Saturday 26 September 2015

क्योंकि मैं एक पत्रकार हूं

आज दिन की शुरुआत तो एकदम खुशनुमा सपने की तरह रही, बुलेटिन बिना किसी गलती के ठीक-ठाक चला गया। बॉस का कोई फोन नहीं आया ! किसी ने कोई टीका- टिप्पणी नहीं की, मेरे परम मित्रों(दोस्तों व्यंग्य है) की नजरों में भी कोई खासी रंजिश नहीं थी। वैसे आज काफी ख़बरें थी देश, विदेश, और प्रदेश की भी बहुत सारी ख़बरें। वाह! मन तो ऐसे खिल रहा था जैसे मन भावन राजकुमारी से रुबरु होने में चंद कदम की दूरी हो। उसकी सुंदरता के सपने में मन खो ही जाता, उसकी झलक से दिल गार्डन गार्डन होने वाला ही था कि एक रोबदार या यूं कहिए कर्कश आवाज से मेरा सपना ऐसे टूटा जैसे पानी का भरा हुआ ग्लास हाथ से छूट गया हो।

ये पहली बार नहीं था जब मेरे सपनों को इसी कर्कश आवाज़ ने हलाल किया हो। खैर ये तो रोजमर्रा का हिसाब किताब है, कुछ ऐसा जो कम से कम मेरे हाथ में तो नहीं है (गौर करने की बात ये है कि इस आवाज़ से तो बॉस भी परेशान है) लेकिन इस मामले में हम दोनों का हाल-ए-दिल एक जैसा है। तो बोझिल कदमों के साथ अपने सपनों का ताना-बाना दिल के एक कोने में दफ़न कर मैं इस कर्कश आवाज़ सॉरी ...शिफ्ट इंजार्ज के पास हाज़िरी लगाने के लिए चल पड़ा। पता नहीं दिल में क्यों आया कि आज बुलेटिन अच्छा बना है तो शायद आज इनके मुख मंडल से तारीफ़ों के चंद अल्फाज़ तो निकल ही जाएंगे। गोया ये तो मेरी ज़िंदगी की एक और भूल थी क्योंकि इनके मुंह से तारीफ़ के शब्द निकलना दूर तक फैले रेगिस्तान में पानी की चंद बूंदों के मिलने जैसा है। वहां तो फिर भी पानी मिल जाएगा लेकिन यहां ..खैर छोड़िए। अच्छा तो उन्होंने मुझे इसलिए बुलाया था क्योंकि करीब दो हफ़्ते पहले मेरे बुलेटिन में एक ख़बर में गलती हो गई थी( आपको बता दें कि इस गलती के लिए मुझे खुद बॉस डांट चुके थे, पर ये क्योंकि बॉस रुपी भगवान का मैसेंजर बनकर फ़ैसला सुना रहे हैं इस बात से मैं आज भी अनजान हूं)!

डांट फटकार की रसम अदा करने के बाद मुझे ख़बरों की गठरी मिली, जिसे लिखना भी था और कटवाना भी मुझे ही था, माफ कीजिएगा कैंची से ख़बरें नहीं कटती, कटवाने से मेरा तात्पर्य प्रोडक्शन करना है। जनाब मेरा प्रमोशन हुए ज़माना बीत गया पर इन साहब के दिमाग से मेरा वो ओहदा नहीं जाता। कहते हैं न कि आप अगर अफ़सर भी बन जाए तो ये समाज आपकी जात बिरादरी की बात करना नहीं छोड़ता, कुछ ऐसा ही हाल मेरा था। भले ही अब मेरी ज़िम्मेदारी बुलेटिन बनाना या फिर लिखना हो गई हो, पर मेरी पुरानी ज़िम्मेदारी इस नई ज़िम्मेदारी पर हावी रहती है। लेकिन इन सब बातों के बीच सच ये है कि ख़बरों से मुझे प्यार है, कई सालों से ख़बरों का ये तानाबाना मन में इतना रच बस गया है कि हर तरफ बस ख़बरें ही दिखती है। तो मैं ख़बरों से जुड़ा हर काम ऐसा करता हूं जैसे अपनी महबूबा को हर पल खुश रखने के लिए एडी चोटी की जोर लगा रहा हूं।




पत्रकारिता वो कीड़ा है जो एक बार काट जाए तो ख़बर आपकी महबूबा हो जाती है, न्यूज़ रुम मंदिर, बुलेटिन प्राइजड पोज़ेशन, घटनाओं और हादसों को ख़बर बनाना जुनून, प्रोडक्शन थोड़ा निचले दर्जे का काम और हां बॉस आपका भगवान ( ये तो अंदर की बात है) !

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