Sunday 13 January 2019

जेंडर बाइनरी के मिथक को चुनौती देते और यौनिकता पर समझ बनाते नागेपुर गांव के युवा


पहले तो बहुत झिझक हो रही थी, शर्म भी आ रही थी। रोजमर्रा के जीवन में हम अपने शरीर के बारे में कहां बात करते हैं? लेकिन ग्रुप में धीरे-धीरे बात करते हुए काफी सहज लगा। अच्छा लगा, कई बातें जानने को और दूसरों की राय भी सुनने को मिली। सबसे जरुरी बात ये कि अपने शरीर के बारे में बात करने में झिझक करने की जरुरत नहीं है।

वाराणसी के नागेपुर गांव के युवाओं के साथ जेंडर, यौनिकता और सरोकार वर्कशॉप के दूसरे दिन की शुरुआत यौनिकता पर आधारित सत्र के साथ की गई। जब हम हॉल में पहुंचे, तो नजारा कुछ अलग ही था, हिंदी फिल्म के गाने की धुन पर कुछ प्रतिभागी नाचते हुए नजर आए। उनसे कुछ पूछते उससे पहले ही एक महिला प्रतिभागी ने कहा, दीदी, अभी सब लोग आएं नहीं, तो थोड़ा नाच लिया जाए?”

दूसरी प्रतिभागी, कल हम थोड़े नर्वस थे, अक्सर ट्रेनिंग में काफी बातचीत होती है। लेकिन आपने खेल और कहानियों के जरिए इतने जटिल मुद्दों पर बड़ी आसानी से समझ बनाई, जिसकी वजह से हम अब नर्वस नहीं हैं। ऐसा लगता है कि आप भी हम जैसे ही हैं, मैं तो घर में कल ऊंगली डांस करके भी देख रही थी



तीसरी प्रतिभागी, ट्रेनिंग में तो बहुत कुछ बताया जाता है, लेकिन कल का दिन इतना मनोरंजक रहा कि क्या बताएं। आपने कल डांस क्या सीखाया, हमने तो धुन ही पकड़ ली, इसलिए सोचा कि आज भी नच लिया जाए। आप भी नाचो ना।



ऐसा पहली बार हुआ कि सत्र से पहले हमें कोई एनरजाइज़र कराने की जरुरत ही नहीं पड़ी, महिला-पुरुष प्रतिभागी ने नाचते हुए यौनिकता के सत्र का आगाज़ किया। पहली एक्टिविटी में प्रतिभागियों को चार समूहों में बांटा गया जहां हर समूह को बॉडी मैप बनाकर ये तय करना था कि कौन से अंग से उन्हें आनंद, दर्द, शर्म और ताकत महसूस होती है। इसके बाद बॉडी मैप बनाने से लेकर अंगों पर बातचीत करने तक से जुड़े कुछ सवालों पर चर्चा करने के लिए आमंत्रित किया गया। इस एक्टिविटी को करते हुए प्रतिभागियों ने अलग-अलग भावनाओं, सवालों, विचारों, वाद-विवाद से जुझते नजर आए। शुरुआती चुप्पी के बाद, जोर-जोर से हंसने और फिर एकदम गंभीर होकर चर्चा में सवालों के जवाब ढूंढते प्रतिभागियों ने अपने शरीर और उससे जुड़ी भावनाओं का विस्तार से विश्लेषण किया।
इस दौरान कई अहम बातें सामने आई- जैसे कई अंगों से चारों भावनाओं की अनूभुति होना, यौनांगों पर बातचीत को लेकर पहले झिझकना और फिर खुलकर चर्चा होना, महिला और पुरुषों ने एक दूसरे के बॉडी मैप को बिना झिझक के समझा और एक दूसरे की चर्चा में भाग लिया, पुरुषों के बीच यौनांगों को लेकर टिप्पणी जरुर होती है लेकिन पहली बार उन्होंने अपने शरीर को लेकर ऐसी चर्चा की, महिलाओं के बीच इस बारे में बात नहीं होती पर चर्चा की वजह से उन्हें कई नई बातें सीखने को मिली, एक समूह में टिटनी पर भी चर्चा हुई। 


