Thursday 10 October 2024

क्या करोगे मन के रावण का?

 

सज गए बाजार

चाउ दिशा हो गई तैयारियां

मां की पूजा में रचे हजारों पंडाल

बेसब्री है रावण दहन की

रावण दहन की।

हर साल जलाते रावण को

फिर क्यों बार बार भूल जाते

खुद में बसे रावण को।

क्यों भूल जाते उन रावणों को

जो मारे गर्भ में अजन्मे भ्रूण को

रोकते खुद की बेटी को पढ़ने से

जब जब मौका मिले देते उजाड़

महिला के स्वाभिमान को

कैसे भूले जाते उस रावण को

जो शादी के नाम पर

लूटता अस्मिता अपने प्रिय की,

बात बात पर कर दे लहुलूहान

हजारों खंजर घोपता

दिल-दिमाग पर

 

इंतजार हैं तुम्हे रावण दहन का

फिर क्यों भेदभाव करते काम में

क्यों रखते बर्तन अलग-अलग

क्यों हत्या करते जाति के नाम पर

क्यों शोषण करते मेहनत का

वामन, ठाकुर, बनते हो तुम बनिया

खेलते चक्रव्यू शिक्षा, शस्त्र और पैसे का

फिर क्यों देख नहीं पाते

दूसरों को इंसान सा

इतना दुस्साहस करते हो

फिर क्यों साफ नहीं कर पाते खुद की गंदगी को

ऊंचे पद पर तुम

सरकार में तुम

मीडिया में तुम

बिजनेस में तुम

और हमें बनाते

आजाद देश का बंधुआ


अरे रावण को जलाने के उत्साह में

कैसे भूल गए

कुम्हार को, वैवा को, रास्ते में

सो रहे पुरुष, महिला और

उसके संसार को

बड़ी आसानी से जाते हो भूल

उसे जिसके घर में तुम जाते तो हो

पर नाम लेने भर से हो जाते दागदार

प्रेम की इच्छा को भी

लड़का-लड़की में बांटते हो

ताड़ना देते हो

बेदखल करते समाज से

प्रेम चाहने वाले

को छलते हो इतना

छीन लेता अपनी जिंदगी

वो हार कर


क्या करोगे उस स्वार्थी रावण का

बसा हुआ है जो तुम्हारे मन में

जो पूजता है पूंजीपतियों को

जो बात बात पर भरते सत्ता का दंभ

भूखे-गरीब, शिक्षित-स्वलंबी युवाओं

को रोंदते खुद के स्वार्थ के लिए

खुद को मसीहा मानने वाले,

भगवान राम को लाने वाले

जनता को पैरो तले रौंधने वाले

क्यों भूल जाते उस रावण को


जो बैठता दुनिया के ऊंचे सिंहासन पर

जिसे खुद के घर से निकाला

उसने छीने दूसरे की छत

लाखों को बनाता कैदी

बच्चे, युवाओं, महिला,

पत्रकार, डॉक्टर, बूढ़ों को

स्वाहा करता अपनी नफरत में

कहां गए स्कूल, क्या हुआ

अस्पताल का

जंग की, गोले –बारूद की आवाजों

में खामोश हो गई मासूम सिसकियां

अनदेखा करने में

तो तुम माहिर हो


सोचते हो-कहते हो, हाथ बंधे हैं तुम्हारे

करते तुम काल्पनिक राम का इंतजार

फिर क्यों पैसों के ताले

में बंद हैं  तुम्हारी आत्मा पर

कितने भी जला दो पुतले

मन के मैल को कैसे मिटाओगे

अंदर की लौ को कैसे बुझाओगे

आजाद देश को कब तक

गुलाम बनाओगे

मन में बसे रावण को

कब तक छिपाओगे?