Wednesday, 15 November 2017

मेरे शरीर पर है मेरा अधिकार !



समाज में महिलाओं को ऐसी भूमिका में मान्यता दी जाती है जहां वो दूसरों की परवाह करती है, ख्याल रखती है, उनका सारा जीवन अपने परिवार के इर्दगिर्द घूमता है, जब ये महिला अपने बारे में थोड़ी देर सोच ले तो भी वो आत्मग्लानि से भर जाती है, ऐसे में अगर ये महिला अपने शरीर को अहमियत दे दे या अपनी जरुरतों के बारे में सोच ले तो ये बात कयामत से कम नहीं होती। जेंडर पर समझ बनाने के बाद पिलाना ब्लॉक में हमने महिलाओं के साथ यौनिकता पर बातचीत की शुरुआत की।

सुबह के सत्र में 30 महिलाओं में से शायद 6-7 महिलाएं ही शिक्षित है, ऐसे में सत्र को बहुत एतिहायत से बनाया गया ताकि शिक्षा का स्तर उनके सिखने और भागीदारी में बाधा न बनें। सत्र की शुरुआत तलवार और ढाल के खेल से की गई, जिसमें महिलाओं ने न केवल बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया बल्कि उनके चेहरे की खुशी देखने लायक थी।



वर्कशॉप के दौरान आने वाले 2 घंटे में क्या होगा और वर्कशॉप में किन बातों का ध्यान रखना है की जानकारी दी गई। सत्र का दूसरा खेल सांप सीड़ी था, हां वही खेल जो हम सबने बचपन में खूब खेला है, एकदम ऐसे जैसे कि इस खेल की जीत हार ही हमारा भविष्य तय कर देती हो, जो मुकाबले की भावना ये खेल देता है शायद कोई और खेल नहीं दे सकता। 


सांप-सीड़ी के इस खेल में छोटा सा ट्वीस्ट रहा क्योंकि सांप के मुंह और सीड़ी के शुरुआत में एक संदेश जुड़ा हुआ था, तो जैसे ही किसी की गोटी यहां पहुंचती है तो प्रतिभागी को जोर से ये संदेश अपने समूह में सुनना था। 


इस खेल को खेलकर बड़ा मज़ा आया। सांप सीडी का खेल देखा तो था बच्चे खेलते थे पर मुझे पता नहीं था कि कभी मुझे भी ये खेल खेलने को मिलेगा और साथ में जीवन से जुड़ी बातें जानने के लिए मिलेगी

मुझे कुछ संदेश अच्छे लगे- जैसे अगर अब किसी लड़की के साथ छेड़खानी या बदतमीज़ी होगी तो मैं जरुर रोकूंगी

मैं तो अपनी बच्ची को पढ़ाउंगी और बेटे को बेटी के जैसे घर का काम सिखाउंगी, अभी तो वो बोलता है कि ये सब काम आपके हैं, पर मुझे समझ में आया कि ये काम सिर्फ मेरे नहीं है

क्या आप ये खेल हमें दे रही है, हम समूह की बैठक में इसी खेल से शुरुआत करेंगे।


इस खेल के बाद बॉडी मैप एक्टिविटी के लिए महिलाओं को 4-4 के समूहों में बांटा गया, जहां उन्हें अपने समूह में से एक प्रतिभागी का चुनाव करना था जिसका बॉडी मैप बनना है, फिर शरीर के सभी अंगों को बनाकर उनके नाम लिखने थे।

इस गतिविधि की शुरुआत में सभी प्रतिभागी थोड़े गुपचुप थे, फिर धीमी धीमी आवाज़े शुरु हुई, फिर बातचीत शुरु हुई और फिर ठहाकों की आवाजें रुम में गूंजने लगी। वाकई ये एक्टिविटी किसी जादू से कम नहीं है, जो महिलाएं घूंघट के नीचे रहती है, धीमी आवाज़ में बात करती है, शर्माती वो इस खेल के बाद खुलने लगती है।


ऐसा है शर्म तो छाती और योनि में आती है, तभी तो नहाते समय गुसलखाने का इस्तेमाल करते हैं, दुपट्टा लेते है वहीं पुरुष बिना झिझक कहीं भी नहा लेते हैं, पेशाब कर देते हैं, कई बार तो शर्ट भी नहीं पहनते

आनंद तो भरपेट खाना खाने में आता है, और शक्ति भी उसी से मिलती है

ऐसी बात है कि शर्म तो आती है लेकिन आनंद तो योनि में मिलता है, शरीर में मिलता है जब संबंध बनता है



