Saturday 21 October 2017

कुछ बातें :-)



कुछ बातें, अनकही बातें, फिज़ूल की बातें, बेबाक निगाहें, कभी आंखे चुराती, कभी दिल को टीस देती बातें, तेरी याद दिलाती हैं, मन कहता है कि तुझे याद रखूं, दिमाग कहता है कि पुराने पन्ने की तरह तुझे अपनी ज़िंदगी की किताब से अलग कर दूं। तेरा आना सावन की तरह था, अब वो सावन कावंड़ियों के आने जाने से जाना जाता है। नाराज़ नहीं हूं पर गुस्सा आता है कभी कभी अपनी बेवकूफ़ी और नासमझी पर, अपनी हरकतों पर, शराब की तरह काम के नशे में डूबने पर, रिश्तों के टूटने पर , अंधेरे में गुम हो जाने पर, सूरज के अस्तित्व को नकारने पर, बेवकूफ थी कि अपने दिल को एक काफिर, दानव के हाथ में डाल दिया जिसने रेगिस्तान में पीठ पर वार कर दिया।

लिखने में डर लगता है, लगता है कि दिल के अंधेरे को आवाज़ मिल जाएगी, और अंधकार को रोशनी धोखा दे देगी। सांस ली, वॉक किया, हंसी मुस्कुराई पर मानो पूर्वी गुम हो गई है, बात करने में काफी मुश्किल होती है, घबराहट भी होती है, दोस्त नहीं बना पाती, आत्मविश्वास दल दल में धंस गया है। उफ्फ एकदम खजुराहो की याद आ गई, वहां एक बेहद सुंदर तालाब था, कमल खिल रहे थे, लगा उन्हें पकड़ लूं, जकड़ लूं फिर वो झरना यार मन कर रहा है कि काश मैं एक स्वच्छंद नदी होती शायद पानी का अस्तित्व मज़ेदार होता है, ठंडा शीतल पानी जो ज्वालामुखी के लावे से बने पत्थरों पर ऐसी चोट करता है जो एक निडर, विश्वजीत रास्ता बनाता है। मैं शायद वहीं रास्ता हूं, निडर, अकेला और शीतल- न कोई फिक्र, न कोई आकंशा बस चलते जाने का मन, समय के भाव में रम जाने का मन, हाय मेरा मन :-)

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