Thursday 20 July 2017

यौनिकता की समझ से पहचान बनाती महिलाएं :-)



क्या सहमति और आनंद एक ही सिक्के के दो पहलू है?’

पहले मुझे लगा कि मुझे जबरदस्ती समूह का हिस्सा बनाया गया है, लेकिन जैसे जैसे मैं मीटिंग का हिस्सा बनती गई तो मुझे समझ में आया कि ये मेरे लिए ही जरुरी है। जो बात मेरी मर्ज़ी के खिलाफ़ शुरू हुई थी पर अब उसी से मुझे आनंद आने लगा है।

बागपत के बिनौली में 26 महिलाओं के दूसरे समूह के साथ यौनिकता पर आधारित वर्कशॉप का अनुभव कुछ ऐसा ही आनंदमय रहा :-) वर्कशॉप की शुरुआत तलवार और ढाल के खेल से हुई जहां महिलाओं ने अपनी अपनी तलवार और ढाल को चुना, भाग-दौड़ में जहां कुछ महिलाएं तलवार का शिकार बनी तो कइयों को उनकी ढाल ने बचा लिया पर यहां भी कानाफूसी हुई, जिसे आधार बनाकर हमने पिछली वर्कशॉप में जेंडर पर हुई बातचीत को दोहराया। मज़ेदार बात ये थी कि ये महिलाएं एकदम स्कूल की छात्राएं बन चुकी थी, एक एक करके हाथ उठाकर सही उत्तर देने की होड़ में जुट गई थी मानो की बचपन वापस आ गया था। 



सबसे पहली एक्टिविटी में महिलाओं को समूहों में बांटा गया जहां उन्हें साप-सीड़ी का खेल खेलने के निर्देश दिए गए- ये खेल एकदम उसी तरह से खेलना था जैसे हम अपने बचपन में खेलते थे बस एक छोटा सा ट्वीस्ट संदेशों के रुप में जोड़ा गया था। इस दौरान एक महिला अपनी बच्चियों को भी साथ लाई थी, ये बच्चियां भी महिलाओं के समूह में बैठकर खेलने लगी। कई महिलाओं ने पहली बार ये खेल खेला था, ऐसे में उनकी खुशी और उत्साह देखने लायक थी। इन संदेशों को पढ़ने और समूह में बांटने के दौरान माहौल काफी गहन हो गया था क्योंकि कई संदेश उनके जीवन से जुड़े हुए थे- मसलन विधवा महिलाओं को शुभ कार्य में शामिल न करना, शराब पीकर मारपीट करना, महिलाओं और लड़कियों से छेड़छाड़ करना- जिसकी वजह से महिलाओं ने अपने निजी अनुभव बांटे और वो खुलकर अपने आप को व्यक्त कर पाई।




वहीं खेल खेलने के दौरान मैंने देखा कि कुछ महिलाओं का खेल खत्म हो गया है और वो कुछ लिखने की कोशिश कर रही थी।

क्या तुम्हारा खेल खत्म हो गया तुम क्या लिख रही हो?”

दीदी, खेल के दौरान कई संदेश बहुत सटीक और अच्छे लगे, मैं लिख रही हूं ताकि समूह की बाकि महिलाओं को इस बारे में जानकारी दे पाऊं क्योंकि ये जानकारी हमें पहली बार मिली है।


नई चीजों को सीखने और समूह में बांटने की उत्सुकता से मैं हैरान थी। वहीं एक महिला ने बाल विवाह को रोकने की वजह भी अपने समूह से सांझा की जिसे देखते हुए बाकि महिलाओं ने सवाल भी पूछे- ये एक नई सोच के जन्म की ओर इशारा था जहां अब तक महिलाएं केवल अपनी समस्याएं बता रही थी वहीं अब वो इन समस्याओं से जुझने के लिए नई जानकारी और समझ का सहारा ले रही थी।

इसके बाद महिलाओं को 4 समूहों में बांटा गया और उन्हें बॉडी मैप तैयार करने के लिए निर्देशित किया- ऐसा करने के बाद उन्हें आपस में बातचीत करनी थी कि किस शरीर के अंग से उन्हें आनंद, शर्म, दर्द और ताकत का अनुभव होता है? इस समूह में कई महिलाएं 50 साल के पार है और कई महिलाएं बिलकुल पढ़ी-लिखी नहीं है फिर भी उन्होंने बॉडी मैप बनाने में रुचि दिखाई और दूसरों की सहायता के साथ चित्र बनाया। शरीर के बाकी अंगों को बनाने में तेज़ी तो दिखाई लेकिन जैसे ही यौनांगों की बात आई, कुछ महिलाएं हंसने लगी, कुछ इधर उधर देखने लगी तो कुछ आपस में खुसर-पुसर करने लगी।


दीदी से पूछ लो, क्या इसका नाम भी लिखना है?’