इतना हंसने की क्या जरुरत है, देखो दो लड़कियां दिल्ली से आई है, ये तो शादीशुदा भी नहीं है पर सेक्स से जुड़ी, हमारे मतलब से जुड़ी बातें कर रही है, हमारे पास मौका है अपनी बात रखने का ऐसे में तुम लोग हंसकर मौके को गंवाओ मत

दीदी मैं तो मना कर देती हूं जब ये कहते हैं। कई बार मान जाते हैं लेकिन बहुत बार बिना मर्जी के होता है तो उसमें अच्छा नहीं लगता।


मेरा मन करता है तो मैं बता देती हूं कि आज मेरा मन है। और जब संबंध नहीं बनाने तो साफ साफ कह देती हूं दूर रहिए। हर वक्त कैसे मन करेगा


बॉडी मैपिंग के जरिए हमने महिलाओं की इच्छाओं, यौनिक भावनाओं, सहमति और सेक्स को लेकर खुलकर बातचीत की, जहां महिलाओं ने खुलकर अपनी बातें, अपने अनुभव और परेशानियों के बारे में बताया। लेकिन सबसे अहम था कि जो महिलाएं यौन शब्द सुनकर छी छी कर रही थी अब वो ही एक दूसरे को समझा रही थी।

एक प्रतिभागी, छी छी, गंदी बातें है ये सब। ये तो एक जिम्मेदारी है ही, शादी की है तो करना पड़ेगा ही ऐसे में इस पर कौन बात करता है

दूसरा प्रतिभागी, इसमें छी छी की क्या बात है, क्यों तुम नहीं संबंध बनाती, क्या मज़ा नहीं आता तुम्हें। अरे हमने भी किया है सेक्स, हमारे बड़े लोगों ने भी किया तभी तो हम पैदा हुए है नहीं तो हम एक दूसरे के सामने कैसे बैठे होते। समझदार बनो क्योंकि ये सब बातें हमें अपने बच्चों से भी बांटनी है।


यौनिकता पर आधारित ये कार्यशाला हमारे लिए कई मायनों में अहम रही, क्योंकि महिलाओं के साथ दो किशोरियों ने भी इस कार्यशाला में भाग लिया, उनका उत्साह किसी प्रतिभागी से कम नहीं था। दूसरी बेहद अहम बात ये रही कि डेढ़ साल में पहली बार साहस का बैनर बना और एक सरकारी दफ्तर की दीवार पर लगाया गया, ये वो कुछ पल है जो साहस के इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो जाएंगे ।

Wednesday, 8 November 2017

जेंडर आधारित भेदभाव का सामना करती पिलाना ब्लॉक की महिलाएं



परिवार के सभी फैसले मर्द लेते हैं, पैसे से जुड़ा हर फैसला उन्ही का होता है भले ही औरत बाहर जाकर कमाती हो।

सुबह के सत्र ने हमारे अंदर एक नई ऊर्जा का संचार कर दिया था, कुछ देर के ब्रेक के बाद हम दोपहर के सत्र में हिस्सा लेने वाली महिलाओं का इंतजार कर रहे थे। ये महिलाएं करीब 6 किलोमीटर दूर स्थित गांव से आ रही थी। अच्छी बात ये थी कि सभी महिलाएं समय से 15 मिनट पहले पहुंच गई। सत्र की शुरुआत उंगली डांस से की गई जहां महिलाओं ने खूब खुलकर डांस किया, कई महिलाओं ने तो गोले के बीच में आकर उंगली डांस करवाया भी। आने वाले 2 घंटे में क्या-क्या होगा, साहस का काम, और हम यहां क्यों आए हैं पर संक्षेप में बातचीत की। 


इसके बाद कानाफूसी के खेल के जरिए महिलाओं के साथ जेंडर की कहानी की रचना की, महिलाओं ने एक से बढ़कर एक उत्तर दिए। हालांकि सभी शादीशुदा महिलाएं थे उनके लिए संभोग या सेक्स शब्द का इस्तेमाल करना किसी आग के दरिये पर चलने से कम नहीं था, ऐसे में जब ये सवाल पूछा गया कि ये बच्चे आते कहा से तो सबकी सुई शादी पर अटक गई। लेकिन हमने भी हार नहीं मानी और उन्हें सेक्स के बारे में बातचीत करने के लिए प्रोत्साहित किया। इसके बाद उदाहरणों के साथ हमने जेंडर की परिभाषा स्थापित की।



अगली गतिविधि में महिलाओं को दो समूहों में बांटकर उनसे ऐसे 3 संदेश जो उन्हें लड़की/ महिला होने के वजह से मिले है पर चर्चा करने के लिए आमंत्रित किया गया।



लड़कियां पढ़ लिखकर करेंगी क्या? आखिरकार उन्हें चूल्हा चौका ही तो संभालना है, दूसरे के घर जाकर किताबों का क्या करेंगी?”

