Saturday 17 February 2018

जेंडर आधारित हिंसा को चुनौती देती वादों की दीवार :-)


मैं जब से दुनिया को जानने और समझने लगा तभी से मेरी अंतर आत्मा में चलता था कि महिला और पुरुष में इतना भेद क्यों है? और मुझे पता नहीं था कि मैं क्या कर सकता हूं। तो आज मैं प्रण लेता हूं कि ये फर्क खत्म करने की शुरुआत में अपने घर से करुंगा और ये बदलाव का पहला कदम होगा

मैं वादा करता हूं कि धर्म पत्नी के साथ साथ कभी भी उसकी सहमति के बिना यौनिक संबंध नहीं बनाऊंगा

पिछले कुछ सालों में जेंडर पर काम करते हुए कई बार लगता है कि जेंडर आधारित हिंसा कितनी गहन समस्या है क्योंकि इसकी जड़ मानसिकता में छुपी हुई है, जेंडर भेदभाव जीवन का ऐसे हिस्सा बन रखा है कि वो अलग या फिर गलत लगता ही नहीं। कई बार समझ नहीं आता कि किन लोगों के साथ जेंडर पर समझ बनाने से बदलाव आएगा, कितने घंटे की कार्यशाला होनी चाहिए? क्या दो घंटे में किसी को जेंडर समझ आ सकता है या फिर दो दिन में जेंडर से जुड़े अलग-अलग मुद्दों पर बात करने से मानसिकता बदलेगी, या फिर धीरे धीरे लगातार बात करनी चाहिए? क्या बच्चों के साथ जेंडर पर काम करना काफी है क्योंकि जिस परिवार या स्कूल में जाते हैं वहां तो लोगों की सोच वहीं है? पर हर बार किशोर-किशोरियों, महिलाओं और युवाओं के साथ काम करते हुए बदलाव की एक नई राह देखने को मिली।

उज्जैन में पुलिसकर्मियों के साथ जेंडर, हिंसा और सत्ता पर वर्कशॉप आयोजित करने का मुख्य उद्देश्य ये रहा कि पुलिस के पास मजबूत सत्ता है, अगर वो जेंडर के प्रति जागरुक होकर अपनी ड्यूटी निभाएंगे तो जेंडर आधारित हिंसा पर काबू पाया जा सकता है। लेकिन इन दो दिनों में जो हुआ उसे बयां करने के लिए मेरे शब्द शायद कम पड़ जाए।

दूसरे दिन का सत्र शुरु होने से पहले ही एक प्रतिभागी ने कहा, मैडम पहले दिन की बातचीत ने बहुत कुछ बदल दिया है। पुलिस की ट्रेनिंग में हमें बहुत कम समय मिलता है परिवार से बात करने के लिए। कई बार मेरी पत्नी बात करने के समय काफी थक जाती थी और मैं उसपर फोन पर ही गुस्सा करने लगता है। लेकिन कल मैंने ऐसा नहीं किया। उसकी आवाज़ में थकावट को महसूस किया और उसे सोने के लिए कह दिया। मुझे बहुत बुरा लगा कि वो इतना थकने के बाद भी मुझसे बात करने के लिए जगती है।

वर्कशॉप का दूसरा दिन काफी भावनाओं को देखते हुए काफी भारी था लेकिन इससे प्रतिभागियों के बीच एक दूसरे के लिए आत्मीयता बढ़ी और साथ ही वो एक दूसरे से ज्यादा बात करते हुए भी नजर आए।

वर्कशॉप के आखिर में एक जो बेहद रोचक और अहम प्रक्रिया रही– वादों की दीवार यानि प्रॉमिस वॉल। क्योंकि हम पुलिस को सत्ता का प्रतीक समझते हैं ऐसे में मैंने प्रतिभागियों को कोई एक ऐसा वादा लेने के लिए आमंत्रित किया जिससे वो अपने जीवन में जेंडर के एक नियम को तोड़ पाएंगे- वो वादा छोटे से छोटा हो सकता है। मुझे लगा था कि प्रतिभागी अपने कार्यस्थल या फिर पुलिस से जुड़ी जिम्मेदारियों को लेकर कोई वादा करेंगे, लेकिन उन्होंने अपने निजी जीवन से जेंडर की धारणा को तोड़ने की शुरुआत की, ये काफी हैरान करने और बदलाव की नई मिशाल तैयार करने जैसा रहा। क्योंकि सच तो यही है कि अक्सर हमें लगता है कि हमें समाज में बदलाव करना चाहिए इसलिए हम बाहर से शुरुआत करते हैं पर यहां पुलिसकर्मियों ने अपने घर से जेंडर की जड़ों को काटने के लिए एक कदम आगे बढ़ाया।