पागल हो क्या, ये सब नहीं लिखना होगा, सिर्फ काम की बात लिखनी है

इन बातों के बीच में मैंने कहा हर अंग का नाम लिखना है

बहुत हैरान होकर सभी मुझे देखने लगे, और हंसी की फुहार छूट गई, जिस समूह में मैं बैठी थी उसमें एक 55 साल की महिला बोली कि बनाओ भई, योनी बनाओ। ये बहुत अहम बात थी क्योंकि बहुत जानकार लोगों को यौनांगों का नाम भी नहीं पता होता, सबके सामने बोलना तो बहुत बड़ी बात है। इसी तरह हर समूह में यौनांगों के नाम लिखे गए। इसके बाद बॉडी मैप पर आधारित सवालों की चर्चा भी बेहद मज़ेदार रही।

पहले सवाल के उत्तर कुछ यूं थे-
दीदी, ये पतली-दुबली है न और सुंदर भी इसलिए इसी को चुना
मैंने तो खुद का नाम दिया था चित्र बनाने के लिए
हमने सब की सहमति से इस महिला को चुना

वहीं दूसरे सवाल के जवाब में कहा-
मैंने साड़ी पहनी थी, इसलिए थोड़ा परेशानी हुई, थोड़ी शर्म भी आ रही थी जब ये लोग नीचे का चित्र बना रहे थे
पहले तो बहुत शर्म आ रही थी और जैसे जैसे नीचे कलम जा रही थी वैसे वैसे अजीब सा लग रहा था

तीसरे सवाल का जवाब चौकाने वाला और अलग अलग समूह में अलग अलग रहा-
सहमति और आनंद एक ही सिक्के के दो पहलू नहीं है- जैसे कई बार पुरुष का मन करता है संबंध बनाने का पर मेरा नहीं होता, तब भी उसकी बात माननी पड़ती है, बुरा लगता है, ऐसा लगता है कि मेरा शरीर मेरा ही नहीं है

एकदम जिंदा लाश की तरह महसूस होता है, आदमी चाहे तो कभी भी संबंध बना सकता है पर औरत तो ये बोल भी नहीं सकती।

मुझे लगता है कि ये एक ही सिक्के के दो पहलू है इसलिए क्योंकि अगर मेरी मर्जी नहीं है तो मुझे कभी भी आनंद नहीं आएगा। शराब पीकर शायद पति को पीटने में आनंद आता होगा, मुझे तो लगता है कि मैं उसे सबक सीखा दूं।

वैसे तो हम मीटिंग में जाया करते थे, लेकिन आप ने हमें सही का आनंद दिला दिया।

इसके अलावा मुझे बहुत अच्छा लगा जब महिलाओं ने अंगों को बनाकर उसपर चर्चा की, लगभग हर समूह में योनि और छाती को आनंद और ताकत के तौर पर चिन्हित किया था।

मुझे लगता है शर्म तो एक सोच है, अगर हम अपने मर्ज़ी के हिसाब से काम करते हैं तो शर्माने की क्या जरुरत। कई लोग तो पूरे कपड़ों में होकर भी गलत काम करते हैं, उनकी सोच सही नहीं होती। कपड़ों और शर्म का कोई संबंध नहीं होता। घूंघट वाली महिलाएं भी लड़ाई करती है, गलत बोलती है।

अपने शरीर को समझने, और उसे जेंडर और यौनिकता के मुद्दे से जोड़कर समझने के बाद हर समूह को एक परिस्थिति दी गई जिसपर उन्हें एक नाटक तैयार करके बड़े समूह में पेश करना था। पहले तो महिलाएं थोड़ा घबरा गई लेकिन धीरे धीरे वो परिस्थिति पर चर्चा करने लगी, फिर कहानी की रूपरेखा तैयार की, और उसके बाद किरदारों को बांटा।

तुम अपनी बेटी की शादी 18 साल के बाद करना, जल्दी शादी करने से उसका वर्तमान और भविष्य खतरे में पड़ जाएगा, वो जल्दी मां बन जाएगी, जिससे उसे और उसके बच्चे को खतरा होगा, यही नहीं कम उम्र में मां बनने से उसकी मौत भी हो सकती है। समूह की महिलाएं मिलकर तुम्हारी मदद करेंगी, तुम अपनी बेटी को पढ़ाओं और उसे आगे बढ़ने में मदद करो


वहीं दूसरे नाटक में समूह की महिलाओं ने एक महिला की न सिर्फ दुकान खोलने में मदद की बल्कि उसकी दुकान शुरु करने, सामान जुटाने में भी सहायता की। तीसरे नाटक में शराबी पति से महिला को बचाया, उसे समूह में जुड़ने को प्रोत्साहित किया।

इन नाटकों की सबसे मज़ेदार बात ये थी कि उम्रदराज महिलाओं ने जबरदस्त एक्टिंग की, और उनका जोश असली अभिनेता-अभिनेत्रियों को भी हैरानी में डालने वाला था। मुझे बहुत खुशी थी कि जो महिलाएं परेशानियों में घिरी रहती थी, हमेशा सरकार से मदद की उम्मीद लेकर आती थी आज उनकी आंखों और चेहरे पर आत्मविश्वास की एक अलग ही चमक दिखाई दे रही थी।


आप लोग बहुत अच्छा काम कर रही है, मैंने इन महिलाओं के चेहरे पर हमेशा परेशानी की रेखा देखी है लेकिन आज देखिए कैसे हंस रही है, मुस्कुरा रही है, मीटिंग खत्म होकर भागने वाली महिलाएं आज एक दूसरे से बात कर रही है। परेशानी से दूर ये कुछ पल अपने बारे में सोच रही है।


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