अगर लड़कियां ज्यादा पढ़ लेती है तो वो घर से भाग जाती है

महिलाएं चाहें कितना भी अच्छा काम कर लें किसी न किसी बात पर तो ताने सुनने को मिलेंगे ही

अगर महिला बच्चे नहीं पैदा कर पाती तो आदमी उसे घर से निकाल देता है, और दूसरी शादी करने से पहले एक बार भी नहीं सोचता



आदमी लोग तो समूह की मीटिंग में जाने पर भी पाबंदी लगाते हैं, पूछते हैं कि कहां जा रही हो, क्या बातें होती है तुम्हारी, करती क्या हो तुम लोग

लड़कियों को हमेशा सीखाया जाता है कि एडजस्ट कर लिया करो, सहनशक्ति बढ़ाओ अपनी, जुबान पर लगाम रखा करो, बहस मत किया करो और शिकायत तो करना ही नहीं है


पति को मेरा घर से बाहर निकलना ही पसंद नहीं है, हर बात पर रोक-टोक लगाते हैं, जबकि वो खुद कमाते भी नहीं है


इन्हीं समूहों में दूसरी गतिविधि के तौर पर घर और सार्वजनिक स्थानों पर महिला-पुरुष में क्या फर्क दिखाई देता है पर चर्चा करने के लिए कहा गया। उनमें से कुछ उदाहरण ये रहे-

घर और बाहर के कामों का पूरी तरह से बंटवारा हो रखा है, घर की चार दीवारी में जो भी काम है वो महिला ही करेगी, उसे घर से बाहर कदम रखने की कोई जरुरत नहीं है, वहीं बाहर के सभी काम पुरुषों के कंधों पर हैं

परिवार के सभी फैसले आर्थिक फैसलों को मिलाकर पति ही लेगा, भले ही पैसा महिला कमाती है

महिला अगर पढ़ी-लिखी हो तो भी शादी के बाद उसके कोई सपने नहीं पूरे हो सकते



महिला को पीटना तो मानो पुरुषों का शौक है, मुझे तो लगता है कि ऐसे पुरुषों की महिलाएं धुलाई करें तो अच्छा है

सार्वजनिक जगहें तो महिलाओं की पहुंच के बाहर हैं, चाहे गाड़ी चलाना हो, दुकानें चलाना हो, सामान की खरीददारी हो

घर से बाहर कदम रखने के लिए पुरुष की अनुमति चाहिए होती है, इसके साथ ही हजार सवाल भी किए जाते हैं और कई नसीहतें भी दी जाती है


इसके बाद महिलाओं को 5 छोटे-छोटे समूहों में बांटा गया और उन्हें जेंडर पर आधारित इस कार्यशाला से संबंधित मूल्यांकन फार्म भरवाया गया। ये सवाल काफी आसान रहे, जिसकी वजह से हमें पता चला कि महिलाओं में जेंडर की कितनी समझ बनी है, उन्हें कौन सी गतिविधियां अच्छी लगी और किन में हम सुधार कर सकते हैं?

मूल्याकांन फार्म का एक सवाल, क्या आपको लगता है कि महिला-पुरुष में कोई फर्क होना चाहिए?”

एक महिला, नहीं बिलकुल फर्क नहीं होना चाहिए, अगर महिला और पुरुष में बराबरी होगी तभी तो महिलाएं वो सब कर पाएगी जिसके लिए अभी उन्हें पुरुषों से अनुमति लेनी पड़ती है। हम भी पढ़ लिख पाएंगे, अपने सपने पूरे कर पाएंगे।

दूसरी महिला, हां, फर्क तो है

पहली महिला, वहीं तो सवाल है न, हमने समझा कि आज लड़की होने का क्या मतलब है, कितनी बंदिशें है लेकिन अगर ये फर्क ही न हो तो सब चीजें कितनी आसान हो जाएंगी, मैं कुछ भी कर पाउंगी


