदर्श नारी की तरह खबर नामक पति के हवाले कर दिया था, मानो उसके अलावा मेरे वजूद मायने ही नहीं रखता हो, सोचता हूं कि अगर ये दुनिया नहीं होती तो क्या मेरी कोई दुनिया होती?


खैर इस देर के चक्कर में मेरी कैब चली गई, मेरा दोस्त जो बाइक लेकर आया था उसकी 10 मिस्ड कॉल थी- जाहिर सी बात है वो मुझे लिफ्ट देना वाला होगा, झटपट फोन घुमाया। ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग...ऊफ बाइक चला रहा होगा, हे भगवान अब क्या करुं? काश कोई मिल जाए जो सिर्फ मेट्रो तक छोड़ दे। पर इस अंधेरी रात में कौन मिलेगा। बोझिल कदमों और थके हारे शरीर से कुछ कदम ही आगे बढ़ने लगा, सोचा कि पैदल चलते चलते ही मेट्रो पहुंच जाऊं इससे पहले कि मेट्रो भी बंद हो जाए। बाइक के तेज हॉर्न ने मेरे विचारों के भागते हांफते विचारों पर जबरदस्त ब्रेक लगाया। मैं गिरते गिरते बचा, गुस्से में चिल्लाने वाला ही था ...हेलमेट को बला की खुबसूरती से उतरते हुए चेहरे से रेशमी जुल्फों के बादलों को हटाते हुए वो मुस्कुराई। गुस्सा गया तेल लेने, चिल्लाना छोड़ों मुंह से तो आवाज़ गायब ही हो गई, शरीर वहीं स्थिर हो गया। उसकी खनखनाती आवाज़ ने मेरे जमे हुए शरीर में फिर से जान डाली। 

आप क्या यहां भी कोई ख़बर ढूंढ रहे हैं। सर शिफ्ट तो कबकी खत्म हो गई, आप घर क्यों नहीं जा रहे? क्या यहीं घर बसाने का विचार हैं?”  उसके मज़ाक से मुझे ज्यादा खुशी नहीं हुई, थोड़े एटिट्टूड से बोला, अपना काम करो। घर ही जा रहा हूं और मुझे घर बसाने का कोई शौक नहीं हैं?”थोड़ा झेंपते हुए वो बोली, अरे सर आप तो नाराज़ हो गए, मैं तो मज़ाक कर रही थी। आपको बुरा लगा तो भी आई एम नॉट सॉरी। मैं तो ऐसे ही बात करती हूं, मज़ाक को एनजॉय कीजिए। ऊफ खुद को कोसते हुए मैंने सोचा कि इतनी खूबसुरत लड़की ऐसे खुशनुमा मौसम में मुझसे बात कर रही हैं और मैं स्मार्ट बन रहा हूं, सच मैं भगवान जब अक्ल बांट रहा होगा तो मैं जरुर मक्खियां मार रहा हूंगा।  किसी तरह बात को संभालते हुए हकलाते हुए बोला, नहीं नहीं ऐसी बात नहीं हैं। लेट हो गया हूं, कैब मिस हो गई, दोस्त के साथ चले जाता लेकिन अब वो भी चला गया। थकावट हो रही थी इसलिए रेंगते हुए मेट्रो की तरफ जा रहा था कि इतने में तुम्हारी बैलगाड़ी से एक्सीडेंट होते होते बच गया

क्या कहा आपने? बैलगाड़ी? कौन बैलगाड़ी? क्या आपने मेरी सुपर सॉनिक धन्नो को बैलगाड़ी बोला? सुनिए सर मैं अपनी धन्नो के बारे में एक शब्द नहीं सुन सकती? ये क्या बात हुई। नॉट फेयर!” ये क्या हो रहा था मुझे, इतने अंधेरे में भी मुझे सिर्फ उसका मासूम सा चेहरा नज़र आ रहा था, उसका यूं रुठना, इस हक से आजतक किसी ने मुझसे बात नहीं की थी। क्या बात इस लड़की में जो मैं इसकी तरफ यूं खिंचा चला जा रहा हूं। उसकी हर अदा इतनी अलग, इतनी प्यारी थी कि मैं शायद पूरी ज़िंदगी उसे निहारते हुए गुज़ार सकता हूं, उसकी मखमली हंसी, उसके मोतियों जैसे दांत, उसकी तीखी पैनी सी नाक जो गुस्से से अक्सर गुलाबी हो जाती है, मृगनयनी सी भोली सी आंखे, वो एक लट जो उसके चेहरे पर बार बार आती है जिसे वो अपने कान के पीछे प्यार से ढकेल देती है, किसी कवि की कल्पना किसी लेखक की कहानी सी है वो, खुदा ने बहुत सोचकर उसे बनाया है। सुनिएउसकी आवाज़ से मेरा ध्यान फिर से टूटा, बोली सर, क्या इरादा है खुद भी यहीं रहोगे और मुझे भी इंतजार करवा रहे हो, बताओ क्यों बोला आपने मेरी धन्नो को बैलगाड़ी?”
 
ख्यालों की चादर को अपने से अलग करते हुए मैंने सिर हिलाते हुए मना किया और होले से सॉरी बोला। वो फिर हंसी, बोली, “कितने भोले हैं आप। मैं मज़ाक कर रही थी, चलिए मैं आपको छोड़ देती हूं मेट्रो स्टेशन तक या फिर बताइए आगे तक भी छोड़ सकती हूं।

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