योनि- महावारी, सेक्स करने के दौरान और बच्चा पैदा करते वक्त दर्द होता है, वहीं संबंध बनाने पर आनंद भी आता है। लेकिन महिला के अंगों को इज्जत से जोड़कर देखा जाता है, इसके बारे में बात नहीं होती और हमेशा ढककर रखा जाता है इसलिए योनि शब्द बोलने में भी शर्म का एहसास होता है

आंखों से किसी सुंदर चीज को देखने में आनंद मिलता है, चोट लगने पर दर्द होता है, क्योंकि हमें नुकसान पहुंचाने वाली चीज को देख सकते हैं इसलिए ताकत भी मिलती है। महिलाओं को सिर ढकने के लिए और आंखें नीची रखने के लिए कहा जाता है- तो आंखों से शर्म भी आती है

लिंग से ताकत, शर्म, आनंद और दर्द का एहसास होता है- ये मर्द होने की निशानी है, इससे सेक्स करते हैं, साथ ही क्योंकि ये यौनांग है और इसे छिपाकर रखना पड़ता है इसलिए शर्म की भी अनुभूति होती है


नाभी से यौन संबंध बनाते समय आनंद मिलता है, पैरों से ताकत और आनंद की अनुभूति होती है- यौन संबंध और कठिन काम करते वक्त

नाभी से आनंद मिलता है लेकिन शर्म भी आती है क्योंकि महिला की अगर नाभी दिखे तो उसे ताने मारे जाते हैं, और इसे ढककर रखने को कहा जाता है।

छाती से आनंद मिलता है यौन संबंध के दौरान, बच्चा जब स्तनपान करता है तब दर्द और ताकत का एहसास होता है। किस करने से होठों में आनंद की अनुभूति होती है।


इसके अलावा कुछ सवालों पर भी कई अहम बिंदू निकलकर आए- मसलन जिस शख्स का बॉडी मैप बनाया गया – वो इसलिए क्योंकि चार्ट पेपर पर वो फीट आ रहा था, लम्बी, पतली थी यानि सामाजिक ढांचे के मुताबिक उसका शरीर था। 

जिनका चित्र बनाया गया उनकी सहमति से बनाया गया, चित्र बनवाने और बनाने वाले सभी लोगों को आनंद आया
इस दौरान एक सोच में डालने वाला उदाहरण सामने आया, जहां दो दिनों से हम सामाजिक ढांचों की बात कर रहे हैं, बावजूद इसके एक समूह ने बॉडी मैप बनाने के लिए वॉलन्टियर कर रहे प्रतिभागी को इसलिए बदल दिया क्योंकि उसका शरीर भारी था। इन्हीं बातों को केंद्र बिंदू में लाकर चर्चा की गई कि जानकारी के अभाव में, जानकारी होने के बावजूद सामाजिक ढांचे कैसे हमारी जिंदगी का अभिन्न अंग बन गए हैं, कैसे हम सभी इन ढांचों को बिना सोचे समझे बढ़ावा दे रहे हैं जिससे गैरबराबरी बढ़ रही है। जरुरी है कि इन्हें समझा जाए, सवाल किए जाए और सजग होकर उसे चुनौती दी जाए। 


चर्चा के जरिए यौनांगों से संबंधित बातचीत खुलकर की गई जहां समझ आया कि क्योंकि यौनांगों को परिवार और समाज में इज्जत से जोड़कर देखा जाता है, शरीर के इन अंगों को ढककर रखने के लिए मौखिक या इशारों से बताया जाता है, इनसे जुड़ी किसी भी बात को सबके सामने करने पर पाबंदी है, कोई जानकारी भी नहीं दी जाती इसलिए यौनांगों के बारे में बात करना तो दूर नाम लेना भी लज्जित कर देता है। 

शुरुआत में तो दीदी बहुत शर्म आ रही थी, क्योंकि ग्रुप में बात हो रही थी इसलिए अपनी बात रखना आसान हो गया। अकेली होती तो शायद बोल नहीं पाती। पर अब मुझे कोई शर्म नहीं लग रही बल्कि आत्मविश्वास बढ़ गया है क्योंकि कई नई बातें जानने को मिली हैं।

ये काफी बेहतरीन मौका था जहां हमने आनंद और सहमति को लेकर भी बातचीत की।
आनंद और सहमति एक ही सिक्के के दो पहलू हैं क्योंकि उदाहरण के तौर पर अगर दोनों पति-पत्नी की सहमति है तभी तो यौन संबंध में आनंद आएगा नहीं तो वो बलात्कार होगा।