मूल्यांकन फार्म के दौरान सभी समूहों में हो रही चर्चा न केवल इस सत्र के नजरिए से अहम रही बल्कि मैंने उन्हें पैसे के लेन-देन से आगे बढ़ते हुए देखा, एक दूसरे को अपनी बातें समझाते और आपसी सहमति बनाते देखा, ये बदलाव की ओर शायद उनका पहला कदम है।
  

Tuesday, 7 November 2017

मेरा जेंडर, मेरा अस्तिस्व और मेरी पहचान



2-3 दिन पहले की बात है मैं सब्जी खरीद रही थी, एक महिला ने फल खरीदे, उसकी बेटी बार-बार केला मांग रही थी, लेकिन उसने सारे फल अपने बैग में रख लिए। दुकानदार ने अपनी टोकरी से उठाकर लड़की को एक केला दे दिया। इतने में महिला का बेटा केला मांगकर जोर जोर से चिल्लाने लग गया। उसके बाद जो हुआ वो मुझे बेहद बुरा लगा, महिला ने बेटी के हाथ से छीनकर केला अपने बेटे को दे दिया, और वो लड़की बस देखती रह गई। हममे से कई मां ऐसा ही करती है, अपनी लड़की से ज्यादा लड़के को मानती है।

बिनौली ब्लॉक में 60 महिलाओं के साथ जेंडर, यौनिकता और नारीवादी नेतृत्व कार्यक्रम के सफल आयोजन के बाद बागपत प्रशासन ने साहस को पिलाना ब्लॉक में इस कार्यक्रम को लागू करने के लिए आमंत्रित किया। बिनौली के मुकाबले यहां के महिला स्वंय सहायता समूह बनने की प्रक्रिया में हैं ऐसे में प्रशासन का मानना है कि इस कार्यक्रम को आयोजित करने से समूह की एकता और जागरुकता को नया आयाम मिलेगा। यहां भी हम दो अलग समूहों में तकरीबन 60 महिलाओं के साथ काम करेंगे।



सुबह के सत्र की शुरुआत उंगली खेल से हुई, जिसमें महिलाओं ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया, यहीं नहीं कई महिलाओं ने आगे बढ़कर इस खेल को खिलाया भी, उनके चेहरे पर आई खुशी ने आगे की गतिविधियों के लिए रास्ता तय कर दिया था।



कार्यशाला की शुरुआत में हमने यहां आने का, इससे पहले बिनौली ब्लॉक में अपने काम और दिल्ली में चल रहे साहस के काम का ब्यौरा दिया साथ ही आने वाले 2 घंटे में क्या-क्या होगा उसकी रुपरेखा सांझा की। कार्यशाला के नियमों और सहमति बांटने के बाद कानाफूसी का खेल शुरु किया, इसी को आधार बनाकर मोना ने प्रतिभागियों के साथ मिलकर जेंडर की कहानी की रचना की। हैरान करने वाली बात ये थी कि ज्यादातर महिलाएं पढ़ी लिखी नहीं थी, बावजूद इसके उन्हें आदिमानव के बारे में उसके रहन सहन के बारे में जानकारी थी, थोड़ा और चर्चा करने पर उन्होंने सेक्स/संभोग के बारे में भी बातचीत की। 


इस गतिविधि के बाद महिलाओं को दो समूहों में बांटकर, उन्हें ऐसे 3 संदेश बताने के लिए आमंत्रित किया गया जो उन्हें महिला/ लड़की होने के वजह से मिले हैं। कुछ संदेश इस प्रकार है-

मुझे मेरी मां ने बचपन से ही सीखाया है कि कैसे अच्छी लड़की बनना है, लड़कों से यहां बाहर वाले लोगों से बातचीत नहीं करनी है, बाहर घूमने नहीं जाना है, कुछ भी ऐसी बात नहीं करनी है जिससे मेरी मां की परवरिश पर उंगली उठे और परिवार का नाम खराब हो क्योंकि मेरे पिता नहीं है।


मुझे बोला गया कि आवाज धीमी होनी चाहिए, कम बोलना चाहिए और धीरे बोलना चाहिए।

हम जब बाहर जाते हैं तो हमेशा बोला जाता है कि किसी के साथ मत जाओ, किसी की बाइक पर मत बैठना, कहीं लिफ्ट मत लेना भले ही मीलों पैदल चलना पड़े।


