चाय और मट्ठी के
बहाने जिंदगी में पहली बार मैं किसी लड़की के साथ डेट पर गया था, गोया इसे डेट या
तारीख कितना सही है ये मुझे पता नहीं (हिंदी में तो डेट को तारीख ही कहते हैं हैं
ना!) । अगले बुलेटिन की तैयारी, अपनी महिला सहकर्मियों की गॉसिप और हां मिस्टर
कर्कश आवाज़ की डांट के बीच मेरी नज़रें लगातार डेस्कटॉप से आंख मिचौली खेल रही थी,
मानो वो दिल के आगे पूरी तरह सरेंडर कर चुकी हो। सामने बैठी वो बहुत खुबसूरती से
अपने काम को कर रही थी, एक के बाद एक ख़बर दिए जा रही थी, ब्रेकिंग न्यूज़ बोलते
हुए बला की हसीन लग रही थी। मेरे दिल की धड़कन थम गई जब मर्गनयनी की आंखें मेरी
गुस्ताख़ निगाहों से टकराई, शर्मिंदा सा हो गया मैं। खैर किसी तरह इस हादसे से उभर
कर मैं अपने पूरे दम खम के साथ काम में जुट गया।
“सर, क्या आप एक बार बुलेटिन चैक कर लेंगे, पूरा
काम कर चुका हूं, शाट्स भी एडिट करा लिए हैं, अगर एक बार आप नज़र मार लेते तो मैं
निश्चित हो जाता”, मैंने हमेशा की तरह सिर झुकाकर धीमी आवाज़ में बोला, हर बार
की तरह इस बार भी उन्होंने चिल्लाकर कहा, “जाओ और मिस नकचड़ी से चैक कराओ और थोड़ा जल्दी।” हे भगवान! सबकुछ काम करके उसका गुड़
गोबर करना हो तो मिस नकचड़ी के पास जरुर जाएं, पर क्या करें अलग-अलग चैनल में काम
करने के अनुभव और हां उनपर बॉस की असीम कृपा को लेकर ये बातें खुलेआम कहना थोड़ा
नहीं बहुत खतरनाक हो सकता है इसलिए मन में अरमानों और चाहतों को दबाकर हारे हुए
कदमों के साथ मैं मिस नकचड़ी के दरबार में जा पहुंचा। मुझे देखते ही बोली, “ एक ज़माना था जब बड़े और
अच्छे चैनलों में सीनियर प्रोड्यूसर्स ही सिक्रिप्ट लिखा करते थे और हर लिखी हुई
चीजों की सही तरह से प्रूफरिडिंग हुआ करती थी पर अब देखो कोई भी सिक्रिप्ट लिखता
है, हैरानी की बात ये है कि कोई भी बुलेटिन बना लेता है।” ये लीजिए मेरी बेइज्जती
खराब कर दी गई, 25 मिनट के बुलेटिन के लिए मैं इसी तरह हर रोज़ जलील होता हूं।
लंच का समय हो गया
था, पर मिस नकचड़ी के तानों के जख्म ने भूख को बुरी तरह कुचल दिया था। उदास मन के
साथ मेरी उंगलियां कीबोर्ड पर अपना दुख जता रही थी कि किसी ने मेरी पीठ थपथपाई,
पलट कर देखा तो वो खड़ी थी। ये आंखे...उफ! मेरी जान ही ले लेंगी। “ क्या हुआ? कुछ काम है, मेरा बुलेटिन
तो खत्म हो गया अगर कोई नई न्यूज़ स्टोरी आई है तो आप शिफ्ट इंचार्ज को दे दो”, कुछ संभलते, उलझे हुए मन से
बिना सोचे समझे मैं बोल पड़ा। वो फिर हंस पड़ी, इस बार थोड़ा और खुलकर, उसकी हंसी
मुझे हमेशा हैरान कर देती है, मैं क्या जोकर हूं या फिर मेरे चेहरे पर कुछ ऐसा
लिखा है जिसे देखकर उसे हंसी आती है? उसकी आवाज़ ने मेरे दिमाग में चल रहे विचारों की गाड़ी पर
ब्रेक लगाया।
“अरे नहीं...नहीं मैं तो पूछ रही थी कि आप लंच
लाए हो या फिर कैंटिन जा रहे हो?”, बहुत अधिकार था उसके यूं पूछने में। मन में लड्डू फूटा! हां मन में तो हलचल मच गई
थी पर कुछ समय पहले हुए अपमान के छिंटे अभी भी टीस दे रहे थे तो बुझे मन से मैंने
कहा, “मुझे भूख नहीं है।” शायद उसने मेरी बात ही नहीं सुनी एक प्यारे से बच्चे की
तरह जिद्द करते हुए बोली, “ आज मैंने आलू गोभी की सब्जी बनाई है और पराठे, पर मुझे चावल
भी खाने हैं, जल्दी चलो प्लीज़।” उसके अनुग्रह के
सामने मेरा झूठा अभिमान पिघल गया और पर्स पॉकेट में डालते हुए चल पड़ा ।
हे परमात्मा, ये
तेरी कैसी लीला है? क्या मरहम दिया है, लगता है जन्म जन्मांतर के दुख गंगा जल
से धुल गए। मेरा दिल प्यार के समुंदर में फिर गोते खा रहा था, प्यार की हर लहर
किनारे पर उसका नाम लिख रही थी, चेहरे पर अजीब ही लालिमा बिखर रही थी, बड़ा
मुश्किल था इस प्यार को दिल में कैद करके रखना!
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