दूसरी एक्टिविटी के जरिए यौनिकता को लेकर प्रतिभागियों की समझ पर रोशनी डाली गई, जिससे पता चला कि ज्यादातर लोगों को लगता है कि यौनिकता यौन संबंध से जुड़ी कोई बात है। इसके अलावा यौनिकता से जुड़े शब्द – शर्म, पॉव, योनि, जवान हो जाना, शरीर का कोई अंग है, प्रजनन अंग से जुड़ा हुआ है, आनंद मिलता होगा तभी कुछ लोग मुस्कुरा रहे हैं। 


यौनिकता पर समझ बनाने के लिए प्रतिभागियों के सामने कुछ फोटो रखी गई- जिन्हें देखकर उन्हें तय करना था कि कौन ही तस्वीरों का मर्द की श्रेणी में, औरत की श्रेणी में रखना है, और जो दोनों जगह न आए उसे तीसरी श्रेणी में रखा जाए। ये काफी मनोरंजक खेल है क्योंकि अक्सर हम चेहरा, पोशाक, चाल-ढाल या कौन सा काम किया जा रहा है उसे आधार बनाकर सोच लेते हैं कि ये मर्द है और ये औरत। तस्वीरों की वजह से प्रतिभागी काफी असमंजस में पड़ गए और काफी जद्दोजहद के बाद भी कुछ तस्वीरों को कहां रखा जाए तय नहीं कर पा रहे थे। 


प्रतिभागियों की इसी उलझन को आधार बनाकर एक बार फिर जेंडर की परिभाषा पर रोशनी डाली गई, यौनिकता को परिभाषित किया गया और यौनिक पहचानों पर समझ बनाई गई। गौर करने वाली बात ये रही कि प्रतिभागियों ने पहली बार यौनिक पहचानों के बारे में सुना था- मर्द, औरत के अलावा वो केवल हिजड़ा के बारे में जानते थे। जाहिर सी बात है जब हम पहली बार किसी बात को जानते है तो दिलोदिमाग में हजारों सवाल दौड़ने लगते हैं- ऐसे में हमारे सामने सवालों की झड़ी लग गई-

ट्रांसजेंडर का यौनांग क्या होता है? क्या यौनांगों को बदलवाया जा सकता है?”
कई बार मैंने समाचार चैनल पर चर्चा सुनी थी कि कुछ लोग अपने यौनांगों से सहमत नहीं होते, तो वो क्या करते हैं? क्या ऐसा सोचना सही है?”
एक बार मैंने टीवी पर दो पुरुषों को आपस में प्यार करते और संबंध बनाते देखा। मुझे समझ में नहीं आया कि क्या दिखा रहे हैं? क्या ऐसा संभव है कि एक पुरुष दूसरे पुरुष से प्यार करें? ऐसा क्यों होता है?”
कुछ समय पहले हमारे यहां सुनने में आया था कि एक आईएएस अफसर जिनकी बीबी और बच्चे हैं अब वो अपने आप को महिला की तरह रखते हैं। आपका उनके बारे में क्या विचार है?”
क्या इंटरसेक्स और हिजड़ा एक ही होते हैं?”
ये शब्द मैंने पहली बार सुने हैं, क्या ये लोग शहर में ही होते हैं?”


किसी भी चीज को सीखने के लिए बेहद जरुरी है कि जानने की रुचि होना, जो इन सवालों में दिख रही थी- बहुत झिझक और उलझन भी नजर आ रही थी क्योंकि अब तक प्रतिभागियों के हिसाब से समाज में दो ही पहचानें होती है, उनके लिए ये सोच पाना कि महिला और पुरुषों के परे भी लोग है एक नए अध्याय की तरह रहा। 

मैंने पहली बार यौनिकता शब्द के बारे में सुना है, यौनिक पहचानों के बारे में तो कोई जानकारी नहीं थी। लेकिन आपकी बातें सुनने के बाद गांव में काम के दौरान हुई कई बातें और अनुभव याद आ रहे है। मुझे लगता है कि इन मुद्दों पर समझ बनाने की बहुत जरुरत है।

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