मैडम आपने काफी अच्छे तरीके से, हमें पूरा मौका दिया कि हम अपनी बात सामने रख पाए और जेंडर को समझ पाए। हो सकता है यहां से जाने के बाद कई लोग वैसा ही व्यवहार करें। पर मैं घर जाकर अपनी मम्मी के साथ खाना बनाने में मदद करुंगा, कभी कभार खुद भी खाना बनाऊंगा। अगर मेरा भाई भी ये देखेगा तो वो भी मम्मी के साथ काम में हाथ बटाएगा। और हमारे कामों को देखकर दूसरे लोग भी ऐसा करेंगे।
कुछ ऐसे ही वादे कई प्रतिभागियों ने अपना समय लेकर लिखे और एक वादों की दीवार का निर्माण किया-


मैं वादा करता हूं कि मेरे बच्चों में यानि लड़का और लड़का में कोई अंतर नहीं रखूंगा, जहां तक हो सकेगा बराबर का अधिकार दूंगा
घर में मैं अपनी मां और दूसरे सदस्यों के साथ काम में सहायता करूंगा
जरुरत पड़ने पर घर के अंदर के कामों में खुशी-खुशी और अन्य कामों में महिलाओं का साथ देंगे
मैं कोशिश करुंगा कि अपने जीवन में जेंडर आधारित हिंसा नहीं करुंगा
मैं अपनी आनेवाली बच्ची या बच्चे की पढ़ाई में कोई अंतर नहीं रखुंगा और जब तक वो पढ़ना चाहेंगे तब तक पढ़ाने की कोशिश करुंगा
मैं अपनी माता, बहिन, पत्नी की इच्छाओं का उतना ही सम्मान करुंगा जितना मैं स्वंय की इच्छाओं का करता हूं
मैडम आपकी वर्कशॉप में हिस्सा लेकर ह्दय परिवर्तन हुआ है। मैं अपनी पत्नी को समान हक देने के साथ साथ जितना वो मेरा सम्मान करती है मै भी उसका उतना ही सम्मान करुंगी
हर छोटे-बड़े मुद्दों पर हम पति-पत्नी मिलकर विचार करेंगे और आपसी सहयोग की भावना रखूंगा
मेरी शादी जब भी होगी तो मैं उसकी हर चीज में उसका साथ दूंगा। और जो भी मैंने सीखा है मैं अपनी घर में इस बारे में जरुर बात करुंगा
मैं स्वंय से वादा करता हूं कि मैं किसी भी महिला को गलत नजरों से नहीं देखूंगा और मेरे संपर्क में आने वाले हर शख्स को इसी बात के लिए प्रेरित करुंगा
मैं अपनी पत्नी की मदद से खाना बनाना सिखूंगा और उसकी मदद भी करुंगा
मैं अपनी पत्नी क साथ टर्न-टर्न घर का काम करुंगा
मैं जेंडर को लेकर अपने परिवार, मित्रों और रिश्तेदारों को जागरुक करुंगा
मैं महिलाओं के साथ कदम से कदम मिलाकर चलूंगा उनकी भावनाओं को समझकर फैसला लूंगा
मैं आज से अपने परिवार में उपस्थित महिलाओं पर अपना काम कभी नहीं थोपूंगा। अपना काम खुद करुंगा
मैं किसी भी व्यक्ति या महिला के साथ हुए शोषण या अत्याचार के खिलाफ न्याय दिलाने में उसका पूरा सहयोग प्रदान करुंगा
मैं कभी भी स्त्री को हीन भावना से नहीं देखूंगा, हमेशा उसकी इज्जत करुंगा और सम्मान करुंगा
मैं कभी भी महिलाओं से ऊंची आवाज़ से या क्रोध से बात नहीं करूंगा

किसी काम को सिर्फ इसलिए करना क्योंकि वो आपकी जिम्मेदारी है, आपको उसे करने के आदेश मिले है या फिर वो आपकी कमाई का जरिया है उसमें और किसी चीज को इसलिए करना क्योंकि आपको लगता है ये कदम उठाना जरुरी है और उससे आपका निजी संबंध है में काफी फर्क होता है। ये पुलिसकर्मी जब कार्यशाला में पहले दिन आए थे तो आदेशानुसार आए थे लेकिन अब वो जेंडर पर न सिर्फ खुलकर बातचीत कर रहे हैं बल्कि इस फर्क को बदलने के लिए अपने घर से शुरुआत कर रहे हैं। मैं बेहद खुश थी, अगर इन 50 लोगों में से कुछ लोग भी इस समझ को अपने जीवन में उतार पाए तो मैं समझूंगी कि मैंने अपनी जिम्मेदारी पूरी की है J

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