घर में हमेशा मर्दों को पहले खाना दिया जाता है बाद में औरत को खाना।

बेटे को दूध दिया जाता है वहीं लड़कियों को चाय क्योंकि उसमें दूध बहुत कम होता है।

लड़कों को अच्छी पढ़ाई के लिए प्राइवेट स्कूलों में भेजा जाता है वहीं लड़कियों को सरकारी स्कूल में क्योंकि ऐसा बोला जाता है कि ज्यादा पढ़ लिखकर लड़कियों करेंगी क्या, आखिर में उन्हें चूल्हा ही तो संभालना है।


लड़कियों को पराया समझा जाता है, लड़कियों पर कोई विश्वास नहीं करता, हमेशा ताने सुनाए जाते हैं चाहे फिर दहेज के लिए हो, लड़की पैदा करने के लिए हो

घर से बाहर निकलने पर पति की अनुमति लेनी पड़ती है, हर काम पूछ कर करना होता है, किसी भी बात पर महिलाएं फैसला नहीं ले सकती। घर से बाहर निकलने पर सिर पर पल्ला लेना ही होता है

ऐसा कहा जाता है कि आदमी के बिना औरत का कोई अस्तित्व नहीं होता

इसके बाद महिलाओं को उन्हीं दो समूहों में बैठकर चर्चा करनी थी कि घर और सार्वजनिक जगहों पर महिला और पुरुष में क्या-क्या फर्क दिखाई देता है


दीदी फर्क ही फर्क है, छोटी से छोटी और बड़ी सी बड़ी बात में फर्क दिखाई देता है, कपड़ों से लेकर खान-पान में। चाहे महिला कितनी भी बीमार हो, खाना तो बनाना ही पड़ेगा।

घर में आदमी का खौफ होता है, पत्नी और बच्चे आदमी से डरकर रहते हैं

महिला हमेशा डर के साए में रहती है, उसकी पिटाई होती है, गाली गलौच होता है



कुछ भी हो, कोई भी स्थिति हो, हमेशा महिला की ही गलती निकाली जाती है

ज्यादातर सार्वजनिक जगहों में मर्द ही दिखाई देते हैं, दुकानों पर वहीं बैठते हैं, गाड़ियां भी वहीं चलाते हैं, घर से बाहर के काम, सामान खरीदते भी पुरुष है। बहुत परेशानी होगी तभी औरत बाहर निकलती है, उसपर भी उसे ढेरो नसीहतें सुनने को मिलती हैं।


इस बार हमने वर्कशॉप में मूल्यांकन फार्म की प्रक्रिया शामिल की है ताकि हमें पता चल पाए कि महिलाओं को क्या समझ में आया, उन्हें कोई सी गतिविधियां अच्छी लगी, क्या अच्छा नहीं लगा और क्या सुधार हो सकता है। इसके साथ ही जब वो समूह में बैठेंगी और सवालों पर चर्चा करने के फैसला लेंगी तो समूह के निर्णस क्षमता का भी विकास होगा। 


हमें एक उंगली, जेंडर की कहानी, कानाफूसी पसंद आई, इसके साथ ही जब हमें अपने बारे में अपने महिला होने के बारे में चर्चा करने का मौका मिला, तो दिल में छुपी कई बातें सामने आई, उन्हें बोलकर काफी मन हलका हुआ। साथ ही लगा कि हमें हर समय सहने की जरुरत नहीं है


इसके साथ ही 3 महिलाओं ने आगे बढ़कर अपने अनुभव को लेकर वीडियो बनाने पर हामी भरी। देखा जाए तो कई मायनों में ये कार्यशाला बेहद अच्छी रही, जहां महिलाओं ने जेंडर पर समझ बनाई वहीं ग्रामीण परिपेक्ष्य पर महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियों पर हमारी समझ और मजबूत हुई। 


हम हमेशा अपने काम के बारे पर सोशल मीडिया में लिखते हैं ताकि लोग हमारे काम को देख पाए, समझ पाए, और इस काम से जुड़ पाए, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ कि सोशल मीडिया पर अपने अनुभव सांझा करने से पहले ही हिन्दूस्तान अखबार में पिलाना ब्लॉक में शुरु हुए साहस के काम के बारे में लिखा गया। शायद ये हमारे काम के लिए नया अध्याय है, हम नई ऊर्जा और बुलंद हौसलों के साथ इस काम को आगे बढ़ाए ताकि हिंसा मुक्त समाज की परिकल्पना को हकीकत का जामा पहनाए