Tuesday 25 April 2017

पीयर प्रेशर या पीयर प्लेज़र



लोहे के पेड़ हरे होंगे
तू गान प्रेम का गाता चल
नम होगी यह मिट्टी ज़रुर,
आंसू के कण बरसाता चल – रामधारी सिंह दिनकर

कविता की ये पंक्तियां काफी साहस देती है और लगातार आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है। इसी के मद्देनजर जेंडर, यौनिकता और प्रजनन स्वास्थ्य पाठ्यक्रम में इस बार एक नया सत्र जोड़ा गया।  

किशोरावस्था ज़िंदगी का वो पड़ाव होता है जहां शारीरिक, मानसिक विकास के साथ साथ हम अपनी नई पहचान बनाने की कोशिश में जुट जाते हैं। इस उम्र में दोस्तों की खास अहमियत होती है ऐसे में कई बार हमारे पीयर परिवार से ज्यादा अहम हो जाते हैं और हम कूल बनने और पॉपुलर ग्रुप का हिस्सा बनाने की होड़ में कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। इस होड़ में कई बार खुद को नुकसान उठाना पड़ जाता है, कुछ गलतियां हो जाती है जो ज़िंदगी भर का दर्द बन जाती है, अपनी भावनाओं को दबाना या फिर अपने आप को दोस्तों की तरह ढाल लेना और रास्ते से भटक जाना जैसे परिणाम भुगतने पड़ जाते हैं। ऐसे में किशोरियों में पीयर प्रेशर यानि दोस्तों/सामाजिक दबाव पर समझ बनाने की जरुरत महसूस हुई।



वर्कशॉप की शुरुआत एक वीडियो दिखाकर की गई। इस वीडियो में दिखाया गया कि कैसे दोस्तों के प्रभाव में आकर लड़के धूम्रपान करने लगते हैं।


इसके बाद प्रतिभागियों को 4-4 के ग्रुप में बांटा गया जहां उन्हें दोस्तों और पॉपुलर ग्रुप संबंधित सवालों पर चर्चा करने का निमंत्रण दिया गया। इस दौरान कई किशोरियों ने बताया कि वो क्लास के पॉपुलर ग्रुप का हिस्सा है, वो लोग साथ में खेलते हैं, खाना खाते हैं, पार्टी करते हैं, डांस करते है, मस्ती करते हैं। लेकिन कई बार पॉपुलर ग्रुप का हिस्सा होने की वजह से उन्हें कुछ ऐसे काम करने पड़ते हैं जो उन्हें पंसद नहीं मसलन पढ़ाई के समय खेल खेलना, या हमेशा साथ साथ रहना, जो ग्रुप कहे वहीं करना, क्लास में खाना खाने का मन करता है पर बाहर ग्राउंड में जाना पड़ता है आदि। ऐसे में कई बार उन्हें दबा हुआ महसूस होता है, लगता है कि उनकी कोई अहमियत नहीं हैं, इसके साथ ही ग्रुप द्वारा स्वीकार करने का दबाव बना रहता है। कई बार ग्रुप की बात नहीं मानने पर उनका मज़ाक भी उड़ाया जाता है।






प्रतिभागी, ग्रुप का जो लीडर होता है न दीदी उसके हिसाब से काम करना पड़ता है। हमेशा वो अपनी धौंस जमाती है, ऑडर चलाती है, अपनी मनमानी करती है और दूसरों के बारे में सोचती ही नहीं। मुझे बहुत बुरा लगता है।

अगली प्रक्रिया में कई अहम बातें सामने आई जैसे लगभग सभी प्रतिभागियों ने अपने दोस्तों के लिए मारपीट की है।
एक बार मेरी सहेली को दो लड़के छेड़ रहे थे। उसने मुझे बताया तो हमने मिलकर उन्हें पीटा।
दीदी मेरी दोस्त किसी से बहस नहीं कर पाती, तो जब भी उसकी लड़ाई होती है तो मैं आगे बढ़कर उसका साथ देती हूं





लगभग हर प्रतिभागी अपने दोस्त के प्लान में हामी भर देती हैं ताकि उन्हें बुरा न लगे। 



ये काफी रोचक है कि प्रतिभागियों के पास सवाल भी है और जवाब भी इसलिए पीयर प्रेशर की समझ बनाना उलझनों के बावजूद आसान भी रहा। सत्र की आखिरी प्रक्रिया के लिए प्रतिभागियों को 3 ग्रुप में विभाजित किया गया और अलग-अलग परिस्थितियां दी गई जिनपर उन्हें एक रोल- प्ले बनाने के लिए कहा गया।

तीन में से एक ग्रुप ने वो कर दिखाया जिसकी उम्मीद हममे से शायद किसी को नहीं थी। परिस्थिति में दो लड़कियों को कुछ लड़के छेड़ते है और परेशान करते हैं, जब वो ये बात अपनी दोस्त को बताती है तो उनकी दोस्त उन्हें चुप रहने की सलाह देती है। पर इस ग्रुप ने पीयर प्रेशर को चुनौती देते हुए परिस्थिति को बदल दिया- वो दो लड़कियों ने अपने माता-पिता को बताने की जगह खुद स्थिति से निपटने का फैसला लिया और लड़कों को मुंहतोड़ जबाव दिया। रोल-प्ले की तैयारी के दौरान ये दोनों किरदार हंस रहे थे, मजाक उड़ा रहे थे पर रोल-प्ले के दौरान जिस संजीदगी से दोनों ने किरदार निभाया वो रोंगटे खड़े कर देनेवाला था। देखने से ही समझ आ रहा था कि शायद बहुत कुछ बदल चुका है। 


चेहरे पर उभरे उस दर्द और आंखों में उस टीस का मेरे पास कोई जवाब नहीं था पर उनकी हिम्मत ने मुझे और शायद ग्रुप में बैठी सभी लड़कियों को एक नई राह दिखाई। मेरे लिए तो ये बदलाव की ही एक पतवार है जो भले ही छोटी दिखती है लेकिन उसमें न जाने कितने रास्तों को तब्दील करने की ताकत होती है।  

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